आज हम एक ऐसी किताब के बारे में बात करेंगे जिसने लाखों लोगों की ज़िंदगी बदली है – स्टीफन कोवी की 'The 7 Habits of Highly Effective People'। ये बुक हमें सिखाती है कि कैसे हम अपनी लाइफ को ज़्यादा इफेक्टिव और सक्सेसफुल बना सकते हैं। इस समरी में हम इस क्लासिक बुक के 10 सबसे इम्पोर्टेन्ट लेसन्स को आसान भाषा में समझेंगे, जिन्हें आप अपनी डेली लाइफ में अप्लाई कर सकते हैं। तो चलिए, शुरू करते हैं एक इंस्पायरिंग जर्नी!
लेसन 1 : बी प्रोएक्टिव यानी सक्रिय रहें
‘The 7 Habits’ का ये पहला और सबसे फाउंडेशनल प्रिंसिपल है। प्रोएक्टिव होने का मतलब है रिस्पॉन्सिबल होना, अपनी लाइफ का कंट्रोल अपने हाथों में लेना। ये रिएक्टिव होने का ऑपोजिट है, जहाँ हम सिचुएशंस के गुलाम बन जाते हैं और बाहर की चीज़ों को अपनी फीलिंग्स और बिहेवियर को कंट्रोल करने देते हैं। प्रोएक्टिव लोग अपनी चॉइसेस के लिए रिस्पॉन्सिबिलिटी लेते हैं। वो ब्लेम गेम नहीं खेलते और न ही एक्सक्यूज़ बनाते हैं। वो ये मानते हैं कि वो अपनी लाइफ के आर्किटेक्ट खुद हैं। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपकी ऑफिस में एक डेडलाइन है और आपका कंप्यूटर खराब हो जाता है। एक रिएक्टिव इंसान कहेगा, "ये कंप्यूटर हमेशा खराब हो जाता है! अब मैं डेडलाइन पूरी नहीं कर पाऊँगा।" वहीं एक प्रोएक्टिव इंसान कहेगा, "कंप्यूटर खराब हो गया है, अब मैं क्या कर सकता हूँ? क्या मैं किसी और का कंप्यूटर यूज़ कर सकता हूँ? क्या मैं डेडलाइन एक्सटेंड करने के लिए बात कर सकता हूँ?" प्रोएक्टिव इंसान सिचुएशन को कंट्रोल करने की कोशिश करता है, बजाय उसके आगे हार मानने के। कोवी हमें "सर्कल ऑफ़ कंसर्न" और "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस" का कॉन्सेप्ट भी बताते हैं। सर्कल ऑफ़ कंसर्न में वो चीज़ें आती हैं जिनके बारे में हम कंसर्न तो हैं, पर जिन पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है, जैसे कि मौसम या दूसरों का बिहेवियर। सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस में वो चीज़ें आती हैं जिन पर हमारा कंट्रोल है, जैसे कि हमारा अपना बिहेवियर और हमारी चॉइसेस। प्रोएक्टिव लोग अपना फोकस सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस पर रखते हैं। वो उन चीज़ों को बदलने की कोशिश करते हैं जिन पर उनका कंट्रोल है, बजाय उन चीज़ों के बारे में चिंता करने के जिन पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है। इसलिए, पहला लेसन यही है कि प्रोएक्टिव बनें। अपनी लाइफ की रिस्पॉन्सिबिलिटी लें, एक्सक्यूज़ बनाना बंद करें, और उन चीज़ों पर फोकस करें जिन पर आपका कंट्रोल है। अपनी प्रतिक्रियाओं को चुनें, परिस्थितियों का शिकार न बनें। अपनी ज़िंदगी के ड्राइवर आप खुद बनें, पैसेंजर नहीं।
लेसन 2 : बिगिन विथ द एंड इन माइंड
