ख़ुद से पूछो: "आज मैंने कितनी बार टालमटोल की?" 🤔 एक बार? दो बार? या फिर गिनना ही छोड़ दिया? ये सवाल सिर्फ़ एक सवाल नहीं है, ये उस ज़ंजीर की आवाज़ है जो आपको आगे बढ़ने से रोक रही है. क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो अलार्म को स्नूज़ करते हैं, ज़रूरी काम को 'बस पाँच मिनट' कहकर टालते हैं, और फिर रात को सोचते हैं कि काश दिन को सही से इस्तेमाल किया होता? 😔 हर रोज़ हम एक जंग लड़ते हैं – एक तरफ़ हमारी इच्छाशक्ति है और दूसरी तरफ़ आलस और बहाने. और ज़्यादातर बार, बहाने जीत जाते हैं. लेकिन क्यों? क्यों हम जानते हैं कि काम ज़रूरी है, फिर भी उसे कल पर टाल देते हैं? क्या काम टालने की ये आदत सिर्फ़ एक बुरी आदत है, या इसके पीछे कोई गहरा मनोवैज्ञानिक कारण है?
याद है, जब आप स्कूल में थे और कोई बड़ा असाइनमेंट मिला था? आपने शायद सोचा होगा, "अभी बहुत टाइम है, आराम से करूँगा." वो 'आराम से' कभी नहीं आया, और आख़िरी रात आपने कॉफ़ी के साथ जागकर काम पूरा किया. ये डेडलाइन का प्रेशर हमें एक्शन लेने पर मजबूर करता है. पर क्या सच में हमें सफलता पाने के लिए हमेशा आख़िरी मिनट के प्रेशर का इंतज़ार करना चाहिए? बिल्कुल नहीं. और यही बात हमें एडविन सी. ब्लिस (Edwin C. Bliss) की शानदार किताब 'डूइंग इट नाउ – एक्शन, नॉट एक्सक्यूज़ेज़' सिखाती है. ये किताब महज़ टिप्स की लिस्ट नहीं है; ये एक माइंडसेट चेंज करने की गाइड है. ब्लिस कहते हैं: सफ़लता का रहस्य एक ही शब्द में छिपा है – 'अभी' (Now).
चलिए, मैं आपको एक दोस्त की कहानी सुनाता हूँ. उसका नाम था आर्यन. आर्यन में टैलेंट कूट-कूटकर भरा था. उसके पास एक शानदार बिज़नेस आइडिया था – एक ऐसा ऐप जो लोगों की रोज़मर्रा की प्रॉब्लम सॉल्व कर सकता था. वह हर रोज़ सुबह प्लान बनाता था, कॉफ़ी पीते हुए नोटबुक में नोट्स लेता था, और दोस्तों को एक्साइटमेंट से बताता था. लेकिन जब बात एक्चुअल कोडिंग शुरू करने की आती, तो वह कहता, "यार, आज मूड नहीं है. बृहस्पतिवार से पक्का शुरू करूँगा." वह ईमेल चेक करने लगता, सोशल मीडिया स्क्रॉल करता, या नेटफ्लिक्स पर कोई सीरीज़ देखने लगता. हफ़्ते, महीने बीत गए, और उसका ऐप बस एक आइडिया बनकर रह गया. कुछ महीनों बाद, उसने देखा कि किसी और ने बिल्कुल वैसा ही ऐप लॉन्च कर दिया है और वह सुपरहिट हो गया है! 😥 आर्यन का दिल टूट गया. उसने मुझसे कहा, "यार, मौका मेरे पास था. मैंने बस देर कर दी." उसकी आँखों में पछतावा था – उस काम टालने की आदत का पछतावा जिसने उसका सपना तोड़ दिया.
क्या आप भी आर्यन हैं? क्या आपकी सफलता भी किसी कोने में टली हुई पड़ी है? ब्लिस बताते हैं कि हम प्रोक्रैस्टिनेट क्यों करते हैं. अक्सर, यह परफ़ेक्शनिज़्म का डर होता है. हम सोचते हैं कि हम काम को 100% परफ़ेक्ट ही करेंगे, और जब हमें लगता है कि हम अभी परफ़ेक्ट नहीं कर सकते, तो हम उसे टाल देते हैं. या कभी-कभी, काम इतना बड़ा लगता है कि हमें लगता है कि यह असंभव है. ब्लिस की फ़िलॉसफ़ी बहुत साफ़ है: ग़लतियाँ करो, पर एक्शन लो! परफ़ेक्शन से ज़्यादा ज़रूरी है प्रोग्रेस! 🚀
वह कहते हैं, अपने बड़े काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दो. यह बिल्कुल वैसा है जैसे आप एक पहाड़ पर चढ़ रहे हों. अगर आप ऊपर देखेंगे, तो आपको लगेगा कि यह असंभव है. लेकिन अगर आप सिर्फ़ अगले पाँच कदम पर ध्यान दें, तो पहाड़ चढ़ना आसान हो जाता है. इसे ब्लिस 'छोटे निवाला' (Small Bites) लेने की सलाह देते हैं. ज़रूरी नहीं कि आप पूरा काम एक दिन में ख़त्म करें, ज़रूरी यह है कि आप हर दिन कुछ करें. बस 20 मिनट का इरादा बनाओ, और देखो, 20 मिनट कब दो घंटे बन जाएँगे, आपको पता भी नहीं चलेगा.
