The Gifts of Imperfection (Hindi)

The Gifts of Imperfection (Hindi)

आज हम एक ऐसी किताब की बात करेंगे जो आपको अपनी इम्परफेक्शन्स को एम्ब्रेस करना सिखाएगी – ब्रेने ब्राउन की “द गिफ्ट्स ऑफ़ इम्परफेक्शन”। ये सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक गाइड है एक होलहार्टेड लाइफ जीने की, जहाँ हम अपनी वल्नरेबिलिटी को, अपनी कमियों को, अपनी स्ट्रेंथ मानते हैं। इस वीडियो में हम इस बुक के दस सबसे ज़रूरी लेसन्स को समझेंगे, एकदम सिंपल हिन्ग्लिश में, ताकि आप भी अपनी इम्परफेक्शन्स को एक्सेप्ट कर सकें और एक ज़्यादा ऑथेंटिक लाइफ जी सकें। तो चलिए, शुरू करते हैं इस ट्रांसफॉर्मेटिव जर्नी को!


लेसन 1 : कल्टीवेटिंग वर्थिनेस: लेटिंग गो ऑफ़ व्हाट पीपल थिंक
दोस्तों, “द गिफ्ट्स ऑफ़ इम्परफेक्शन” का सबसे पहला और फ़ाउंडेशनल लेसन है ‘कल्टीवेटिंग वर्थिनेस: लेटिंग गो ऑफ़ व्हाट पीपल थिंक’, यानी गरिमा का विकास: लोग क्या सोचते हैं उसे छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि हमारी सोसाइटी में हमें हमेशा ये सिखाया जाता है कि हमें परफ़ेक्ट होना चाहिए, हमें दूसरों को इम्प्रेस करना चाहिए, हमें दूसरों की एक्सपेक्टेशन्स को मीट करना चाहिए। हमें ये बिलीव कराया जाता है कि हमारी वर्थ एक्सटर्नल फ़ैक्टर्स पर डिपेंड करती है, जैसे हमारी अपीयरेंस, हमारी सक्सेस, हमारी अचीवमेंट्स, और लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं। लेकिन ब्राउन कहती हैं कि ये एक बहुत बड़ी मिसकन्सेप्शन है। हमारी वर्थ इनहेरेंट है, यानी ये हमारे अंदर ही है, ये किसी एक्सटर्नल चीज़ पर डिपेंड नहीं करती। हम जैसे हैं, वैसे ही काफ़ी हैं, हम लव और बिलॉन्गिंग डिज़र्व करते हैं, अपनी इम्परफेक्शन्स के साथ। जब हम ये बिलीव करते हैं कि हमारी वर्थ एक्सटर्नल फ़ैक्टर्स पर डिपेंड करती है, तो हम ‘व्हाट विल पीपल थिंक’ के ट्रैप में फ़ँस जाते हैं, यानी हम हमेशा ये सोचते रहते हैं कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे, और हम उनकी एक्सपेक्टेशन्स को मीट करने की कोशिश करते रहते हैं। इससे हम अपनी ऑथेंटिसिटी खो देते हैं, हम अपनी ट्रू सेल्फ को एक्सप्रेस नहीं कर पाते, और हम एक अनफ़ुलफ़िलिंग लाइफ जीते हैं। इसे एक सोशल मीडिया के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। आजकल लोग सोशल मीडिया पर अपनी परफ़ेक्ट लाइफ़ की पिक्चर प्रेजेंट करते हैं, फ़िल्टर्स यूज़ करते हैं, एडिटेड फ़ोटोज़ डालते हैं, ताकि वो दूसरों को इम्प्रेस कर सकें। लेकिन ये एक फ़ॉल्स इमेज है, एक अनरियलिस्टिक एक्सपेक्टेशन है। कोई भी परफ़ेक्ट नहीं होता, हर किसी में इम्परफेक्शन्स होती हैं। ब्राउन कहती हैं कि जब हम अपनी इम्परफेक्शन्स को एम्ब्रेस करते हैं, जब हम अपनी वल्नरेबिलिटी को एक्सेप्ट करते हैं, जब हम ‘व्हाट विल पीपल थिंक’ को छोड़ देते हैं, तभी हम एक होलहार्टेड लाइफ जी पाते हैं, जहाँ हम अपनी ट्रू सेल्फ को एक्सप्रेस करते हैं, बिना किसी फ़ियर या शेम के। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपनी वर्थ को एक्सटर्नल फ़ैक्टर्स से नहीं जोड़ना चाहिए, बल्कि ये बिलीव करना चाहिए कि हम जैसे हैं, वैसे ही काफ़ी हैं। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और अपनी ऑथेंटिक सेल्फ को एम्ब्रेस करने का पहला स्टेप। जैसे एक सीड में एक पूरा ट्री छुपा होता है, वैसे ही हमारे अंदर भी इनफ वर्थ है।