इस लेसन में कोवी हमें सिखाते हैं कि हमें हर काम को एक क्लियर विज़न के साथ शुरू करना चाहिए। हमें ये पता होना चाहिए कि हम क्या अचीव करना चाहते हैं और हमारी लाइफ का पर्पस क्या है। इसका मतलब है अपनी लाइफ की स्क्रिप्ट खुद लिखना, बजाय दूसरों के द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट को फॉलो करने के। कोवी हमें अपनी "पर्सनल मिशन स्टेटमेंट" बनाने की सलाह देते हैं, जो एक तरह का रोडमैप होता है हमारी लाइफ के लिए। ये स्टेटमेंट हमें बताता है कि हमारे लिए क्या इम्पोर्टेन्ट है, हमारे वैल्यूज क्या हैं, और हम अपनी लाइफ में क्या कंट्रीब्यूट करना चाहते हैं। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं। अगर आपके पास कोई क्लियर विज़न नहीं है कि आप क्या बेचना चाहते हैं, किसे बेचना चाहते हैं, और आपका बिज़नेस किस तरह का इम्पेक्ट क्रिएट करेगा, तो आपके सक्सेसफुल होने के चांसेस बहुत कम हैं। वहीं अगर आपके पास एक क्लियर बिज़नेस प्लान है, जिसमें आपके गोल्स, स्ट्रेटेजीज़, और वैल्यूज डिफाइन हैं, तो आपके सक्सेसफुल होने के चांसेस बहुत ज़्यादा हैं। 'बिगिन विथ द एंड इन माइंड' का मतलब सिर्फ बिज़नेस या करियर में ही नहीं, बल्कि पर्सनल लाइफ में भी लागू होता है। हमें ये सोचना चाहिए कि हम किस तरह के इंसान बनना चाहते हैं, हमारे रिलेशनशिप्स कैसे होने चाहिए, और हम अपनी लाइफ में क्या लेगेसी छोड़ना चाहते हैं। कोवी हमें ये भी बताते हैं कि हमें अपनी लाइफ के हर एस्पेक्ट में बैलेंस बनाए रखना चाहिए, जैसे कि फिजिकल हेल्थ, मेंटल हेल्थ, रिलेशनशिप्स, और करियर। हमें किसी एक एरिया पर ज़्यादा फोकस नहीं करना चाहिए, बल्कि सभी एरियाज़ में प्रोग्रेस करनी चाहिए। इसलिए, दूसरा लेसन यही है कि अंत को ध्यान में रखकर शुरुआत करें। अपनी लाइफ का एक क्लियर विज़न बनाएं, अपनी पर्सनल मिशन स्टेटमेंट लिखें, और अपनी लाइफ के हर एस्पेक्ट में बैलेंस बनाए रखें। अपनी मंज़िल तय करके ही आप सही रास्ते पर चल सकते हैं। बिना लक्ष्य के जीवन एक पतवार विहीन नाव की तरह होता है। अपने जीवन के निर्देशक खुद बनें, किसी और की स्क्रिप्ट का किरदार नहीं।
लेसन 3 : पुट फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट
इस लेसन में कोवी हमें टाइम मैनेजमेंट के बारे में बताते हैं, पर ये ट्रेडिशनल टाइम मैनेजमेंट टेक्निक्स से थोड़ा अलग है। वो हमें सिर्फ टाइम को मैनेज करने की नहीं, बल्कि खुद को मैनेज करने की सलाह देते हैं। वो हमें बताते हैं कि हमें अपनी एक्टिविटीज को अर्जेंसी और इम्पोर्टेंस के बेसिस पर प्रायोरिटाइज़ करना चाहिए। कोवी एक "टाइम मैनेजमेंट मैट्रिक्स" इंट्रोड्यूस करते हैं जिसमें चार क्वाड्रेंट्स होते हैं: क्वाड्रेंट 1 (अर्जेंट और इम्पोर्टेंट), क्वाड्रेंट 2 (नॉट अर्जेंट बट इम्पोर्टेंट), क्वाड्रेंट 3 (अर्जेंट बट नॉट