😱 आपकी सबसे बड़ी हार, असल में आपकी सबसे बड़ी जीत बन सकती है? सोचिए, जिस दुश्मन को आप सालों से हराने की प्लानिंग कर रहे थे, अगर वो अचानक आपका सबसे बेहतरीन पार्टनर बन जाए तो क्या होगा? 🤯 ये कोई फिल्मी कहानी नहीं है, ये है Co-Opetition की दुनिया, जहाँ बिज़नेस के सारे पुराने नियम पलट जाते हैं।
यार, मुझे याद है जब मैंने पहली बार ये नाम सुना था—को-ऑपटीशन। लगा ये क्या खिचड़ी है? बिज़नेस में तो एक ही रूल होता है: 'मारो या मारे जाओ'। हम हमेशा इसी माइंडसेट में रहे हैं कि मार्केट शेयर एक पाई (pie) की तरह है—फिक्सड। अगर मैंने एक टुकड़ा लिया, तो दूसरे का टुकड़ा छोटा हो जाएगा। हम सोचते हैं कि कंपटीशन का मतलब है जंग, और को-ऑपरेशन का मतलब है सरेंडर। पर इस किताब (Co-Opetition by Adam Brandenburger and Barry Nalebuff) ने मेरे सोचने का तरीका 360 डिग्री घुमा दिया।
बात शुरू होती है एक छोटे शहर के दो दोस्तों से—राहुल और मनोज। दोनों की अपनी-अपनी चाय की दुकानें थीं, अगल-बगल। राहुल की 'द देसी चाय' और मनोज की 'कॉफी विथ चाय'। दोनों के बीच सुबह से शाम तक घमासान चलता था। राहुल ने दाम घटाए, मनोज ने एक बिस्किट फ्री कर दिया। राहुल ने अपनी दुकान पेंट करवाई, मनोज ने एसी लगवा दिया। उनका सारा फोकस एक-दूसरे को नीचा दिखाने में था। नतीजा क्या हुआ? दोनों अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा मार्केटिंग और डिस्काउंट में उड़ा रहे थे। ग्राहक भी कन्फ्यूज्ड थे, क्योंकि दोनों की चाय अच्छी थी, पर दोनों हमेशा थके-हारे और टेंशन में रहते थे। एक दिन राहुल ने हिसाब लगाया: इस पूरे साल में दोनों ने मिलकर इतना पैसा फूँक दिया कि अगर वो एक-दूसरे को छेड़े बिना नॉर्मल दाम पर चाय बेचते, तो आज दोनों के पास एक-एक स्कूटी होती। 🛵
यहीं पर Co-Opetition का पहला सबक आता है: आपकी जीत, हमेशा दूसरे की हार नहीं होती। गेम थ्योरी की भाषा में इसे कहते हैं: वैल्यू-नेट (Value Net)। यह मत देखो कि तुम मार्केट से कितना लोगे (Competition), बल्कि यह देखो कि तुम मार्केट के लिए कितनी वैल्यू क्रिएट कर सकते हो (Co-operation)।
एक शाम, जब दोनों की दुकानें बंद थीं, मनोज ने हिम्मत करके राहुल को आवाज़ दी। "राहुल, सुन यार। हम दोनों पागलपन कर रहे हैं। इस मार्केट में सिर्फ एक ही चीज़ है जो हम दोनों को हरा रही है—वो है अपना एक-दूसरे से लड़ना।" राहुल ने भी सिर हिलाया। फिर उन्होंने बैठकर बात की।
उन्होंने देखा कि उनके मोहल्ले में सिर्फ चाय की दुकानें नहीं हैं, एक बड़ा कॉलेज है। कॉलेज के स्टूडेंट्स उनकी टारगेट ऑडियंस थे, पर वो अक्सर दूर के एक कैफे में जाते थे, क्योंकि वहाँ वाई-फाई था और बैठने की अच्छी जगह थी।