लेसन 2 : कल्टीवेटिंग कम्पैशन: लेटिंग गो ऑफ़ सेल्फ-जजमेंट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने वर्थिनेस को कल्टीवेट करने और ‘व्हाट विल पीपल थिंक’ को छोड़ने की बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट क्वालिटी पर बात करेंगे जो होलहार्टेड लिविंग के लिए ज़रूरी है – कल्टीवेटिंग कम्पैशन: लेटिंग गो ऑफ़ सेल्फ-जजमेंट, यानी करुणा का विकास: आत्म-निर्णय को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि हम अक्सर अपने आप पर बहुत ज़्यादा क्रिटिकल होते हैं, हम अपने आप को लगातार जज करते रहते हैं, अपनी मिस्टेक्स के लिए, अपनी इम्परफेक्शन्स के लिए। हम अपने आप से उतनी ही हार्शली बात करते हैं जितनी हम कभी किसी और से नहीं करेंगे। ये सेल्फ-जजमेंट हमें शेम, फ़ियर, और डिस्कनेक्शन की तरफ़ ले जाता है, और हमें होलहार्टेडली जीने से रोकता है। ब्राउन कहती हैं कि सेल्फ-कम्पैशन इसका एंटीडोट है, यानी जब हम अपने आप पर दया रखते हैं, जब हम अपनी इम्परफेक्शन्स को एक्सेप्ट करते हैं, जब हम अपने आप को वैसे ही ट्रीट करते हैं जैसे हम अपने किसी क्लोज फ़्रेंड को ट्रीट करेंगे। सेल्फ-कम्पैशन का मतलब ये नहीं है कि हम अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज़ से भाग रहे हैं, या हम अपनी मिस्टेक्स को एक्सक्यूज़ कर रहे हैं। बल्कि, इसका मतलब है कि हम अपनी ह्यूमैनिटी को एक्सेप्ट कर रहे हैं, ये रियलाइज़ कर रहे हैं कि हर कोई मिस्टेक्स करता है, हर कोई इम्परफ़ेक्ट है। इसे एक फ़ेलियर के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप किसी इम्पोर्टेन्ट प्रोजेक्ट में फ़ेल हो जाते हैं। सेल्फ-जजमेंट आपको ये कहेगा कि आप यूज़लेस हैं, आप फ़ेलियर हैं, आप डिज़र्व नहीं करते। वहीं, सेल्फ-कम्पैशन आपको ये कहेगा कि ये एक टफ़ सिचुएशन है, हर कोई कभी न कभी फ़ेल होता है, और आप इस एक्सपीरियंस से सीख सकते हैं। ब्राउन कहती हैं कि सेल्फ-कम्पैशन में तीन कंपोनेंट्स होते हैं: सेल्फ़-काइन्डनेस, यानी अपने आप पर दया रखना, कॉमन ह्यूमैनिटी, यानी ये रियलाइज़ करना कि हर कोई इम्परफ़ेक्ट है, और माइंडफुलनेस, यानी अपनी फ़ीलिंग्स को नॉन-जजमेंटली ऑब्ज़र्व करना। जब हम इन तीनों कंपोनेंट्स को कल्टीवेट करते हैं, तो हम सेल्फ-जजमेंट को छोड़ पाते हैं, और हम एक ज़्यादा काइंड और कम्पैशनेट लाइफ जी पाते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपने आप पर दया रखनी चाहिए, अपनी इम्परफेक्शन्स को एक्सेप्ट करना चाहिए, और सेल्फ-जजमेंट को छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और अपनी वेल-बीइंग को इम्प्रूव करने का रास्ता। जैसे एक मदर अपने बच्चे को अनकंडीशनली लव करती है, वैसे ही हमें भी अपने आप को अनकंडीशनली लव करना चाहिए।


लेसन 3 : कल्टीवेटिंग रेज़िलिएंस: लेटिंग गो ऑफ़ नम्बिंग एंड पावरलेसनेस
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने सेल्फ-कम्पैशन को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट क्वालिटी पर बात करेंगे जो हमें मुश्किल हालातों का सामना करने में हेल्प करती है – कल्टीवेटिंग रेज़िलिएंस: लेटिंग गो ऑफ़ नम्बिंग एंड पावरलेसनेस, यानी लचीलापन का विकास: सुन्नता और शक्तिहीनता को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि लाइफ में हमें कई बार ऐसे एक्सपीरियंसेस का सामना करना पड़ता है जो बहुत पेनफुल होते हैं, बहुत डिफ़िकल्ट होते हैं, जैसे लॉस, रिजेक्शन, फ़ेलियर, या ट्रॉमा। इन एक्सपीरियंसेस से कोप करने के लिए, हम कई बार ‘नम्बिंग’ का सहारा लेते हैं, यानी हम अपनी फ़ीलिंग्स को शट डाउन कर देते हैं, हम इमोशनली डिस्कनेक्ट हो जाते हैं, ताकि हमें पेन फील न हो। हम फ़ूड, अल्कोहल, ड्रग्स, या सोशल मीडिया जैसी चीज़ों का यूज़ करते हैं अपने आप को डिस्ट्रैक्ट करने के लिए, अपनी फ़ीलिंग्स को अवॉइड करने के लिए। लेकिन ब्राउन कहती हैं कि ये एक टेम्परेरी सोल्यूशन है, एक कोपिंग मैकेनिज्म है जो लॉन्ग रन में हमें और भी ज़्यादा हार्म करता है। जब