एक और घातक आदत जो हम सबमें है, वह है 'अव्यवस्थित शुरुआत' यानी Unorganized Start. हम काम शुरू तो करना चाहते हैं, लेकिन हमें पता ही नहीं होता कि शुरू कहाँ से करें. ब्लिस कहते हैं, अपनी मेज़ को साफ़ करो, अपने टूल को तैयार रखो, और सबसे ज़रूरी काम को सबसे पहले रखो. इसे कहते हैं 'प्रायॉरिटी सेटिंग' (Priority Setting). अपनी टू-डू लिस्ट को एक बार देखो और ख़ुद से पूछो: "आज अगर मैं सिर्फ़ एक चीज़ करूँ, तो वह सबसे ज़्यादा असरदार क्या होगी?" जो चीज़ सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, उसे नंबर वन पर रखो और उसे पहले ख़त्म करो, भले ही वह सबसे मुश्किल क्यों न हो. जब आप सबसे मुश्किल काम को सुबह-सुबह निपटा लेते हैं, तो आपको एक ज़बरदस्त कॉन्फ़िडेंस मिलता है जो आपका पूरा दिन एनर्जी से भर देता है. 💪
ब्लिस बहाने बनाने वालों पर सख़्त हैं. वह कहते हैं, बहाने सिर्फ़ एक मीठा ज़हर हैं. "मेरे पास टाइम नहीं है," "मेरे पास पैसे नहीं हैं," "मैं अभी तैयार नहीं हूँ." यह सब बकवास है! सबके पास 24 घंटे हैं. अमीर, ग़रीब, सफल, असफल – सबके पास. तो क्या चीज़ फ़र्क़ डालती है? फ़र्क़ डालता है कि आप उन 24 घंटों का इस्तेमाल कैसे करते हैं. अगर आप कह रहे हैं कि आपके पास किसी चीज़ के लिए टाइम नहीं है, तो इसका मतलब है कि वह चीज़ आपकी प्रायॉरिटी लिस्ट में काफ़ी नीचे है. सच्चाई को स्वीकार करो और झूठे बहानों से पीछा छुड़ाओ.
डूइंग इट नाउ का एक और गोल्डन रूल है: डेली मोमेंटम (Daily Momentum). ज़रा सोचिए, एक ट्रेन को चलने में कितनी एनर्जी लगती है? बहुत ज़्यादा! लेकिन एक बार जब वह चलने लगती है, तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है. हमारा दिमाग़ भी ऐसा ही है. एक बार जब आप एक्शन लेना शुरू कर देते हैं, तो एक्शन लेना आसान हो जाता है. इसलिए ब्लिस कहते हैं, बस शुरू करो! सबसे पहले छोटी-सी जीत हासिल करो. जैसे, अगर आपको एक किताब लिखनी है, तो बस एक पैराग्राफ़ लिखो. अगर आपको एक्सरसाइज़ करनी है, तो बस दो पुश-अप्स करो. शुरुआत ही सबसे मुश्किल होती है, लेकिन एक बार जब ट्रेन चल जाती है, तो स्पीड अपने आप बन जाती है. 🏃♂️
बहुत से लोग सोचते रहते हैं. वे प्लानिंग करते रहते हैं, स्ट्रेटेजी बनाते रहते हैं, टूल ख़रीदते रहते हैं, लेकिन कभी शुरू नहीं करते. ब्लिस इस बात पर ज़ोर देते हैं कि एक्शन ही ज्ञान का सबसे अच्छा स्रोत है. आप किताबें पढ़कर, वीडियो देखकर, या लोगों से पूछकर सिर्फ़ 10% सीखते हैं. असली लर्निंग तो तब होती है जब आप काम करते हैं, ग़लतियाँ करते हैं, और उन्हें सुधारते हैं. अगर आप परफ़ेक्ट टाइम का इंतज़ार कर रहे हैं, तो आप हमेशा इंतज़ार करते रहेंगे. क्योंकि परफ़ेक्ट टाइम नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं है. अभी ही सबसे अच्छा टाइम है! इस बात को अपने दिल में बिठा लो. ⏰