यहाँ उन्होंने Co-Opetition की स्ट्रेटेजी लगाई:
1. Cooperate (सहयोग): उन्होंने आपस में हाथ मिलाया। दोनों ने मिलकर उस जगह के मालिक से बात की जो उनके बीच में खाली पड़ी थी। दोनों ने मिलकर वहाँ एक 'चाय अड्डा' बनाया। राहुल की दुकान का स्पेशल मसाला चाय वहाँ भी बिकेगा, और मनोज की दुकान की स्पेशल कोल्ड कॉफी भी।
2. Compete (प्रतिस्पर्धा): लेकिन सिर्फ सहयोग नहीं। अपनी-अपनी दुकानों में उनकी प्रतिस्पर्धा बरकरार रही। राहुल की दुकान अपनी देसी मसाला चाय के लिए फेमस रही, और मनोज की दुकान अपनी कॉफी विथ चाय के लिए। अड्डे पर उन्हें प्रॉफिट शेयर करना था, लेकिन अपनी-अपनी दुकानों में वो अपना-अपना मुनाफा रखते थे।
इसका परिणाम क्या हुआ? कॉलेज के स्टूडेंट्स अब दूर नहीं जाते थे। अब उनके पास एक कूल स्पॉट था जहाँ उन्हें दोनों का बेस्ट मिलता था—बेहतरीन चाय और बेहतरीन कोल्ड कॉफी, साथ में फ्री वाई-फाई और बैठने की अच्छी जगह। अब मार्केट का पाई (pie) बड़ा हो गया था! उनका असली कम्पटीशन अब वो दूर वाला कैफे बन गया था, जिसे हराने के लिए अब वो दोनों मिलकर काम कर रहे थे। 🤝
समझो, Co-Opetition चार तत्वों पर काम करता है—Players (खिलाड़ी), Added Value (जोड़ी गई कीमत), Rules (नियम) और Tactics (रणनीति)।
1. Players (खिलाड़ी): यह सिर्फ कस्टमर और सप्लायर तक सीमित नहीं है। इसमें Competitors (प्रतिद्वंद्वी) और Complementors (पूरक) भी शामिल हैं। पूरक कौन होते हैं? वो जो आपके बिज़नेस को वैल्यू ऐड करते हैं। जैसे स्मार्टफोन के लिए ऐप बनाने वाले। वो ऐप्पल से कम्पटीशन नहीं कर रहे, वो ऐप्पल के फ़ोन को और ज़रूरी बना रहे हैं।
2. Added Value (जोड़ी गई कीमत): Co-Opetition का मास्टरस्ट्रोक यहीं पर है। यह पूछो: "जब मैं इस गेम में आता हूँ, तो मार्केट की वैल्यू कितनी बढ़ जाती है?" अगर आप और आपका प्रतिद्वंद्वी मिलकर कोई ऐसा प्रोडक्ट या सर्विस लाते हैं जिससे ग्राहक को बहुत ज़्यादा फ़ायदा होता है, तो पूरा मार्केट साइज़ बढ़ जाता है। जैसे, Sony और Philips ने मिलकर CD का फॉर्मेट बनाया। वो कॉम्पटीटर थे, पर उन्होंने मिलकर पूरे म्यूजिक इंडस्ट्री की वैल्यू बढ़ा दी।
3. Rules (नियम): गेम के रूल्स! क्या आप जानते हैं कि कई बार कॉम्पटीटर मिलकर लॉबी करते हैं ताकि सरकार नए कॉमन रूल्स बनाए? ये रूल्स सभी को फ़ायदा पहुँचाते हैं। जैसे, एक ही इंडस्ट्री की कंपनियाँ मिलकर स्टैंडर्डाइजेशन पर काम करती हैं, ताकि ग्राहक को पता हो कि मिनिमम क्वालिटी क्या है। ये सहयोग है!