हम अपनी फ़ीलिंग्स को नम्ब करते हैं, तो हम सिर्फ़ नेगेटिव फ़ीलिंग्स को ही नम्ब नहीं करते, बल्कि हम पॉज़िटिव फ़ीलिंग्स को भी नम्ब कर देते हैं, जैसे जॉय, लव, और कनेक्शन। इससे हम एक पावरलेस स्टेट में चले जाते हैं, जहाँ हमें लगता है कि हम अपनी लाइफ को कंट्रोल नहीं कर सकते, हम चेंज नहीं ला सकते। ब्राउन कहती हैं कि रेज़िलिएंस इसका ऑपोजिट है, यानी मुश्किलों से बाउंस बैक करने की एबिलिटी, अपनी फ़ीलिंग्स को फ़ेस करने की करेज, और अपनी लाइफ को कंट्रोल करने की पावर। रेज़िलिएंस का मतलब ये नहीं है कि हमें कभी पेन फील नहीं होगा, बल्कि इसका मतलब है कि हम उस पेन से सीखेंगे, उससे ग्रो करेंगे, और उससे स्ट्रॉन्गर बनेंगे। इसे एक ब्रेकअप के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक ब्रेकअप बहुत पेनफुल एक्सपीरियंस हो सकता है। नम्बिंग आपको ये कहेगी कि अपनी फ़ीलिंग्स को अवॉइड करो, डिस्ट्रैक्ट रहो, कुछ भी फील मत करो। वहीं, रेज़िलिएंस आपको ये कहेगा कि अपनी फ़ीलिंग्स को फ़ेस करो, उन्हें प्रोसेस करो, उनसे सीखो, और आगे बढ़ो। ब्राउन कहती हैं कि रेज़िलिएंस कल्टीवेट करने के लिए, हमें अपनी स्टोरीज़ को ओन करना चाहिए, अपनी वल्नरेबिलिटी को एम्ब्रेस करना चाहिए, और हेल्प सीक करने से डरना नहीं चाहिए। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें नम्बिंग को छोड़ना चाहिए, और रेज़िलिएंस को कल्टीवेट करना चाहिए। यही है मुश्किलों का सामना करने का, उनसे सीखने का, और एक स्ट्रॉन्गर और मोर ऑथेंटिक लाइफ जीने का रास्ता। जैसे एक प्लांट स्टॉर्म के बाद फिर से ग्रो करता है, वैसे ही हम भी मुश्किलों के बाद और भी स्ट्रॉन्ग बन सकते हैं।


लेसन 4 : कल्टीवेटिंग ग्रेटफुलनेस एंड जॉय: लेटिंग गो ऑफ़ स्कैरसिटी एंड फ़ियर ऑफ़ डार्क
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने रेज़िलिएंस कल्टीवेट करने की बात की, यानी मुश्किलों से बाउंस बैक करने की क्षमता। अब हम दो और इम्पोर्टेन्ट इमोशन्स पर बात करेंगे जो होलहार्टेड लिविंग के लिए ज़रूरी हैं – कल्टीवेटिंग ग्रेटफुलनेस एंड जॉय: लेटिंग गो ऑफ़ स्कैरसिटी एंड फ़ियर ऑफ़ डार्क, यानी कृतज्ञता और आनंद का विकास: कमी और अँधेरे के डर को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि ग्रेटफुलनेस और जॉय दो इंटरकनेक्टेड इमोशन्स हैं जो हमारी लाइफ को रिच बनाते हैं। ग्रेटफुलनेस का मतलब है अपनी लाइफ में जो भी अच्छा है, उसे एप्रिशिएट करना, उसे एकनॉलेज करना, चाहे वो छोटी चीज़ें हों या बड़ी चीज़ें। जॉय का मतलब है प्रेजेंट मोमेंट में खुशी एक्सपीरियंस करना, लाइफ की ब्यूटी और वंडर को एप्रिशिएट करना। ब्राउन कहती हैं कि ये दोनों इमोशन्स ‘स्कैरसिटी’ के ऑपोजिट हैं, यानी कमी की मानसिकता, ये बिलीव करना कि हमारे पास इनफ़ नहीं है, कि हमें हमेशा ज़्यादा चाहिए, कि हम कभी सेटिस्फाइड नहीं हो सकते। स्कैरसिटी हमें फ़ियर, एंजायटी, और एनवी की तरफ़ ले जाती है, और हमें जॉय और ग्रेटफुलनेस एक्सपीरियंस करने से रोकती है। ‘फ़ियर ऑफ़ डार्क’ का मतलब है अनसर्टेनिटी का डर, वल्नरेबिलिटी का डर, इम्परफेक्शन का डर। ये डर हमें रिस्क लेने से रोकता है, हमें अपनी कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलने से रोकता है, और हमें अपनी पूरी पोटेंशियल को अचीव करने से रोकता है। इसे एक सिंपल एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आपके पास एक अच्छा जॉब है, एक हेल्दी फ़ैमिली है, और अच्छे फ़्रेंड्स हैं। ग्रेटफुलनेस आपको इन ब्लेसिंग्स को एप्रिशिएट करने में हेल्प करेगी, आपको ये रियलाइज़ कराने में हेल्प करेगी कि आप कितने लकी हैं। वहीं, स्कैरसिटी आपको ये सोचने पर मजबूर करेगी कि आपको और ज़्यादा चाहिए, एक बेटर जॉब, एक बड़ा घर, ज़्यादा पैसे। ब्राउन कहती हैं कि जब हम ग्रेटफुलनेस और जॉय को कल्टीवेट करते हैं, तो हम स्कैरसिटी और फ़ियर ऑफ़ डार्क को छोड़ पाते हैं, और हम एक ज़्यादा फुलफ़िलिंग और हैप्पी लाइफ जी पाते हैं। वो कहती हैं कि ग्रेटफुलनेस एक प्रैक्टिस है, एक चॉइस है। हम हर दिन, हर मोमेंट, ये डिसाइड कर सकते हैं कि हम किस पर फोकस करेंगे, अपनी ब्लेसिंग्स पर या अपनी लैकिंग्स पर। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें ग्रेटफुलनेस और जॉय को कल्टीवेट करना चाहिए, और स्कैरसिटी और फ़ियर ऑफ़ डार्क को छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और ज़्यादा हैप्पी और फ़ुलफ़िल्ड होने का रास्ता। जैसे सनलाइट डार्कनेस को दूर करती है, वैसे ही ग्रेटफुलनेस और जॉय स्कैरसिटी और फ़ियर को दूर करते हैं।


लेसन 5 : कल्टीवेटिंग इंट्यूशन एंड ट्रस्टिंग फेथ: लेटिंग गो ऑफ़ द नीड फॉर सर्टेनिटी
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने ग्रेटफुलनेस और जॉय को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम दो और इम्पोर्टेन्ट क्वालिटीज़ पर बात करेंगे जो हमें अपनी जर्नी पर गाइड करती हैं – कल्टीवेटिंग इंट्यूशन एंड ट्रस्टिंग फेथ: लेटिंग गो ऑफ़ द नीड फॉर सर्टेनिटी, यानी अंतर्ज्ञान का विकास और विश्वास पर भरोसा: निश्चितता की आवश्यकता को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि इंट्यूशन का मतलब है अपनी इनर वॉइस को सुनना, अपनी गट फ़ीलिंग्स को ट्रस्ट करना, ये जानना कि क्या सही है और क्या गलत, बिना किसी लॉजिकल रीज़न के। फ़ेथ का मतलब है अनसर्टेनिटी पर ट्रस्ट करना, ये बिलीव करना कि सब कुछ ठीक होगा, भले ही हमें अभी ये न पता हो कि आगे क्या होगा। ब्राउन कहती हैं कि हमारी सोसाइटी हमें हमेशा सर्टेनिटी सीक करना सिखाती है, यानी हर चीज़ का कंट्रोल रखना, हर चीज़ का प्लान बनाना, हर चीज़ का प्रूफ़ देखना। लेकिन लाइफ अनसर्टेन है, अनप्रेडिक्टेबल है, और हम कभी भी पूरी तरह से कंट्रोल में नहीं हो सकते। जब हम सर्टेनिटी सीक करते हैं, तो हम फ़ियर और एंजायटी में जीते हैं, हम रिस्क लेने से डरते हैं, और हम अपनी पूरी पोटेंशियल को अचीव नहीं कर पाते। इसे एक करियर चेंज के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप एक सिक्योर जॉब कर रहे हैं, लेकिन आपको एक नया करियर ट्राई करने का मन है, जिसमें ज़्यादा अनसर्टेनिटी है। इंट्यूशन आपको ये कहेगा कि अपने दिल की सुनो, रिस्क लो, ट्राई करो। वहीं, सर्टेनिटी की नीड आपको ये कहेगी कि सिक्योर जॉब मत छोड़ो, रिस्क मत लो, क्या होगा अगर फ़ेल हो गए। ब्राउन कहती हैं कि जब हम अपनी इंट्यूशन को ट्रस्ट करते हैं, जब हम फ़ेथ पर भरोसा करते हैं, तो हम अनसर्टेनिटी को एम्ब्रेस कर पाते हैं, हम रिस्क लेने के लिए रेडी होते हैं, और हम अपनी लाइफ को ज़्यादा फ़ुलफ़िलिंग तरीके से जी पाते हैं। वो कहती हैं कि इंट्यूशन और फ़ेथ कोई मैजिकल पावर्स नहीं हैं, बल्कि ये हमारी इनर विजडम और हमारी स्पिरिचुअलिटी से कनेक्टेड हैं। जब हम अपने आप से कनेक्टेड होते हैं, जब हम अपनी इनर वॉइस को सुनते हैं, तो हम ज़्यादा कॉन्फिडेंट होते हैं अपने डिसीज़न्स में, और हम ज़्यादा पीसफुल होते हैं अनसर्टेनिटी के साथ। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपनी इंट्यूशन को कल्टीवेट करना चाहिए, फ़ेथ पर भरोसा करना चाहिए, और सर्टेनिटी की नीड को छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और अपनी जर्नी पर ट्रस्ट करने का रास्ता। जैसे एक बर्ड बिना डरे आसमान में फ्लाई करता है, वैसे ही हमें भी अनसर्टेनिटी में फ़ेथ के साथ अपनी जर्नी पर चलना चाहिए।


लेसन 6: कल्टीवेटिंग क्रिएटिविटी: लेटिंग गो ऑफ़ कंपैरिज़न