अब, एक और इंपॉर्टेंट बात: डिस्ट्रैक्शन्स (Distractions). हमारे चारों तरफ़ डिस्ट्रैक्शन्स का जाल बिछा हुआ है. फ़ोन, नोटिफ़िकेशन, ईमेल, अनचाही कॉल... ये सब मिलकर हमारी एकाग्रता को तोड़ते हैं. ब्लिस सलाह देते हैं कि अपने काम के लिए एक खास टाइम और खास जगह बनाओ. जब आप उस जगह पर बैठो, तो फ़ोन को साइलेंट कर दो, और दुनिया से कुछ देर के लिए कट जाओ. ये कोई बलिदान नहीं है, ये अपने काम के लिए इज़्ज़त दिखाना है. अपनी उत्पादकता के साथ समझौता मत करो. फ़ोकस ही आपकी सबसे बड़ी ताक़त है. 🎯
आख़िरी बात, इमोशनल पेऑफ (Emotional Payoff). हम प्रोक्रैस्टिनेट इसलिए करते हैं क्योंकि हम उस काम को करने से होने वाले दर्द (जैसे मुश्किल, बोरियत, या असफलता का डर) पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, बजाय इसके कि उसे पूरा करने से मिलने वाली खुशी और फ़ायदे पर ध्यान दें. ब्लिस कहते हैं, काम पूरा होने के बाद आपको जो संतुष्टि मिलेगी, जो ख़ुशी मिलेगी, जो कॉन्फ़िडेंस मिलेगा, उसे महसूस करो. जब भी आपका मन काम टालने का करे, तो आँखें बंद करो और सफलता के उस अहसास को याद करो. यह इमोशनल मोटिवेशन आपको एक्शन लेने पर मजबूर कर देगा. आज का एक्शन आपके कल की सफलता की गारंटी है.
सोचिए, अगर आर्यन ने उस दिन बहानों के बजाय एक्शन लिया होता, तो आज उसकी ज़िंदगी कहाँ होती. वह एक सफल बिज़नेस ओनर होता. लेकिन उसने मौका गँवा दिया. क्या आप भी वही ग़लती दोहराना चाहते हैं? नहीं!
आपकी सफलता और ख़ुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितना प्लान करते हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितना एक्शन लेते हैं. ब्लिस की यह किताब एक झकझोर देने वाली याद है कि लाइफ़ बहुत छोटी है और आपके सपने बहुत बड़े हैं. उन्हें सिर्फ़ प्लानिंग की धूल में मत जमने दो.
आज एक फ़ैसला करो: अब और बहाने नहीं! जो काम आपने हफ़्तों से टाला हुआ है, उसे अभी, इसी वक़्त शुरू करो. चाहे वह ईमेल भेजना हो, फ़ाइल ऑर्गनाइज़ करना हो, या अपने सपनों पर पहला कदम बढ़ाना हो. छोटी शुरुआत, बड़ा बदलाव लाएगी. डूइंग इट नाउ सिर्फ़ एक स्ट्रेटेजी नहीं है; यह एक फ़लसफ़ा है. इसे अपनाओ!
तो, मेरे दोस्त, आप कब शुरू कर रहे हैं? कल? नहीं! अगले हफ़्ते? नहीं!
अभी, इसी वक़्त! 💪🔥 आपकी लाइफ़ का सबसे अच्छा वर्ज़न आपका इंतज़ार कर रहा है.
यह किताब पढ़कर एक बात साफ़ हो जाती है कि प्रोक्रैस्टिनेशन कोई टाइम मैनेजमेंट प्रॉब्लम नहीं है, यह एक इमोशनल मैनेजमेंट प्रॉब्लम है. हमें डर से लड़ना है, परफ़ेक्शनिज़्म से लड़ना है, और सबसे ज़रूरी, ख़ुद से लड़ना है. एडविन सी. ब्लिस का सीधा-साधा मंत्र याद रखो: काम करो, बहाने नहीं!
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप सबसे पहला काम क्या करने वाले हैं जिसे आप टाल रहे थे? कमेंट में हमें बताओ और अपने उस दोस्त को टैग करो जिसे यह झकझोरने वाली पोस्ट पढ़ने की सख़्त ज़रूरत है! एक्शन लो! और हाँ, अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया, तो इसे शेयर ज़रूर करना! ❤️🔄
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