इम्पोर्टेंट), और क्वाड्रेंट 4 (नॉट अर्जेंट एंड नॉट इम्पोर्टेंट)। क्वाड्रेंट 1 में क्राइसिस, डेडलाइंस, और प्रॉब्लम्स जैसी चीज़ें आती हैं जिन पर हमें तुरंत एक्शन लेना होता है। क्वाड्रेंट 3 में इंटरप्शंस, मीटिंग्स, और कुछ कॉल्स जैसी चीज़ें आती हैं जो अर्जेंट तो लगती हैं, पर इतनी इम्पोर्टेंट नहीं होतीं। क्वाड्रेंट 4 में टाइम वेस्टिंग एक्टिविटीज जैसे कि ज़्यादा टीवी देखना या सोशल मीडिया स्क्रॉल करना जैसी चीज़ें आती हैं। कोवी कहते हैं कि हमें अपना ज़्यादातर टाइम क्वाड्रेंट 2 में स्पेंड करना चाहिए, जिसमें प्लानिंग, रिलेशनशिप बिल्डिंग, लर्निंग, और प्रिवेंशन जैसी चीज़ें आती हैं। ये चीज़ें अर्जेंट तो नहीं होतीं, पर लॉन्ग टर्म में बहुत इम्पोर्टेंट होती हैं। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपके पास एक इम्पोर्टेंट प्रोजेक्ट है जिसकी डेडलाइन नज़दीक है (क्वाड्रेंट 1)। उसी टाइम पर आपके कुछ फ्रेंड्स आपको मूवी देखने के लिए बुलाते हैं (क्वाड्रेंट 3)। अगर आप अपने प्रोजेक्ट को छोड़कर मूवी देखने चले जाते हैं, तो आप एक इम्पोर्टेंट काम को निग्लेक्ट कर रहे हैं। वहीं अगर आप अपने प्रोजेक्ट को पहले पूरा करते हैं, तो आप 'पुट फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट' के प्रिंसिपल को फॉलो कर रहे हैं। इसलिए, तीसरा लेसन यही है कि पहले सबसे ज़रूरी चीज़ें करें। अपनी एक्टिविटीज को प्रायोरिटाइज़ करें और अपना ज़्यादातर टाइम क्वाड्रेंट 2 में स्पेंड करें। समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी है। जो काम सबसे ज़रूरी है उसे सबसे पहले करें, बाकी काम बाद में। अपनी प्राथमिकताओं को सही ढंग से तय करके ही आप अपने समय का सही इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेसन 4 : थिंक विन-विन
इस लेसन में कोवी हमें इंटरपर्सनल लीडरशिप के बारे में बताते हैं, यानी दूसरों के साथ हमारे रिलेशनशिप्स के बारे में। वो हमें "विन-विन" की फिलॉसफी अपनाने की सलाह देते हैं, जिसका मतलब है ऐसे सॉल्यूशंस ढूंढना जो दोनों पार्टीज़ के लिए फायदेमंद हों। ये "विन-लूज़" या "लूज़-विन" की सोच से बिलकुल अलग है, जहाँ एक पार्टी का फायदा दूसरी पार्टी का नुकसान होता है। विन-विन में हम ये मानते हैं कि हर किसी के लिए कुछ न कुछ अच्छा हो सकता है। हम ऐसे एग्रीमेंट्स और सॉल्यूशंस ढूंढने की कोशिश करते हैं जिनसे दोनों पार्टीज़ को फायदा हो। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक टीम में काम करते हैं और आपको एक प्रोजेक्ट पर काम करना है। अगर आप सिर्फ अपने आइडियाज़ पर फोकस करते हैं और दूसरों के आइडियाज़ को इग्नोर करते हैं, तो ये एक "विन-लूज़" सिचुएशन होगी। वहीं अगर आप टीम के साथ मिलकर काम करते हैं और सबके आइडियाज़ को कंबाइन करके एक बेस्ट सोल्यूशन निकालते हैं, तो ये एक "विन-विन" सिचुएशन होगी। 