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने इंट्यूशन और फ़ेथ को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट पर बात करेंगे जो होलहार्टेड लिविंग के लिए ज़रूरी है – कल्टीवेटिंग क्रिएटिविटी: लेटिंग गो ऑफ़ कंपैरिज़न, यानी रचनात्मकता का विकास: तुलना को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि क्रिएटिविटी सिर्फ़ आर्टिस्ट्स या म्यूज़िशियन्स के लिए नहीं है, बल्कि ये हर इंसान में होती है। क्रिएटिविटी का मतलब है कुछ नया क्रिएट करना, कुछ एक्सप्रेस करना, चाहे वो कोई आर्टवर्क हो, कोई आइडिया हो, कोई सोल्यूशन हो, या कोई रिलेशनशिप हो। ब्राउन कहती हैं कि कंपैरिज़न क्रिएटिविटी का सबसे बड़ा एनिमी है। जब हम अपने आप को दूसरों से कंपेयर करते हैं, तो हम अपनी यूनिकनेस खो देते हैं, हम अपनी ऑथेंटिसिटी खो देते हैं, और हम फ़ियर और एनवी में जीते हैं। हम हमेशा ये सोचते रहते हैं कि दूसरे हमसे बेटर हैं, कि हम इनफ़ नहीं हैं, कि हम कभी सक्सेसफुल नहीं हो सकते। इसे एक राइटिंग के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप एक स्टोरी लिख रहे हैं, और आप अपने आप को किसी फ़ेमस ऑथर से कंपेयर कर रहे हैं। आप हमेशा ये सोचेंगे कि आपकी स्टोरी उतनी अच्छी नहीं है, कि आप कभी उस ऑथर जितने सक्सेसफुल नहीं हो सकते। इससे आप डिसकरेज हो जाएँगे, और शायद अपनी स्टोरी पूरी भी नहीं कर पाएँगे। ब्राउन कहती हैं कि हर इंसान का अपना यूनिक क्रिएटिव वॉइस होता है, और हमें उस वॉइस को एक्सप्रेस करने का करेज दिखाना चाहिए, बिना किसी कंपैरिज़न के। क्रिएटिविटी एक वल्नरेबल प्रोसेस है, जिसमें हमें रिस्क लेना पड़ता है, इम्परफ़ेक्ट होने के लिए रेडी होना पड़ता है, और क्रिटिसिज़्म को फ़ेस करना पड़ता है। लेकिन जब हम कंपैरिज़न को छोड़ देते हैं, जब हम अपनी वल्नरेबिलिटी को एम्ब्रेस करते हैं, तो हम अपनी पूरी क्रिएटिव पोटेंशियल को अनलॉक कर पाते हैं। वो कहती हैं कि क्रिएटिविटी सिर्फ़ आउटकम के बारे में नहीं है, बल्कि ये प्रोसेस के बारे में है, जर्नी के बारे में है। जब हम क्रिएट करते हैं, तो हम प्रेजेंट मोमेंट में होते हैं, हम फ़्लो में होते हैं, और हम जॉय एक्सपीरियंस करते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपनी क्रिएटिविटी को कल्टीवेट करना चाहिए, और कंपैरिज़न को छोड़ना चाहिए। यही है अपनी यूनिकनेस को एक्सप्रेस करने का, और एक फ़ुलफ़िलिंग और जॉयफुल लाइफ जीने का रास्ता। जैसे हर फ़्लॉवर अपनी ब्यूटी से ब्लूम करता है, वैसे ही हमें भी अपनी क्रिएटिविटी से ब्लूम करना चाहिए।


लेसन 7 : कल्टीवेटिंग प्ले एंड रेस्ट: लेटिंग गो ऑफ़ एग्जॉशन एज़ अ स्टेटस सिंबल एंड प्रोडक्टिविटी एज़ सेल्फ-वर्थ
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने क्रिएटिविटी को कल्टीवेट करने और कंपैरिज़न को छोड़ने की बात की। अब हम दो और इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट्स पर बात करेंगे जो होलहार्टेड लिविंग के लिए ज़रूरी हैं – कल्टीवेटिंग प्ले एंड रेस्ट: लेटिंग गो ऑफ़ एग्जॉशन एज़ अ स्टेटस सिंबल एंड प्रोडक्टिविटी एज़ सेल्फ-वर्थ, यानी खेल और आराम का विकास: थकावट को एक स्टेटस सिंबल और उत्पादकता को आत्म-मूल्य के रूप में छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि हमारी सोसाइटी में, स्पेशली वर्क कल्चर में, एग्जॉशन को एक स्टेटस सिंबल माना जाता है, यानी जो जितना ज़्यादा थका हुआ है, वो उतना ही ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है, उतना ही ज़्यादा हार्डवर्किंग है, उतना ही ज़्यादा सक्सेसफुल है। हम अपनी प्रोडक्टिविटी से अपनी सेल्फ-वर्थ को मेजर करते हैं, यानी हम जितना ज़्यादा प्रोड्यूस