4. Tactics (रणनीति): यह वो कला है जहाँ आप सामने वाले की साइकोलॉजी को समझते हैं। कब सहयोग करना है और कब प्रतिस्पर्धा। यह शतरंज की तरह है जहाँ आप अपनी चालें पहले से सोचते हैं।
आजकल की दुनिया में, जहाँ टेक्नॉलजी इतनी तेज़ी से बदल रही है, कोई भी कंपनी अकेले नहीं जीत सकती। गूगल और सैमसंग एक-दूसरे से Competitors भी हैं और Complementors भी। सैमसंग एंड्रॉइड फ़ोन बेचकर गूगल के प्लेटफ़ॉर्म को बड़ा करती है, और गूगल अपनी सर्विसेज़ से सैमसंग के फ़ोन को और ताकतवर बनाती है। अगर गूगल अचानक सैमसंग के साथ काम करना बंद कर दे, तो दोनों को नुकसान होगा। इसे कहते हैं पॉज़िटिव-सम गेम (Positive-Sum Game)।
हमने हमेशा विन-लूस (Win-Lose) गेम खेला है। लेकिन Co-Opetition हमें विन-विन (Win-Win) की तरफ ले जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने प्रतिद्वंद्वी को सब कुछ दे देना है। इसका मतलब है कि जहाँ आपकी वैल्यू चेन (Value Chain) मिलती है, वहाँ सहयोग करो, ताकि पूरा पाई बड़ा हो जाए। और जहाँ आपकी फ़ाइनल प्रोडक्ट या सर्विस अलग होती है, वहाँ जमकर प्रतिस्पर्धा करो। 💪
सोचो अपनी कंपनी के बारे में:
* आपका सबसे बड़ा Competitor कौन है?
* आप दोनों मिलकर कौन सा बड़ा प्रोब्लम सॉल्व कर सकते हो, जिससे मार्केट साइज़ 10 गुना बड़ा हो जाए?
* आप दोनों के बीच कौन सा ऐसा खाली स्पेस है जहाँ कोई तीसरा प्लेयर आ सकता है?
अगर राहुल और मनोज सिर्फ एक-दूसरे से लड़ते रहते, तो शायद आज दोनों की दुकानें बंद हो गई होतीं, क्योंकि कॉलेज के स्टूडेंट्स बड़े कैफे में चले जाते। पर उन्होंने मिलकर वैल्यू क्रिएट की, और उस वैल्यू का फ़ायदा दोनों ने उठाया।
ज़िंदगी में भी यही है। आप अपने कलीग्स से कंपटीशन कर सकते हैं, पर अगर आप दोनों एक साथ मिलकर किसी बड़े प्रोजेक्ट को टाइम पर खत्म करते हैं, तो टीम को भी फ़ायदा होता है और आपका प्रमोशन भी आसान हो जाता है।
Co-Opetition कोई 'नाइस गाय' बनने की कहानी नहीं है। यह स्मार्ट बिज़नेस की कहानी है। यह दूर की सोच है। यह समझना है कि दुनिया इतनी बड़ी है कि हर किसी के लिए जगह है, बस हमें अपनी आँखें खोलकर देखनी हैं कि हमें लड़ना कहाँ है और हाथ कहाँ मिलाना है। याद रखना, आपका सबसे बड़ा कॉम्पटीटर आपका सबसे बड़ा एसेट बन सकता है, अगर आप उसे सही तरह से यूज़ करना सीख जाओ। 💡
तो अगली बार जब आप किसी Competitor को देखें, तो उसे सिर्फ दुश्मन मत मानो। उसे एक ऐसा Complementor मानो, जिसके साथ मिलकर आप दुनिया को हिला सकते हो। बिज़नेस की दुनिया में गेम चेंजर वो नहीं होते जो दूसरों को हराते हैं, बल्कि वो होते हैं जो खेल के नियम बदल देते हैं। Co-Opetition नियम बदलने का नाम है।
क्या आपकी लाइफ़ में या बिज़नेस में कोई ऐसा 'मनोज' है, जिसके साथ आपने कभी Co-Opetition करने की सोची ही नहीं? इस आर्टिकल को उस एक दोस्त, कलीग या प्रतिद्वंद्वी के साथ Share करें जिसके साथ आप 'विन-विन' गेम खेलना चाहते हैं। कमेंट में बताओ कि आपका सबसे बड़ा कॉम्पटीटर कौन है और आप दोनों मिलकर कौन सी नई वैल्यू क्रिएट कर सकते हैं!
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