'थिंक विन-विन' का मतलब सिर्फ बिज़नेस या वर्कप्लेस में ही नहीं, बल्कि पर्सनल रिलेशनशिप्स में भी लागू होता है। हमें अपने फैमिली मेंबर्स, फ्रेंड्स, और पार्टनर्स के साथ भी "विन-विन" की सोच रखनी चाहिए। कोवी हमें ये भी बताते हैं कि "विन-विन" एक हैबिट ऑफ़ थॉट है, एक कैरेक्टर है, और एक स्किल भी है। इसे डेवलप करने के लिए हमें एम्पैथी, करेज, और इंटीग्रिटी की ज़रूरत होती है। इसलिए, चौथा लेसन यही है कि दोनों के लिए फायदेमंद सोचें। ऐसे सॉल्यूशंस ढूंढें जो दोनों पार्टीज़ के लिए फायदेमंद हों। ये एक हेल्दी और प्रोडक्टिव रिलेशनशिप्स की नींव है। सिर्फ अपना फायदा सोचने से कुछ नहीं होता, दूसरों का भी ध्यान रखना ज़रूरी है। आपसी सहयोग और समझदारी से ही हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। हर किसी के लिए कुछ न कुछ अच्छा हो सकता है, बस उस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
लेसन 5 : सीक फर्स्ट टू अंडरस्टैंड, देन टू बी अंडरस्टूड
इस लेसन में कोवी कम्युनिकेशन और एम्पैथी के इम्पोर्टेंस पर ज़ोर देते हैं। वो हमें बताते हैं कि इफेक्टिव कम्युनिकेशन के लिए सबसे ज़रूरी है दूसरों को समझना। जब हम किसी से बात करते हैं, तो हमें सिर्फ अपनी बात कहने पर फोकस नहीं करना चाहिए, बल्कि उनकी बात को ध्यान से सुनना चाहिए और समझने की कोशिश करनी चाहिए। कोवी इसे "एम्पेथेटिक लिसनिंग" कहते हैं, जिसका मतलब है दूसरों के पर्सपेक्टिव से सुनने की कोशिश करना, उनकी फीलिंग्स को समझने की कोशिश करना। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपका एक कलीग किसी प्रोजेक्ट को लेकर परेशान है। अगर आप सिर्फ उसे अपनी सलाह देने लगते हैं, तो शायद वो आपकी बात न सुने। वहीं अगर आप पहले उसकी बात ध्यान से सुनते हैं, उसकी परेशानी को समझने की कोशिश करते हैं, और फिर अपनी सलाह देते हैं, तो वो आपकी बात ज़्यादा ध्यान से सुनेगा और उसे समझने की कोशिश करेगा। 'सीक फर्स्ट टू अंडरस्टैंड' का मतलब सिर्फ वर्कप्लेस पर ही नहीं, बल्कि पर्सनल रिलेशनशिप्स में भी लागू होता है। हमें अपने फैमिली मेंबर्स, फ्रेंड्स, और पार्टनर्स के साथ भी एम्पेथेटिक लिसनिंग करनी चाहिए। कोवी हमें ये भी बताते हैं कि जब हम दूसरों को समझते हैं, तो हम उनके साथ एक स्ट्रांग कनेक्शन बनाते हैं और ट्रस्ट बिल्ड करते हैं। और जब हम समझे जाते हैं, तो हम भी ज़्यादा ओपन और रिसेप्टिव होते हैं। इसलिए, पाँचवा लेसन यही है कि पहले समझने की कोशिश करें, फिर समझे जाने की। इफेक्टिव कम्युनिकेशन के लिए एम्पैथी बहुत ज़रूरी है। सिर्फ अपनी बात कहने से कुछ नहीं होता, दूसरों को समझना भी ज़रूरी है। दूसरों के दृष्टिकोण को समझने से ही हम बेहतर संवाद स्थापित कर सकते हैं। दूसरों को समझने से पहले खुद को समझाने की कोशिश व्यर्थ है। पहले श्रोता बनें, फिर वक्ता।