करते हैं, उतना ही ज़्यादा वैल्यूएबल हम फील करते हैं। ब्राउन कहती हैं कि ये एक बहुत ही अनहेल्दी और अनसस्टेनेबल वे ऑफ़ लिविंग है। जब हम लगातार काम करते रहते हैं, बिना रेस्ट के, बिना प्ले के, तो हम बर्नआउट हो जाते हैं, हम स्ट्रेस्ड हो जाते हैं, और हम अपनी वेल-बीइंग को सैक्रिफाइस कर देते हैं। प्ले का मतलब है कुछ ऐसा करना जो हमें जॉय दे, जो हमें एंटरटेन करे, जो हमें रिलैक्स करे, बिना किसी स्पेसिफिक गोल या आउटकम के। रेस्ट का मतलब है अपनी बॉडी और माइंड को रिचार्ज करने के लिए टाइम निकालना, स्लीप लेना, रिलैक्स करना, और स्ट्रेस को कम करना। इसे एक वीकेंड के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आपने पूरा वीक बहुत हार्ड वर्क किया है। एक अनबैलेंसड अप्रोच ये होगी कि आप वीकेंड पर भी काम करते रहें, या ऐसे एक्टिविटीज़ में एंगेज रहें जो आपको और भी ज़्यादा थका दें। वहीं, एक बैलेंसड अप्रोच ये होगी कि आप वीकेंड पर रिलैक्स करें, कुछ प्लेफुल एक्टिविटीज़ करें, जैसे फ़्रेंड्स के साथ हैंगआउट करना, मूवी देखना, या हॉबीज़ पर टाइम स्पेंड करना। ब्राउन कहती हैं कि प्ले और रेस्ट सिर्फ़ लग्ज़रीज़ नहीं हैं, बल्कि ये हमारी वेल-बीइंग के लिए, हमारी क्रिएटिविटी के लिए, और हमारी प्रोडक्टिविटी के लिए ज़रूरी हैं। जब हम रेस्टेड होते हैं, तो हम ज़्यादा फोकस कर पाते हैं, ज़्यादा क्रिएटिव होते हैं, और ज़्यादा प्रोडक्टिव होते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें प्ले और रेस्ट को अपनी लाइफ का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट बनाना चाहिए, और थकावट को एक स्टेटस सिंबल और प्रोडक्टिविटी को सेल्फ-वर्थ के रूप में छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और अपनी वेल-बीइंग को प्रायोरिटी देने का रास्ता। जैसे एक मशीन को चलने के लिए फ्यूल और मेंटेनेंस चाहिए होता है, वैसे ही हमें भी अपनी बॉडी और माइंड को रिचार्ज करने के लिए रेस्ट और प्ले चाहिए होता है।


लेसन 8 : कल्टीवेटिंग काम एंड स्टिलनेस: लेटिंग गो ऑफ़ एंजायटी एज़ अ लाइफ़स्टाइल
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने प्ले और रेस्ट को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट पर बात करेंगे जो हमारी मेंटल और इमोशनल वेल-बीइंग के लिए ज़रूरी है – कल्टीवेटिंग काम एंड स्टिलनेस: लेटिंग गो ऑफ़ एंजायटी एज़ अ लाइफ़स्टाइल, यानी शांति और स्थिरता का विकास: चिंता को एक जीवनशैली के रूप में छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि आज की फ़ास्ट-पेस्ड दुनिया में, एंजायटी एक कॉमन एक्सपीरियंस बन गया है। हम लगातार फ्यूचर के बारे में वरी करते रहते हैं, पास्ट के बारे में रिग्रेट करते रहते हैं, और प्रेजेंट मोमेंट में फुल्ली प्रेजेंट नहीं हो पाते। हम हमेशा कुछ न कुछ करते रहते हैं, हमेशा कनेक्टेड रहते हैं, हमेशा ऑन रहते हैं, और हम कभी भी रिलैक्स नहीं कर पाते, कभी भी शांत नहीं हो पाते। ब्राउन कहती हैं कि ये कांस्टेंट स्टेट ऑफ़ एंजायटी हमारी मेंटल और फ़िज़िकल हेल्थ पर नेगेटिव इम्पैक्ट डालता है, और हमें होलहार्टेडली जीने से रोकता है। काम और स्टिलनेस का मतलब है अपने माइंड को शांत करना, अपने थॉट्स को स्लो डाउन करना, और प्रेजेंट मोमेंट में एंकर होना। ये मेडिटेशन, योगा, नेचर में टाइम स्पेंड करना, या कोई भी ऐसी एक्टिविटी हो सकती है जो हमें रिलैक्स करे और हमें अपने आप से कनेक्ट करे। इसे एक बिज़ी वर्किंग डे के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आपके पास बहुत सारे डेडलाइन्स हैं, बहुत सारे मीटिंग्स हैं, और बहुत सारे ईमेल्स हैं। एंजायटी आपको ये कहेगी कि लगातार काम करते रहो, मल्टीटास्क करते