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Mindset: The New Psychology of Success (Hindi)



आज हम एक ऐसी किताब की बात करेंगे जो आपकी सोच को पूरी तरह से बदल देगी – कैरल ड्वेक की “माइंडसेट: द न्यू साइकोलॉजी ऑफ़ सक्सेस”। ये सिर्फ़ एक किताब नहीं, बल्कि एक गाइड है अपनी पोटेंशियल को अनलॉक करने की, अपनी लिमिट्स को तोड़ने की, और एक ज़्यादा सक्सेसफुल लाइफ जीने की। इस समरी में हम इस बुक के दस सबसे ज़रूरी लेसन्स को समझेंगे, एकदम सिंपल हिंदी में, ताकि आप भी अपना माइंडसेट चेंज कर सकें और अपनी लाइफ को ट्रांसफॉर्म कर सकें। तो चलिए, शुरू करते हैं इस माइंड-ओपनिंग जर्नी को!


लेसन 1 : द टू माइंडसेट्स - फिक्स्ड वर्सेस ग्रोथ
दोस्तों, “माइंडसेट” का सबसे पहला और फ़ाउंडेशनल लेसन है दो तरह की मानसिकताएँ – फिक्स्ड माइंडसेट और ग्रोथ माइंडसेट। कैरल ड्वेक कहती हैं कि हर इंसान के पास इन दोनों में से कोई एक माइंडसेट होता है, और ये माइंडसेट हमारी लाइफ के हर एस्पेक्ट को इम्पैक्ट करता है, चाहे वो हमारी रिलेशनशिप्स हों, हमारा करियर हो, या हमारी पर्सनल ग्रोथ हो। अब ये फिक्स्ड माइंडसेट क्या होता है? फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग ये मानते हैं कि उनकी एबिलिटीज, उनकी इंटेलिजेंस, उनके टैलेंट्स, सब कुछ फ़िक्स्ड है, यानी ये चेंज नहीं हो सकता। वो ये मानते हैं कि या तो वो स्मार्ट हैं, या नहीं हैं, या तो वो टैलेंटेड हैं, या नहीं हैं, और इसमें कुछ भी चेंज नहीं किया जा सकता। इस माइंडसेट वाले लोग चैलेंजेस से डरते हैं, क्योंकि उन्हें डर लगता है कि कहीं वो फ़ेल न हो जाएँ, और कहीं उनकी ‘फ़िक्स्ड’ एबिलिटीज एक्सपोज न हो जाएँ। वो क्रिटिसिज़्म से भी डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि क्रिटिसिज़्म उनकी ‘फ़िक्स्ड’ आइडेंटिटी पर अटैक है। अब बात करते हैं ग्रोथ माइंडसेट की। ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग ये मानते हैं कि उनकी एबिलिटीज, उनकी इंटेलिजेंस, उनके टैलेंट्स, सब कुछ डेवलप किया जा सकता है, थ्रू एफर्ट, थ्रू लर्निंग, थ्रू प्रैक्टिस। वो ये मानते हैं कि चैलेंजेस ऑपर्च्युनिटीज़ हैं ग्रो करने की, सीखने की। वो क्रिटिसिज़्म को फ़ीडबैक के रूप में देखते हैं, जिससे वो इम्प्रूव कर सकते हैं। इसे एक स्कूल के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक स्टूडेंट अगर किसी टेस्ट में फ़ेल हो जाता है, तो वो ये सोचेगा कि वो स्मार्ट नहीं है, और वो गिव अप कर देगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक स्टूडेंट ये सोचेगा कि उसे और ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है, और वो अपनी मिस्टेक्स से सीखेगा। ड्वेक कहती हैं कि ये माइंडसेट सिर्फ़ एकेडमिक्स तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये हमारी लाइफ के हर एरिया पर अप्लाई होता है। जब हम ग्रोथ माइंडसेट अडॉप्ट करते हैं, तो हम अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक कर सकते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें फिक्स्ड माइंडसेट से ग्रोथ माइंडसेट की तरफ़ शिफ्ट करना चाहिए। हमें ये बिलीव करना चाहिए कि हमारी एबिलिटीज डेवलप की जा सकती हैं, और चैलेंजेस ऑपर्च्युनिटीज़ हैं ग्रो करने की। यही है “माइंडसेट” का फ़ाउंडेशन, जो हमें एक ज़्यादा सक्सेसफुल और फ़ुलफ़िलिंग लाइफ जीने के लिए इंस्पायर करता है। जैसे एक प्लांट सीड से एक ट्री बनता है, वैसे ही हमारी एबिलिटीज भी एफर्ट और लर्निंग से ग्रो करती हैं।


लेसन 2 : इनसाइड द माइंडसेट्स