लेसन 6: सिनर्जाइज़
इस लेसन में कोवी हमें टीमवर्क और कोलाबरेशन के इम्पोर्टेंस के बारे में बताते हैं। सिनर्जी का मतलब है कि जब दो या दो से ज़्यादा लोग मिलकर काम करते हैं, तो उनका कंबाइंड एफर्ट उनके इंडिविजुअल एफर्ट्स के सम से ज़्यादा होता है। यानी 1+1=3 या उससे भी ज़्यादा। सिनर्जी तब होती है जब हम दूसरों के डिफरेंसेस को वैल्यू करते हैं, उनके पर्सपेक्टिव को समझते हैं, और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। ये सिर्फ एग्रीमेंट या कॉम्प्रोमाइज से कहीं ज़्यादा है। ये एक क्रिएटिव प्रोसेस है जहाँ हम नए आइडियाज़ जनरेट करते हैं और ऐसे सॉल्यूशंस ढूंढते हैं जो पहले किसी ने नहीं सोचे होते। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, एक म्यूजिकल बैंड है जिसमें अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट्स बजाने वाले लोग हैं। अगर हर कोई सिर्फ अपनी मर्ज़ी से बजाएगा, तो कोई मेलोडी नहीं बनेगी। वहीं अगर वो एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाकर बजाते हैं, तो एक बहुत ही ब्यूटीफुल मेलोडी क्रिएट होती है। यही सिनर्जी है। 'सिनर्जाइज़' का मतलब सिर्फ वर्कप्लेस पर ही नहीं, बल्कि फैमिली, फ्रेंड्स, और कम्युनिटी में भी लागू होता है। जब हम दूसरों के साथ मिलकर काम करते हैं, तो हम ज़्यादा अचीव कर सकते हैं और ज़्यादा एन्जॉय भी कर सकते हैं। कोवी हमें ये भी बताते हैं कि सिनर्जी के लिए ओपन कम्युनिकेशन, ट्रस्ट, और रिस्पेक्ट बहुत ज़रूरी है। जब हम एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं और एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, तभी हम इफेक्टिवली कोलाबोरेट कर सकते हैं। इसलिए, छठा लेसन यही है कि तालमेल बिठाएँ। दूसरों के साथ मिलकर काम करें, उनके डिफरेंसेस को वैल्यू करें, और नए सॉल्यूशंस क्रिएट करें। एकता में ही शक्ति है। जब हम मिलकर काम करते हैं, तो हम अकेले काम करने से कहीं ज़्यादा हासिल कर सकते हैं। एक-दूसरे के विचारों का सम्मान और सहयोग ही सच्ची सिनर्जी है।
लेसन 7 : शार्पन द सॉ
ये लेसन सेल्फ-रिन्यूअल के बारे में है। कोवी हमें बताते हैं कि हमें अपनी लाइफ के चारों डायमेंशन्स - फिजिकल, सोशल/इमोशनल, मेंटल और स्पिरिचुअल - का ध्यान रखना चाहिए। ये चारों डायमेंशन्स एक आरी के चार ब्लेड्स की तरह हैं। अगर हम सिर्फ एक ब्लेड को यूज़ करते रहेंगे और बाकी ब्लेड्स को शार्प नहीं करेंगे, तो आरी इफेक्टिवली काम नहीं करेगी। फिजिकल डायमेंशन में हमारी हेल्थ, एक्सरसाइज, और न्यूट्रिशन आता है। हमें अपनी बॉडी का ध्यान रखना चाहिए और हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करना चाहिए। सोशल/इमोशनल डायमेंशन में हमारे रिलेशनशिप्स, एम्पैथी, और कम्युनिकेशन स्किल्स आते हैं। हमें अपने रिलेशनशिप्स को नर्चर करना चाहिए और दूसरों के साथ अच्छे रिलेशंस बनाए रखने चाहिए। मेंटल डायमेंशन में हमारी लर्निंग, रीडिंग, और क्रिएटिविटी आती है। हमें लगातार सीखते रहना चाहिए और अपने माइंड को स्टिमुलेट करते रहना चाहिए। स्पिरिचुअल डायमेंशन में हमारे वैल्यूज, कमिटमेंट्स, और इनर पीस आते हैं। हमें अपने वैल्यूज के अकॉर्डिंग जीना चाहिए और अपनी इनर पीस को बनाए रखना चाहिए। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक स्टूडेंट हैं। अगर आप सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करते हैं और अपनी हेल्थ, रिलेशनशिप्स, और हॉबीज़ को निग्लेक्ट करते हैं, तो आप बर्नआउट हो सकते हैं। वहीं अगर आप अपनी लाइफ के चारों डायमेंशन्स में बैलेंस बनाए रखते हैं, तो आप ज़्यादा इफेक्टिवली पढ़ पाएंगे और एक हैप्पी और फुलफिल्ड लाइफ जी पाएंगे। इसलिए, सातवाँ लेसन यही है कि आरी को तेज़ करें। अपनी लाइफ के चारों डायमेंशन्स का ध्यान रखें और सेल्फ-रिन्यूअल पर फोकस करें। निरंतर सुधार ही सफलता की कुंजी है। जैसे एक आरी को तेज़ करने से वो ज़्यादा इफेक्टिवली कटती है, वैसे ही खुद को रिन्यू करने से हम ज़्यादा इफेक्टिव बनते हैं। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से संतुलित रहना ही पूर्णता का मार्ग है। खुद का ध्यान रखना स्वार्थ नहीं, बल्कि सफलता की पहली सीढ़ी है।
लेसन 8 : इंटरडिपेंडेंस पैराडाइम
स्टीफन कोवी हमें बताते हैं कि हम अपनी लाइफ में तीन स्टेजेस से गुज़रते हैं: डिपेंडेंस (निर्भरता), इंडिपेंडेंस (स्वतंत्रता), और इंटरडिपेंडेंस (अन्योन्याश्रय)। डिपेंडेंस में हम दूसरों पर निर्भर होते हैं, जैसे कि बच्चे अपने पेरेंट्स पर। इंडिपेंडेंस में हम सेल्फ-रिलायंट बन जाते हैं और अपना काम खुद कर सकते हैं। इंटरडिपेंडेंस में हम ये समझते हैं कि हम दूसरों से कनेक्टेड हैं और हम मिलकर ज़्यादा अचीव कर सकते हैं। '7 हैबिट्स' हमें इंडिपेंडेंस से इंटरडिपेंडेंस की तरफ बढ़ने में हेल्प करती हैं। पहले तीन हैबिट्स (प्रोएक्टिव बनें, अंत को ध्यान में रखकर शुरुआत करें, पहले सबसे ज़रूरी चीज़ें करें) हमें इंडिपेंडेंस अचीव करने में हेल्प करती हैं। अगले तीन हैबिट्स (दोनों के लिए फायदेमंद सोचें, पहले समझने की कोशिश करें, फिर समझे जाने की, तालमेल बिठाएँ) हमें इंटरडिपेंडेंस अचीव करने में हेल्प करती हैं। 'शार्पन द सॉ' हमें इन दोनों स्टेजेस को सस्टेन करने में हेल्प करती है। इंटरडिपेंडेंस का मतलब ये नहीं है कि हम फिर से दूसरों पर निर्भर हो जाएं। इसका मतलब है कि हम अपनी इंडिपेंडेंस को बनाए रखते हुए दूसरों के साथ मिलकर काम करें और एक-दूसरे को सपोर्ट करें। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, एक टीम है जो एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। अगर हर मेंबर सिर्फ अपना काम करता है और दूसरों के साथ कोलाबोरेट नहीं करता, तो प्रोजेक्ट उतना सक्सेसफुल नहीं होगा जितना कि तब होता जब वो सब मिलकर काम करते। इंटरडिपेंडेंस हमें ये सिखाता है कि हम एक-दूसरे के साथ मिलकर ज़्यादा अचीव कर सकते हैं। ये एक हायर लेवल ऑफ़ इफेक्टिवनेस है जहाँ हम एक-दूसरे की स्ट्रेंग्थ का यूज़ करते हैं और एक-दूसरे की वीकनेसेस को कम्प्लीमेंट करते हैं। इसलिए, ये लेसन हमें ये समझने में हेल्प करता है कि हम एक आइसोलेशन में नहीं रहते, बल्कि एक कनेक्टेड वर्ल्ड में रहते हैं जहाँ दूसरों के साथ मिलकर काम करना बहुत ज़रूरी है। आत्मनिर्भरता ज़रूरी है, पर दूसरों के साथ जुड़कर काम करना और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मिलकर काम करने से ही हम बड़ी सफलताएँ हासिल कर सकते हैं। परस्पर सहयोग और निर्भरता ही मानव समाज का आधार है।
लेसन 9 : प्रिंसिपल्स आर टाइमलेस
स्टीफन कोवी की '7 हैबिट्स' टाइम मैनेजमेंट टेक्निक्स या मोटिवेशनल ट्रिक्स नहीं हैं, बल्कि ये प्रिंसिपल्स पर बेस्ड हैं। प्रिंसिपल्स बेसिक ट्रुथ्स होते हैं जो हमेशा सही होते हैं, चाहे सिचुएशन कुछ भी हो। जैसे कि ग्रैविटी का प्रिंसिपल हमेशा काम करता है, वैसे ही ये प्रिंसिपल्स भी हमेशा काम करते हैं। ये प्रिंसिपल्स ह्यूमन नेचर और इफेक्टिवनेस के बारे में हैं। ये हमें बताते हैं कि कैसे हम अपनी लाइफ को ज़्यादा मीनिंगफुल और सक्सेसफुल बना सकते हैं। कोवी हमें बताते हैं कि हमें वैल्यूज़ पर नहीं, बल्कि प्रिंसिपल्स पर फोकस करना चाहिए। वैल्यूज़ सब्जेक्टिव होती हैं और लोगों के हिसाब से बदल सकती हैं, पर प्रिंसिपल्स ऑब्जेक्टिव होते हैं और हमेशा सेम रहते हैं। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, ऑनेस्टी एक प्रिंसिपल है। ये हमेशा सही होता है, चाहे आप किसी भी सिचुएशन में हों। वहीं, कुछ लोग कह सकते हैं कि कुछ सिचुएशंस में झूठ बोलना ज़रूरी होता है, पर ये एक वैल्यू बेस्ड जजमेंट है, प्रिंसिपल बेस्ड नहीं। '7 हैबिट्स' के प्रिंसिपल्स जैसे कि प्रोएक्टिविटी, बिगिन विथ द एंड इन माइंड, और थिंक विन-विन, ये सभी टाइमलेस हैं और हर सिचुएशन में एप्लीकेबल हैं। ये हमें एक स्ट्रांग फाउंडेशन देते हैं जिस पर हम अपनी लाइफ को बिल्ड कर सकते हैं। ये हमें बताते हैं कि कैसे हम अपने रिलेशनशिप्स को इम्प्रूव कर सकते हैं, अपने गोल्स को अचीव कर सकते हैं, और एक ज़्यादा इफेक्टिव और फुलफिल्ड लाइफ जी सकते हैं। इसलिए, ये लेसन हमें ये समझने में हेल्प करता है कि '7 हैबिट्स' सिर्फ कुछ टिप्स और ट्रिक्स नहीं हैं, बल्कि ये लाइफ के बेसिक प्रिंसिपल्स पर बेस्ड हैं जो हमेशा रेलेवेंट रहेंगे। सिद्धांत समय की सीमाओं से परे होते हैं। ये बदलते हुए समय में भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं। मूल्यों में बदलाव संभव है, लेकिन सिद्धांत अटल रहते हैं। एक मज़बूत नींव पर ही एक मज़बूत इमारत खड़ी होती है, वैसे ही सिद्धांतों पर आधारित जीवन ही स्थायी सफलता दिलाता है।