रहो, कभी भी ब्रेक मत लो। वहीं, काम और स्टिलनेस आपको ये कहेगा कि कुछ मिनट्स के लिए ब्रेक लो, डीप ब्रीथ्स लो, अपने माइंड को शांत करो, और फिर फ्रेश माइंड से काम पर वापस जाओ। ब्राउन कहती हैं कि काम और स्टिलनेस सिर्फ़ रिलैक्सेशन के बारे में नहीं है, बल्कि ये हमारी क्रिएटिविटी के लिए, हमारी प्रोडक्टिविटी के लिए, और हमारी वेल-बीइंग के लिए भी ज़रूरी है। जब हम शांत होते हैं, तो हम ज़्यादा फोकस कर पाते हैं, ज़्यादा क्लियरली थिंक कर पाते हैं, और ज़्यादा इफेक्टिव डिसीज़न्स ले पाते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें काम और स्टिलनेस को अपनी लाइफ का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट बनाना चाहिए, और एंजायटी को एक लाइफ़स्टाइल के रूप में छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और ज़्यादा पीसफुल और कंटेंट होने का रास्ता। जैसे एक स्टिल लेक में रिफ्लेक्शन क्लियर होता है, वैसे ही एक शांत माइंड में थॉट्स और आइडियाज़ ज़्यादा क्लियर होते हैं।


लेसन 9 : कल्टीवेटिंग मीनिंगफुल वर्क: लेटिंग गो ऑफ़ कंपैरिज़न एंड सेल्फ-डाउट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने काम और स्टिलनेस को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट पर बात करेंगे जो हमारी लाइफ को मीनिंगफुल बनाता है – कल्टीवेटिंग मीनिंगफुल वर्क: लेटिंग गो ऑफ़ कंपैरिज़न एंड सेल्फ-डाउट, यानी अर्थपूर्ण कार्य का विकास: तुलना और आत्म-संदेह को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि मीनिंगफुल वर्क का मतलब है ऐसा काम करना जो हमें पर्पस दे, जो हमें कनेक्टेड फील कराए, जो हमारी वैल्यूज़ के साथ अलाइन हो। ये सिर्फ़ पैसे कमाने के बारे में नहीं है, बल्कि ये कंट्रीब्यूशन के बारे में है, इम्पैक्ट क्रिएट करने के बारे में है, और अपनी स्किल्स और टैलेंट्स को यूज़ करने के बारे में है। ब्राउन कहती हैं कि कंपैरिज़न और सेल्फ-डाउट मीनिंगफुल वर्क के दो बड़े बैरियर्स हैं। जब हम अपने आप को दूसरों से कंपेयर करते हैं, तो हम ये सोचने लगते हैं कि हमारा काम इनफ़ इम्पोर्टेन्ट नहीं है, कि हम इनफ़ टैलेंटेड नहीं हैं, कि हम कभी सक्सेसफुल नहीं हो सकते। वहीं, सेल्फ-डाउट हमें ये बिलीव कराता है कि हम कैपेबल नहीं हैं, कि हम डिज़र्व नहीं करते, कि हम फ़ेल हो जाएँगे। ये दोनों चीज़ें हमें अपने पैशन को फॉलो करने से रोकती हैं, रिस्क लेने से रोकती हैं, और अपनी पूरी पोटेंशियल को अचीव करने से रोकती हैं। इसे एक वॉलंटियर वर्क के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप किसी लोकल एनजीओ में वॉलंटियर करते हैं। कंपैरिज़न आपको ये सोचने पर मजबूर कर सकता है कि आपका कंट्रीब्यूशन इनफ़ नहीं है, कि दूसरे वॉलंटियर्स ज़्यादा इम्पैक्ट क्रिएट कर रहे हैं। वहीं, सेल्फ-डाउट आपको ये बिलीव करा सकता है कि आप इस काम के लिए क्वालिफ़ाइड नहीं हैं, कि आप कुछ गलत कर देंगे। ब्राउन कहती हैं कि जब हम कंपैरिज़न और सेल्फ-डाउट को छोड़ देते हैं, जब हम अपने काम के पर्पस पर फोकस करते हैं, जब हम अपनी वैल्यूज़ के साथ अलाइन होते हैं, तो हम अपने काम में ज़्यादा मीनिंग और फ़ुलफ़िलमेंट पाते हैं। वो कहती हैं कि मीनिंगफुल वर्क सिर्फ़ पेड जॉब्स तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये पेरेंटिंग, केयरगिविंग, क्रिएटिव परस्यूट्स, और किसी भी ऐसी एक्टिविटी में हो सकता है जो हमें पर्पस और कनेक्शन फील कराए। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपने काम में मीनिंग ढूंढना चाहिए, कंपैरिज़न और सेल्फ-डाउट को छोड़ना चाहिए, और अपनी वैल्यूज़ के साथ अलाइन होना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और अपने वर्क में ट्रू फ़ुलफ़िलमेंट पाने का रास्ता। जैसे एक आर्टिस्ट अपनी आर्ट से अपनी सोल को एक्सप्रेस करता है, वैसे ही हमें भी अपने वर्क से अपनी ट्रू सेल्फ को एक्सप्रेस करना चाहिए।