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने फिक्स्ड और ग्रोथ माइंडसेट के बारे में जाना। अब हम इन माइंडसेट्स के और डीपर एस्पेक्ट्स को एक्सप्लोर करेंगे – इनसाइड द माइंडसेट्स, यानी मानसिकताओं के अंदर। कैरल ड्वेक कहती हैं कि ये माइंडसेट्स सिर्फ़ बिलीव्स नहीं हैं, बल्कि ये हमारे थॉट्स, हमारे फ़ीलिंग्स, और हमारे बिहेवियर्स को भी इम्पैक्ट करते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग अक्सर जज्मेंटल होते हैं, यानी वो ख़ुद को और दूसरों को लगातार जज करते रहते हैं। वो ये प्रूव करने में लगे रहते हैं कि वो कितने स्मार्ट हैं, कितने टैलेंटेड हैं। वो एफर्ट को नेगेटिवली देखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उन्हें ज़्यादा एफर्ट करना पड़ रहा है, तो इसका मतलब है कि वो इनफ़ स्मार्ट नहीं हैं। वो दूसरों की सक्सेस से भी थ्रेटंड फील करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि दूसरों की सक्सेस उनकी अपनी ‘फ़िक्स्ड’ एबिलिटीज को चैलेंज करती है। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग लर्निंग ओरिएंटेड होते हैं, यानी वो हमेशा सीखने और इम्प्रूव करने पर फोकस करते हैं। वो एफर्ट को ज़रूरी मानते हैं ग्रोथ के लिए। वो दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होते हैं, और उसे एक ऑपर्च्युनिटी के रूप में देखते हैं सीखने की। इसे एक वर्कप्लेस के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक एम्प्लोयी अगर किसी प्रोजेक्ट में फ़ेल हो जाता है, तो वो ये सोचेगा कि वो इस जॉब के लिए इनफ़ कैपेबल नहीं है, और वो डिसकरेज हो जाएगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक एम्प्लोयी ये सोचेगा कि ये एक लर्निंग ऑपर्च्युनिटी है, और वो अपनी मिस्टेक्स से सीखेगा ताकि नेक्स्ट टाइम बेटर कर सके। ड्वेक कहती हैं कि ये माइंडसेट्स हमारे रिलेशनशिप्स को भी इम्पैक्ट करते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग रिलेशनशिप्स में भी जजमेंटल होते हैं, और वो कॉन्फ़्लिक्ट से डरते हैं। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग रिलेशनशिप्स को ग्रो करने और सीखने का एक ऑपर्च्युनिटी मानते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि ये माइंडसेट्स सिर्फ़ थ्योरी नहीं हैं, बल्कि ये हमारी डेली लाइफ को इम्पैक्ट करते हैं। जब हम अपने थॉट्स, फ़ीलिंग्स, और बिहेवियर्स को ऑब्ज़र्व करते हैं, तो हम ये पहचान सकते हैं कि हमारा माइंडसेट क्या है, और हम उसे ग्रोथ माइंडसेट की तरफ़ शिफ्ट कर सकते हैं। जैसे एक ड्राइवर अपनी गाड़ी को कंट्रोल करता है, वैसे ही हम भी अपने माइंडसेट को कंट्रोल कर सकते हैं।


लेसन 3 : नोइंग योर माइंडसेट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने देखा कि माइंडसेट्स हमारे थॉट्स, फ़ीलिंग्स और बिहेवियर्स को कैसे इम्पैक्ट करते हैं। अब हम बात करेंगे अपनी मानसिकता को पहचानने की – नोइंग योर माइंडसेट, यानी अपनी मानसिकता को जानना। कैरल ड्वेक कहती हैं कि पहला स्टेप है ये रियलाइज़ करना कि हमारे पास एक माइंडसेट है, और ये माइंडसेट हमारी लाइफ को इम्पैक्ट कर रहा है। ज़्यादातर लोग अनकॉन्शियसली एक माइंडसेट से ऑपरेट करते हैं, यानी उन्हें पता ही नहीं होता कि उनकी सोच किस तरह से पैटर्नड है। जब हम अपनी सोच को ऑब्ज़र्व करते हैं, तभी हम ये पहचान पाते हैं कि हमारा माइंडसेट फिक्स्ड है या ग्रोथ। कुछ कॉमन इंडिकेटर्स हैं जो हमें ये जानने में हेल्प कर सकते हैं कि हमारा माइंडसेट क्या है। अगर हम चैलेंजेस से डरते हैं, अगर हम क्रिटिसिज़्म से डिफ़ेंसिव हो जाते हैं, अगर हम दूसरों की सक्सेस से थ्रेटंड फील करते हैं, अगर हम एफर्ट को नेगेटिवली देखते हैं, तो ये इंडिकेट करता है कि हमारा माइंडसेट फिक्स्ड है। वहीं, अगर हम चैलेंजेस को