लेसन 10 : इनसाइड-आउट अप्रोच
स्टीफन कोवी हमें बताते हैं कि इफेक्टिवनेस को अचीव करने का सही तरीका है "इनसाइड-आउट" अप्रोच। इसका मतलब है कि हमें पहले खुद को बदलना चाहिए, अपनी सोच, अपने कैरेक्टर, और अपनी हैबिट्स को इम्प्रूव करना चाहिए, और फिर हम दूसरों के साथ अपने रिलेशनशिप्स और अपनी सिचुएशंस को इम्प्रूव कर पाएंगे। ये "आउटसाइड-इन" अप्रोच का ऑपोजिट है, जहाँ हम ये सोचते हैं कि अगर बाहर की सिचुएशंस बदल जाएं तो हम भी बदल जाएंगे। कोवी कहते हैं कि असली चेंज अंदर से शुरू होता है। जब हम खुद को बदलते हैं, तो हम अपनी सिचुएशंस को भी बदल सकते हैं। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपके किसी के साथ रिलेशनशिप में प्रॉब्लम्स हैं। अगर आप सिर्फ ये सोचते हैं कि अगर वो इंसान बदल जाए तो सब ठीक हो जाएगा, तो ये एक "आउटसाइड-इन" अप्रोच है। वहीं अगर आप खुद पर काम करते हैं, अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को इम्प्रूव करते हैं, और ज़्यादा एम्पेथेटिक बनते हैं, तो आप उस रिलेशनशिप को इम्प्रूव कर सकते हैं। ये एक "इनसाइड-आउट" अप्रोच है। '7 हैबिट्स' हमें इसी अप्रोच को फॉलो करने के लिए गाइड करती हैं। ये हमें बताती हैं कि कैसे हम अपने कैरेक्टर को बिल्ड कर सकते हैं, अपनी हैबिट्स को इम्प्रूव कर सकते हैं, और एक ज़्यादा इफेक्टिव और सक्सेसफुल लाइफ जी सकते हैं। इसलिए, ये लेसन हमें ये समझने में हेल्प करता है कि असली चेंज खुद से शुरू होता है। जब हम खुद को बदलते हैं, तभी हम अपनी दुनिया को बदल सकते हैं। बाहरी परिस्थितियों को बदलने की कोशिश से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है। आंतरिक परिवर्तन ही बाहरी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। जैसे एक पौधा जड़ से मज़बूत होता है तभी वो फल देता है, वैसे ही आंतरिक शक्ति से ही बाहरी सफलता मिलती है। खुद पर काम करना ही सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट है।
तो दोस्तों, ये थे स्टीफन कोवी की 'The 7 Habits of Highly Effective People' के 10 पावरफुल लेसन्स। हमने सीखा कि कैसे प्रोएक्टिविटी, विज़न, प्रायोरिटाइजेशन, विन-विन थिंकिंग, एम्पैथी, सिनर्जी, और सेल्फ-रिन्यूअल हमें ज़्यादा इफेक्टिव और सक्सेसफुल बना सकते हैं। ये लेसन्स सिर्फ बिज़नेस या करियर के लिए ही नहीं, बल्कि हमारी पूरी लाइफ के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं। उम्मीद है कि आपको ये समरी पसंद आयी होगी और आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर आपको ये समरी अच्छी लगी तो इसे लाइक और शेयर करें। मिलते हैं अगले समरी में, तब तक के लिए धन्यवाद!
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