लेसन 10 : कल्टीवेटिंग लाफ्टर, सॉन्ग, एंड डांस: लेटिंग गो ऑफ़ बीइंग कूल एंड ऑलवेज इन कंट्रोल
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने मीनिंगफुल वर्क को कल्टीवेट करने की बात की। अब हम इस बुक के फाइनल और एक बहुत ही जॉयफुल लेसन पर बात करेंगे – कल्टीवेटिंग लाफ्टर, सॉन्ग, एंड डांस: लेटिंग गो ऑफ़ बीइंग कूल एंड ऑलवेज इन कंट्रोल, यानी हँसी, गीत और नृत्य का विकास: कूल रहने और हमेशा नियंत्रण में रहने को छोड़ना। ब्रेने ब्राउन कहती हैं कि लाफ्टर, सॉन्ग, और डांस तीन ऐसी एक्टिविटीज़ हैं जो हमें प्रेजेंट मोमेंट में एंकर करती हैं, हमें जॉय एक्सपीरियंस कराती हैं, और हमें दूसरों से कनेक्ट करती हैं। लाफ्टर स्ट्रेस को रिलीज़ करता है, मूड को इम्प्रूव करता है, और कनेक्शन को स्ट्रेंथन करता है। सॉन्ग इमोशन्स को एक्सप्रेस करने का एक पावरफुल वे है, और ये हमें अपनी स्पिरिचुअलिटी से कनेक्ट करता है। डांस बॉडी को मूव करने का, एनर्जी रिलीज़ करने का, और जॉय एक्सपीरियंस करने का एक नेचुरल वे है। ब्राउन कहती हैं कि हमारी सोसाइटी में हमें हमेशा ‘कूल’ रहने को कहा जाता है, यानी इमोशन्स को कंट्रोल में रखना, वल्नरेबल नहीं होना, और हमेशा परफ़ेक्ट दिखना। लेकिन ये एक बहुत ही लिमिटेड और अनफ़ुलफ़िलिंग वे ऑफ़ लिविंग है। जब हम हमेशा कंट्रोल में रहने की कोशिश करते हैं, तो हम अपनी वल्नरेबिलिटी को, अपनी ऑथेंटिसिटी को, और अपने जॉय को सैक्रिफाइस कर देते हैं। इसे एक फ़ैमिली गैदरिंग के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप अपनी फ़ैमिली के साथ एक गैदरिंग में हैं। ‘कूल’ रहने का मतलब ये होगा कि आप इमोशनलेस रहें, किसी से ज़्यादा इंटरैक्ट न करें, और किसी भी तरह का एक्साइटमेंट शो न करें। वहीं, लाफ्टर, सॉन्ग, और डांस आपको ये एनकरेज करेंगे कि आप एन्जॉय करें, हँसें, गाएँ, डांस करें, और फ़ैमिली के साथ कनेक्ट करें। ब्राउन कहती हैं कि जब हम लाफ्टर, सॉन्ग, और डांस को अपनी लाइफ का एक पार्ट बनाते हैं, तो हम ज़्यादा जॉयफुल, ज़्यादा कनेक्टेड, और ज़्यादा अलाइव फील करते हैं। वो कहती हैं कि ये एक्टिविटीज़ हमें अपनी इम्परफेक्शन्स को एम्ब्रेस करने में, वल्नरेबल होने में, और प्रेजेंट मोमेंट में फुल्ली प्रेजेंट होने में भी हेल्प करती हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें लाफ्टर, सॉन्ग, और डांस को अपनी लाइफ का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट बनाना चाहिए, और ‘कूल’ रहने और हमेशा कंट्रोल में रहने को छोड़ना चाहिए। यही है एक होलहार्टेड लाइफ जीने का, और ज़्यादा जॉयफुल और कनेक्टेड होने का रास्ता। जैसे एक रेनबो रेन के बाद आता है, वैसे ही जॉय भी वल्नरेबिलिटी और इम्परफेक्शन के बाद आता है।


तो दोस्तों, ये थे ब्रेने ब्राउन की “द गिफ्ट्स ऑफ़ इम्परफेक्शन” के दस पावरफुल लेसन्स। हमने सीखा कि कैसे अपनी इम्परफेक्शन्स को एम्ब्रेस करना, वल्नरेबल होना, और होलहार्टेडली जीना हमें ज़्यादा ऑथेंटिक, कनेक्टेड, और जॉयफुल बना सकता है। ये सिर्फ़ एक किताब की समरी नहीं, बल्कि एक गाइड है ज़्यादा ब्रेवली जीने की, ज़्यादा लव करने की, और ज़्यादा बिलॉन्ग करने की। उम्मीद है कि आपको ये समरी पसंद आयी होगी और आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर आपको ये समरी अच्छी लगी तो इसे लाइक और शेयर करें। मिलते हैं अगले समरी में, तब तक के लिए, एम्ब्रेस योर इम्परफेक्शन्स एंड लिव अ होलहार्टेड लाइफ!


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