ऑपर्च्युनिटीज़ मानते हैं, अगर हम क्रिटिसिज़्म से सीखते हैं, अगर हम दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होते हैं, अगर हम एफर्ट को ज़रूरी मानते हैं ग्रोथ के लिए, तो ये इंडिकेट करता है कि हमारा माइंडसेट ग्रोथ है। इसे एक रिलेशनशिप के कॉन्टेक्स्ट में समझते हैं। अगर आप किसी रिलेशनशिप में कॉन्फ़्लिक्ट से डरते हैं, अगर आप हमेशा ये प्रूव करने में लगे रहते हैं कि आप सही हैं, अगर आप पार्टनर की मिस्टेक्स पर ज़्यादा फोकस करते हैं, तो ये फिक्स्ड माइंडसेट का साइन है। वहीं, अगर आप कॉन्फ़्लिक्ट को कम्युनिकेशन और अंडरस्टैंडिंग का ऑपर्च्युनिटी मानते हैं, अगर आप पार्टनर की ग्रोथ को सपोर्ट करते हैं, अगर आप अपनी मिस्टेक्स को एक्सेप्ट करते हैं, तो ये ग्रोथ माइंडसेट का साइन है। ड्वेक कहती हैं कि ये जानना बहुत इम्पोर्टेन्ट है कि किसी के पास प्योरली फिक्स्ड या प्योरली ग्रोथ माइंडसेट नहीं होता। हम अलग-अलग सिचुएशन्स में अलग-अलग माइंडसेट शो कर सकते हैं। लेकिन जब हम अपनी डोमिनेंट माइंडसेट को पहचान लेते हैं, तो हम उसे ग्रोथ माइंडसेट की तरफ़ शिफ्ट करने का एफर्ट कर सकते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें अपनी सोच को ऑब्ज़र्व करना चाहिए, और अपनी मानसिकता को पहचानना चाहिए। यही है ग्रोथ की जर्नी का पहला स्टेप। जैसे एक डॉक्टर डायग्नोसिस करके ट्रीटमेंट डिसाइड करता है, वैसे ही हमें भी अपनी मानसिकता को डायग्नोज़ करके उसे चेंज करने का एफर्ट करना चाहिए।


लेसन 4 : क्रिएटिंग अ ग्रोथ माइंडसेट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने अपनी मानसिकता को पहचानने की बात की। अब हम बात करेंगे एक ग्रोथ माइंडसेट क्रिएट करने की – क्रिएटिंग अ ग्रोथ माइंडसेट, यानी एक विकास मानसिकता का निर्माण। कैरल ड्वेक कहती हैं कि फिक्स्ड माइंडसेट से ग्रोथ माइंडसेट में शिफ्ट होना एक प्रोसेस है, एक जर्नी है, और ये पॉसिबल है। ये कोई रातों-रात होने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि इसमें एफर्ट, प्रैक्टिस, और कंसिस्टेंसी चाहिए। पहला स्टेप है ये बिलीव करना कि चेंज पॉसिबल है, कि हमारी एबिलिटीज डेवलप की जा सकती हैं। जब हम ये बिलीव करते हैं, तभी हम एफर्ट करने के लिए, सीखने के लिए, और ग्रो करने के लिए ओपन होते हैं। दूसरा स्टेप है चैलेंजेस को एम्ब्रेस करना, यानी उनसे डरना नहीं, बल्कि उन्हें ऑपर्च्युनिटीज़ मानना ग्रो करने की। जब हम चैलेंजेस का सामना करते हैं, तभी हम अपनी लिमिट्स को पुश करते हैं, तभी हम नई स्किल्स सीखते हैं, और तभी हम स्ट्रॉन्ग बनते हैं। तीसरा स्टेप है एफर्ट को एम्ब्रेस करना, यानी ये समझना कि एफर्ट ज़रूरी है ग्रोथ के लिए। जब हम एफर्ट करते हैं, तभी हम अपनी एबिलिटीज को डेवलप कर पाते हैं। चौथा स्टेप है क्रिटिसिज़्म से सीखना, यानी उसे डिफ़ेंसिवली न लेना, बल्कि उसे फ़ीडबैक के रूप में देखना जिससे हम इम्प्रूव कर सकें। पाँचवा स्टेप है दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होना, यानी उनसे थ्रेटंड फील न करना, बल्कि उनसे सीखना और मोटिवेट होना। इसे एक लर्निंग अ न्यू लैंग्वेज के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। अगर आप एक नई लैंग्वेज सीखना चाहते हैं, तो शुरू में आपको बहुत सारे चैलेंजेस का सामना करना पड़ेगा, आपको बहुत एफर्ट करना पड़ेगा, और आपको बहुत सारी मिस्टेक्स भी करनी पड़ेंगी। लेकिन अगर आपके पास ग्रोथ माइंडसेट है, तो आप इन चैलेंजेस से डरेंगे नहीं, आप एफर्ट करते रहेंगे, और आप अपनी मिस्टेक्स से सीखते रहेंगे। और धीरे-धीरे, आप उस लैंग्वेज में फ़्लूएंट हो जाएँगे। ड्वेक कहती हैं कि ग्रोथ माइंडसेट सिर्फ़ इंडिविजुअल्स के लिए ही नहीं, बल्कि ऑर्गेनाइजेशन्स और सोसाइटीज़ के लिए भी बहुत इम्पोर्टेन्ट है। जब एक ऑर्गेनाइजेशन में ग्रोथ माइंडसेट होता है, तो वो इनोवेशन और ग्रोथ को प्रमोट करता है। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें एक ग्रोथ माइंडसेट कल्टीवेट करना चाहिए, यानी ये बिलीव करना चाहिए कि हमारी एबिलिटीज डेवलप की जा सकती हैं, और चैलेंजेस ऑपर्च्युनिटीज़ हैं ग्रो करने की। यही है अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक करने का रास्ता। जैसे एक मसल एक्सरसाइज से स्ट्रॉन्ग होता है, वैसे ही हमारी एबिलिटीज भी एफर्ट और लर्निंग से स्ट्रॉन्ग होती हैं।


लेसन 5 : माइंडसेट एंड अचीवमेंट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने ग्रोथ माइंडसेट क्रिएट करने के तरीकों पर बात की। अब हम देखेंगे कि माइंडसेट हमारी अचीवमेंट को कैसे इम्पैक्ट करता है – माइंडसेट एंड अचीवमेंट, यानी मानसिकता और उपलब्धि। कैरल ड्वेक कहती हैं कि हमारा माइंडसेट हमारी सक्सेस को प्रेडिक्ट करता है, यानी ये बताता है कि हम कितने सक्सेसफुल होंगे। फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग अक्सर अपनी पोटेंशियल को अचीव नहीं कर पाते, क्योंकि वो चैलेंजेस से डरते हैं, एफर्ट को अवॉइड करते हैं, और क्रिटिसिज़्म से डिफ़ेंसिव हो जाते हैं। वो अपनी ‘फ़िक्स्ड’ एबिलिटीज को प्रूव करने में इतने बिज़ी रहते हैं कि वो एक्चुअली ग्रो नहीं कर पाते। वो अक्सर शॉर्ट-टर्म गोल्स पर फोकस करते हैं, और लॉन्ग-टर्म ग्रोथ को सैक्रिफाइस कर देते हैं। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग अपनी पोटेंशियल को मैक्सिमाइज़ करते हैं, क्योंकि वो चैलेंजेस को एम्ब्रेस करते हैं, एफर्ट को ज़रूरी मानते हैं, और क्रिटिसिज़्म से सीखते हैं। वो लॉन्ग-टर्म ग्रोथ पर फोकस करते हैं, और शॉर्ट-टर्म सेटबैक्स से डिसकरेज नहीं होते। इसे एक बिज़नेस के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक एंटरप्रेन्योर अगर किसी नए प्रोडक्ट को लॉन्च करता है और वो फ़्लॉप हो जाता है, तो वो ये सोचेगा कि वो बिज़नेस के लिए बना ही नहीं है, और वो गिव अप कर देगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक एंटरप्रेन्योर ये सोचेगा कि ये एक लर्निंग ऑपर्च्युनिटी है, और वो अपनी मिस्टेक्स से सीखेगा ताकि नेक्स्ट टाइम बेटर कर सके। ड्वेक कहती हैं कि माइंडसेट सिर्फ़ बिज़नेस तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये स्पोर्ट्स, आर्ट, रिलेशनशिप्स, पेरेंटिंग, और लाइफ के हर एरिया पर अप्लाई होता है। जब हम ग्रोथ माइंडसेट अडॉप्ट करते हैं, तो हम ज़्यादा रेज़िलिएंट बनते हैं, ज़्यादा मोटिवेटेड रहते हैं, और ज़्यादा सक्सेसफुल होते हैं। वो कहती हैं कि सक्सेस सिर्फ़ टैलेंट या इंटेलिजेंस पर डिपेंड नहीं करती, बल्कि ये माइंडसेट पर भी डिपेंड करती है। एक इंसान जिसके पास कम टैलेंट है लेकिन ग्रोथ माइंडसेट है, वो उस इंसान से ज़्यादा अचीव कर सकता है जिसके पास ज़्यादा टैलेंट है लेकिन फिक्स्ड माइंडसेट है। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमारा माइंडसेट हमारी अचीवमेंट को डायरेक्टली इम्पैक्ट करता है। जब हम ग्रोथ माइंडसेट कल्टीवेट करते हैं, तो हम अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक कर सकते हैं और ज़्यादा सक्सेसफुल लाइफ जी सकते हैं। जैसे एक फार्मर अपनी क्रॉप्स को कल्टीवेट करता है, वैसे ही हमें अपने माइंडसेट को कल्टीवेट करना चाहिए ताकि हम अपनी सक्सेस को कल्टीवेट कर सकें।


लेसन 6: एफर्ट: द की टू अचीवमेंट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने देखा कि माइंडसेट हमारी अचीवमेंट को कैसे प्रभावित करता है। अब हम एक और महत्वपूर्ण पहलू पर बात करेंगे जो ग्रोथ माइंडसेट से गहराई से जुड़ा है – एफर्ट: द की टू अचीवमेंट, यानी प्रयास: उपलब्धि की कुंजी। कैरल ड्वेक कहती हैं कि फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग एफर्ट को नेगेटिवली देखते हैं। उन्हें लगता है कि अगर उन्हें किसी चीज़ में ज़्यादा एफर्ट करना पड़ रहा है, तो इसका मतलब है कि वो उस चीज़ के लिए नेचुरली टैलेंटेड नहीं हैं, या वो इनफ़ स्मार्ट नहीं हैं। वो एफर्ट को अपनी एबिलिटीज की कमी का साइन मानते हैं। इसलिए वो चैलेंजेस से बचते हैं, क्योंकि उन्हें डर लगता है कि कहीं उन्हें ज़्यादा एफर्ट न करना पड़े, और कहीं उनकी ‘कमी’ एक्सपोज न हो जाए। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग एफर्ट को ग्रोथ का एक एसेंशियल पार्ट मानते हैं। उन्हें पता है कि एफर्ट के बिना कोई भी इम्प्रूवमेंट पॉसिबल नहीं है। वो एफर्ट को एक ऑपर्च्युनिटी मानते हैं अपनी स्किल्स को डेवलप करने की, अपनी एबिलिटीज को स्ट्रेच करने की। उन्हें चैलेंजेस पसंद होते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यही वो जगह है जहाँ वो सबसे ज़्यादा सीखते हैं और ग्रो करते हैं। इसे एक म्यूज़िशियन के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक म्यूज़िशियन अगर किसी पीस को बजाने में स्ट्रगल करता है, तो वो ये सोचेगा कि वो म्यूज़िक के लिए बना ही नहीं है, और वो गिव अप कर देगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक म्यूज़िशियन ये सोचेगा कि उसे और प्रैक्टिस करने की ज़रूरत है, और वो तब तक प्रैक्टिस करता रहेगा जब तक वो उस पीस को परफेक्टली न बजा ले। ड्वेक कहती हैं कि ये एटीट्यूड सिर्फ़ म्यूज़िक तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये लाइफ के हर एरिया पर अप्लाई होता है। जब हम एफर्ट को एम्ब्रेस करते हैं, तो हम ज़्यादा रेज़िलिएंट बनते हैं, ज़्यादा परसिस्टेंट बनते हैं, और ज़्यादा सक्सेसफुल होते हैं। वो कहती हैं कि सक्सेस सिर्फ़ टैलेंट पर ही डिपेंड नहीं करती, बल्कि ये एफर्ट पर भी डिपेंड करती है। एक इंसान जिसके पास कम टैलेंट है लेकिन ज़्यादा एफर्ट करने की विलिंगनेस है, वो उस इंसान से ज़्यादा अचीव कर सकता है जिसके पास ज़्यादा टैलेंट है लेकिन एफर्ट करने की विलिंगनेस कम है। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें एफर्ट को एम्ब्रेस करना चाहिए, उसे नेगेटिव नहीं बल्कि पॉज़िटिव मानना चाहिए। यही है अचीवमेंट की कुंजी, यही है ग्रोथ का रास्ता। जैसे एक बॉडीबिल्डर एक्सरसाइज करके अपनी मसल्स को स्ट्रॉन्ग बनाता है, वैसे ही हम भी एफर्ट करके अपनी एबिलिटीज को स्ट्रॉन्ग बना सकते हैं।


लेसन 7 : क्रिटिसिज़्म: अ फ़्रेंड नॉट एन एनिमी
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने एफर्ट के महत्व पर बात की। अब हम एक और ऐसे टॉपिक पर बात करेंगे जिससे ज़्यादातर लोग डरते हैं – क्रिटिसिज़्म, यानी आलोचना। कैरल ड्वेक कहती हैं कि फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग क्रिटिसिज़्म को एक पर्सनल अटैक मानते हैं। उन्हें लगता है कि क्रिटिसिज़्म उनकी ‘फ़िक्स्ड’ एबिलिटीज पर, उनकी आइडेंटिटी पर एक अटैक है। इसलिए वो क्रिटिसिज़्म से डिफ़ेंसिव हो जाते हैं, उसे इग्नोर करते हैं, या उसे पर्सनली लेते हैं। वो क्रिटिसिज़्म को एक फ़ेलियर का साइन मानते हैं। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग क्रिटिसिज़्म को एक वैल्यूएबल फ़ीडबैक के रूप में देखते हैं। उन्हें पता है कि क्रिटिसिज़्म उन्हें इम्प्रूव करने में हेल्प कर सकता है, उन्हें अपनी मिस्टेक्स से सीखने का ऑपर्च्युनिटी देता है। वो क्रिटिसिज़्म को एक दोस्त मानते हैं, एक ऐसे दोस्त जो उन्हें बेटर बनने में हेल्प कर रहा है। इसे एक राइटर के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक राइटर अगर अपनी स्टोरी पर नेगेटिव फ़ीडबैक रिसीव करता है, तो वो ये सोचेगा कि वो अच्छा राइटर नहीं है, और वो डिसकरेज हो जाएगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक राइटर उस फ़ीडबैक को केयरफुली एनालाइज़ करेगा, देखेगा कि कहाँ इम्प्रूवमेंट की ज़रूरत है, और अपनी स्टोरी को और बेटर बनाएगा। ड्वेक कहती हैं कि क्रिटिसिज़्म को हैंडल करने का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है ये समझना कि क्रिटिसिज़्म कौन दे रहा है और किस इंटेंशन से दे रहा है। अगर क्रिटिसिज़्म कंस्ट्रक्टिव है, यानी इम्प्रूवमेंट के लिए है, तो हमें उसे वेलकम करना चाहिए। लेकिन अगर क्रिटिसिज़्म डिस्ट्रक्टिव है, यानी सिर्फ़ हमें नीचा दिखाने के लिए है, तो हमें उसे इग्नोर करना चाहिए। वो कहती हैं कि क्रिटिसिज़्म को हैंडल करने का एक और इम्पोर्टेन्ट पार्ट है ये समझना कि क्रिटिसिज़्म हमारी पर्सनलिटी पर नहीं, बल्कि हमारे वर्क पर है। ये हमें एक ऑब्जेक्टिव पर्सपेक्टिव देता है और हमें डिफ़ेंसिव होने से रोकता है। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें क्रिटिसिज़्म को एक दोस्त के रूप में देखना चाहिए, न कि एक दुश्मन के रूप में। यही है ग्रो करने का, इम्प्रूव करने का, और ज़्यादा सक्सेसफुल बनने का रास्ता। जैसे एक कोच एक प्लेयर को फ़ीडबैक देकर उसे इम्प्रूव करने में हेल्प करता है, वैसे ही क्रिटिसिज़्म भी हमें इम्प्रूव करने में हेल्प कर सकता है।


लेसन 8 : सक्सेस ऑफ़ अदर्स: इंस्पिरेशन नॉट थ्रेट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने क्रिटिसिज़्म को हैंडल करने के तरीके पर बात की। अब हम एक और ऐसे टॉपिक पर बात करेंगे जो हमारे सोशल इंटरेक्शन्स से रिलेटेड है – सक्सेस ऑफ़ अदर्स: इंस्पिरेशन नॉट थ्रेट, यानी दूसरों की सफलता: प्रेरणा, खतरा नहीं। कैरल ड्वेक कहती हैं कि फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग दूसरों की सक्सेस से थ्रेटंड फील करते हैं। उन्हें लगता है कि अगर कोई और उनसे ज़्यादा सक्सेसफुल है, तो इसका मतलब है कि वो ख़ुद कम सक्सेसफुल हैं, या कम टैलेंटेड हैं। वो दूसरों की सक्सेस को एक कॉम्पिटिशन के रूप में देखते हैं, जहाँ एक का गेन दूसरे का लॉस होता है। वो दूसरों की सक्सेस को अपनी ‘फ़िक्स्ड’ एबिलिटीज पर एक चैलेंज मानते हैं। इसलिए वो दूसरों की सक्सेस को मिनिमाइज़ करने की कोशिश करते हैं, या उससे जेलेस फील करते हैं। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरों की सक्सेस एक ऑपर्च्युनिटी है सीखने की, मोटिवेट होने की, और ग्रो करने की। वो दूसरों की सक्सेस को एक रिसोर्स के रूप में देखते हैं, जहाँ से वो नए आइडियाज़, नई स्किल्स, और नई अप्रोचेज़ सीख सकते हैं। वो दूसरों की सक्सेस को एक पॉज़िटिव साइन मानते हैं कि वो भी अपनी पोटेंशियल को अचीव कर सकते हैं। इसे एक टीम स्पोर्ट्स के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक प्लेयर अगर अपनी टीम के किसी और प्लेयर को उससे ज़्यादा अच्छा परफॉर्म करते हुए देखता है, तो वो जेलेस फील करेगा, या उस प्लेयर को अंडरमाइन करने की कोशिश करेगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक प्लेयर उस प्लेयर से सीखेगा, उससे इंस्पायर होगा, और अपनी परफॉर्मेंस को इम्प्रूव करने की कोशिश करेगा। ड्वेक कहती हैं कि ये एटीट्यूड सिर्फ़ स्पोर्ट्स तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये वर्कप्लेस, रिलेशनशिप्स, और लाइफ के हर एरिया पर अप्लाई होता है। जब हम दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होते हैं, तो हम ज़्यादा मोटिवेटेड रहते हैं, ज़्यादा पॉज़िटिव रहते हैं, और ज़्यादा सक्सेसफुल होते हैं। वो कहती हैं कि दूसरों की सक्सेस को सेलिब्रेट करना एक साइन है ग्रोथ माइंडसेट का। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमें दूसरों की सक्सेस से इंस्पायर होना चाहिए, न कि थ्रेटंड फील करना चाहिए। यही है ग्रो करने का, सीखने का, और ज़्यादा पॉज़िटिव और सपोर्टिव एनवायरनमेंट क्रिएट करने का रास्ता। जैसे एक गार्डन में अलग-अलग फ़्लावर्स एक-दूसरे की ब्यूटी को एन्हांस करते हैं, वैसे ही दूसरों की सक्सेस भी हमारी अपनी ग्रोथ को एन्हांस कर सकती है।


लेसन 9 : माइंडसेट इन पेरेंटिंग
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने दूसरों की सफलता को देखने के हमारे नजरिए पर बात की। अब हम एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट एरिया पर बात करेंगे जहाँ माइंडसेट बहुत बड़ा रोल प्ले करता है – माइंडसेट इन पेरेंटिंग, यानी पालन-पोषण में मानसिकता। कैरल ड्वेक कहती हैं कि पेरेंट्स का माइंडसेट उनके बच्चों की ग्रोथ और डेवलपमेंट को deeply इम्पैक्ट करता है। फिक्स्ड माइंडसेट वाले पेरेंट्स अक्सर अपने बच्चों को उनकी ‘इनबॉर्न’ एबिलिटीज के लिए प्रेज़ करते हैं, जैसे ‘तुम बहुत स्मार्ट हो’, या ‘तुम बहुत टैलेंटेड हो’। इससे बच्चों में ये बिलीफ डेवलप होता है कि उनकी एबिलिटीज फ़िक्स्ड हैं, और उन्हें हमेशा ये प्रूव करना होता है कि वो स्मार्ट हैं या टैलेंटेड हैं। इससे बच्चे चैलेंजेस से डरने लगते हैं, क्योंकि उन्हें डर लगता है कि कहीं वो फ़ेल न हो जाएँ, और कहीं उनकी ‘स्मार्टनेस’ या ‘टैलेंट’ एक्सपोज न हो जाए। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाले पेरेंट्स अपने बच्चों को उनके एफर्ट, उनकी प्रोसेस, उनकी स्ट्रैटेजीज़ के लिए प्रेज़ करते हैं, जैसे ‘तुमने बहुत मेहनत की’, या ‘तुमने एक बहुत अच्छी स्ट्रैटेजी यूज़ की’। इससे बच्चों में ये बिलीफ डेवलप होता है कि उनकी एबिलिटीज डेवलप की जा सकती हैं थ्रू एफर्ट और लर्निंग। इससे बच्चे चैलेंजेस को एम्ब्रेस करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यही वो जगह है जहाँ वो ग्रो कर सकते हैं। इसे एक स्कूल प्रोजेक्ट के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक पेरेंट अपने बच्चे को तब प्रेज़ करेगा जब उसे अच्छे मार्क्स मिलेंगे, और उसे डाँटेगा जब उसे कम मार्क्स मिलेंगे। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक पेरेंट अपने बच्चे को उसके एफर्ट के लिए, उसकी डेडिकेशन के लिए, और उसकी लर्निंग के लिए प्रेज़ करेगा, चाहे उसे मार्क्स कैसे भी मिले हों। ड्वेक कहती हैं कि ये सिर्फ़ प्रेज़ करने के तरीके तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये पेरेंट्स के पूरे एटीट्यूड पर डिपेंड करता है। ग्रोथ माइंडसेट वाले पेरेंट्स अपने बच्चों को मिस्टेक्स करने के लिए एनकरेज करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मिस्टेक्स लर्निंग का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट हैं। वो अपने बच्चों को चैलेंजेस फेस करने के लिए एनकरेज करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यही वो जगह है जहाँ वो ग्रो कर सकते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों में ग्रोथ माइंडसेट कल्टीवेट करना चाहिए, यानी उन्हें उनके एफर्ट, उनकी प्रोसेस, और उनकी लर्निंग के लिए प्रेज़ करना चाहिए। यही है बच्चों को अपनी पूरी पोटेंशियल अचीव करने में हेल्प करने का रास्ता। जैसे एक गार्डनर एक प्लांट को नर्चर करता है, वैसे ही पेरेंट्स को अपने बच्चों को नर्चर करना चाहिए ताकि वो ग्रो कर सकें और अपनी पूरी पोटेंशियल को अचीव कर सकें।


लेसन 10 : चेंजिंग माइंडसेट्स: वर्कशॉप्स एंड बियॉन्ड
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने पेरेंटिंग में माइंडसेट के इम्पोर्टेंस पर बात की। अब हम इस बुक के फाइनल लेसन पर बात करेंगे – चेंजिंग माइंडसेट्स: वर्कशॉप्स एंड बियॉन्ड, यानी मानसिकताओं को बदलना: कार्यशालाएँ और उससे परे। कैरल ड्वेक कहती हैं कि माइंडसेट्स को चेंज करना पॉसिबल है, लेकिन इसके लिए कॉन्शियस एफर्ट और प्रैक्टिस चाहिए। ये कोई क्विक फ़िक्स नहीं है, बल्कि एक ऑनगोइंग प्रोसेस है। उन्होंने कई वर्कशॉप्स और इंटरवेंशन्स डिज़ाइन किए हैं जो लोगों को फिक्स्ड माइंडसेट से ग्रोथ माइंडसेट में शिफ्ट करने में हेल्प करते हैं। इन वर्कशॉप्स में लोगों को माइंडसेट्स के कॉन्सेप्ट के बारे में सिखाया जाता है, उन्हें अपनी खुद की मानसिकता को पहचानने में हेल्प की जाती है, और उन्हें ग्रोथ माइंडसेट कल्टीवेट करने की प्रैक्टिकल स्ट्रैटेजीज़ सिखाई जाती हैं। लेकिन ड्वेक कहती हैं कि माइंडसेट्स को चेंज करना सिर्फ़ वर्कशॉप्स तक ही लिमिटेड नहीं है। ये एक डेली प्रैक्टिस है, एक वे ऑफ़ लिविंग है। हमें हर दिन अपनी सोच को ऑब्ज़र्व करना चाहिए, अपने फिक्स्ड माइंडसेट ट्रिगर्स को पहचानना चाहिए, और उन्हें ग्रोथ माइंडसेट रिस्पॉन्सेस से रिप्लेस करना चाहिए। इसे एक पर्सनल डेवलपमेंट जर्नी के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। मान लीजिए, आप एक पब्लिक स्पीकर बनना चाहते हैं, लेकिन आपको स्टेज फ़्राइट है। फिक्स्ड माइंडसेट वाला एक इंसान इस फ़ियर को अपनी ‘इनएबिलिटी’ का साइन मानेगा, और वो गिव अप कर देगा। वहीं, ग्रोथ माइंडसेट वाला एक इंसान इस फ़ियर को एक चैलेंज मानेगा, और वो प्रैक्टिस करेगा, फ़ीडबैक लेगा, और धीरे-धीरे अपने फ़ियर पर काबू पा लेगा। ड्वेक कहती हैं कि माइंडसेट चेंज एक ट्रांसफॉर्मेटिव एक्सपीरियंस हो सकता है। जब हम ग्रोथ माइंडसेट अडॉप्ट करते हैं, तो हम अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक कर सकते हैं, हम ज़्यादा रेज़िलिएंट बन सकते हैं, और हम ज़्यादा फुलफिलिंग लाइफ जी सकते हैं। वो कहती हैं कि ये सिर्फ़ एक इंडिविजुअल जर्नी नहीं है, बल्कि एक सोशल चेंज भी है। जब ज़्यादा लोग ग्रोथ माइंडसेट अडॉप्ट करते हैं, तो हम एक ज़्यादा सपोर्टिव, ज़्यादा कोलाबोरेटिव, और ज़्यादा इनोवेटिव सोसाइटी क्रिएट कर सकते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि माइंडसेट्स को चेंज करना पॉसिबल है, और ये एक वर्थव्हाइल एफर्ट है। यही है अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक करने का, ज़्यादा रेज़िलिएंट बनने का, और एक बेटर वर्ल्ड क्रिएट करने का रास्ता। जैसे एक गार्डन को कल्टीवेट करने के लिए रेगुलर केयर चाहिए होती है, वैसे ही ग्रोथ माइंडसेट को कल्टीवेट करने के लिए भी रेगुलर प्रैक्टिस और एफर्ट चाहिए होता है।


तो दोस्तों, ये थे कैरल ड्वेक की “माइंडसेट” के दस पावरफुल लेसन्स। हमने सीखा कि कैसे फिक्स्ड माइंडसेट से ग्रोथ माइंडसेट में शिफ्ट करके हम अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक कर सकते हैं, ज़्यादा रेज़िलिएंट बन सकते हैं, और ज़्यादा सक्सेसफुल लाइफ जी सकते हैं। ये सिर्फ़ एक किताब की समरी नहीं है, बल्कि एक गाइड है अपनी सोच को बदलने की और अपनी लाइफ को ट्रांसफॉर्म करने की। उम्मीद है कि आपको ये समरी पसंद आयी होगी और आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर आपको ये समरी अच्छी लगी तो इसे लाइक और शेयर करें। मिलते हैं अगले समरी में, तब तक के लिए, ग्रो करते रहिए!

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