आज हम एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट टॉपिक पर बात करेंगे जो हमारी पर्सनल और प्रोफ़ेशनल लाइफ को बहुत ज़्यादा इम्पैक्ट करता है – सोशल इंटेलिजेंस। हम बात करेंगे डैनियल गोलमैन की फेमस बुक “सोशल इंटेलिजेंस” की, जो हमें सिखाती है कि कैसे दूसरों के साथ इफेक्टिवली इंटरैक्ट करें, कैसे रिलेशनशिप्स बिल्ड करें, और कैसे एक सक्सेसफुल और फ़ुलफ़िलिंग लाइफ जीएँ। इस वीडियो में हम इस बुक के दस सबसे ज़रूरी लेसन्स को समझेंगे, एकदम सिंपल हिंदी में। तो चलिए, शुरू करते हैं इस इनसाइटफुल जर्नी को!
लेसन 1 : ब्रेन आर्किटेक्चर एंड सोशल कनेक्शन
दोस्तों, “सोशल इंटेलिजेंस” का सबसे पहला और फ़ाउंडेशनल लेसन है ‘ब्रेन आर्किटेक्चर एंड सोशल कनेक्शन’, यानी मस्तिष्क संरचना और सामाजिक संबंध। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि हमारा ब्रेन सोशली कनेक्ट होने के लिए वायर्ड है, यानी हमारा दिमाग दूसरों के साथ इंटरैक्ट करने के लिए, रिलेशनशिप्स बिल्ड करने के लिए, और सोशल सिग्नल्स को समझने के लिए बना है। हमारे ब्रेन में कुछ स्पेसिफिक सर्किट्स होते हैं जो सोशल इंटरैक्शन को प्रोसेस करते हैं, जैसे एमिग्डाला, जो इमोशन्स को प्रोसेस करता है, और मिरर न्यूरॉन्स, जो हमें दूसरों के इमोशन्स को समझने में हेल्प करते हैं। गोलमैन कहते हैं कि जब हम दूसरों के साथ इंटरैक्ट करते हैं, तो हमारे ब्रेन में एक ‘न्यूरल सिंक्रोनी’ होती है, यानी हमारे ब्रेन की एक्टिविटी एक-दूसरे से सिंक हो जाती है। ये सिंक्रोनी हमें एक-दूसरे को समझने में, एम्पैथी फ़ील करने में, और कनेक्ट करने में हेल्प करती है। इसे एक फ़ैमिली गैदरिंग के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। जब हम अपनी फ़ैमिली के साथ होते हैं, तो हम एक सेंस ऑफ़ बिलॉन्गिंग फ़ील करते हैं, हम एक-दूसरे के इमोशन्स को शेयर करते हैं, और हम एक-दूसरे से कनेक्टेड फ़ील करते हैं। ये ‘न्यूरल सिंक्रोनी’ का एक प्रैक्टिकल एग्ज़ाम्पल है। गोलमैन कहते हैं कि सोशल कनेक्शन हमारी वेल-बीइंग के लिए बहुत ज़रूरी है। जब हम सोशली कनेक्टेड होते हैं, तो हम ज़्यादा हैप्पी, ज़्यादा हेल्दी, और ज़्यादा रेज़िलिएंट होते हैं। वहीं, जब हम सोशली आइसोलेटेड होते हैं, तो हम ज़्यादा स्ट्रेस्ड, ज़्यादा अनहैप्पी, और ज़्यादा वनरेबल होते हैं। वो कहते हैं कि सोशल कनेक्शन सिर्फ़ ह्यूमन बीइंग्स के लिए ही नहीं, बल्कि एनिमल्स के लिए भी इम्पोर्टेन्ट है। बहुत सारे एनिमल्स ग्रुप्स में रहते हैं, और वो एक-दूसरे पर डिपेंडेंट होते हैं सर्वाइवल के लिए। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि सोशल कनेक्शन हमारी बेसिक ह्यूमन नीड है, और हमें इसे प्रायोरिटी देनी चाहिए। यही है एक हेल्दी, हैप्पी, और फ़ुलफ़िलिंग लाइफ जीने का रास्ता। जैसे एक बिल्डिंग को एक स्ट्रांग फ़ाउंडेशन की ज़रूरत होती है, वैसे ही हमारी वेल-बीइंग को स्ट्रांग सोशल कनेक्शन्स की ज़रूरत होती है।
लेसन 2 : प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने ब्रेन आर्किटेक्चर और सोशल कनेक्शन के बारे में बात की। अब हम ब्रेन के उन स्पेसिफिक सर्किट्स पर फोकस करेंगे जो इमोशन्स को प्रोसेस करते हैं – प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स, यानी प्राथमिक भावनात्मक परिपथ। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि हमारे ब्रेन में कुछ प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स होते हैं जो हमारे बेसिक इमोशन्स को जनरेट करते हैं, जैसे फ़ियर, एंगर, सैडनेस, जॉय, और लव। ये सर्किट्स बहुत ही प्रिमिटिव होते हैं, यानी ये हमारे एवोल्यूशन के बहुत ही अर्ली स्टेजेस में डेवलप हुए थे, और ये हमारे कॉन्शियस कंट्रोल से बाहर ऑपरेट करते हैं। गोलमैन स्पेशली एमिग्डाला की बात करते हैं, जो ब्रेन का एक छोटा सा पार्ट है जो फ़ियर और एंगर को प्रोसेस करता है। जब हम किसी थ्रेट को परसीव करते हैं, तो एमिग्डाला एक्टिवेट हो जाता है, और ये ‘फ़ाइट ऑर फ़्लाइट’ रिस्पॉन्स ट्रिगर करता है, यानी या तो हम उस सिचुएशन से लड़ेंगे, या भाग जाएँगे। इसे एक रोड रेज के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। जब कोई ड्राइवर हमें कट करता है, तो हमारा एमिग्डाला एक्टिवेट हो जाता है, और हमें गुस्सा आता है। हम शायद उस ड्राइवर पर चिल्लाएँ, या उसे ओवरटेक करने की कोशिश करें। ये एक ऑटोमेटिक रिस्पॉन्स है, जो हमारे कॉन्शियस कंट्रोल से बाहर होता है। गोलमैन कहते हैं कि ये प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स हमारी सोशल इंटरैक्शन्स को भी बहुत ज़्यादा इम्पैक्ट करते हैं। जब हम किसी से मिलते हैं, तो हम ऑटोमेटिकली उनके फ़ेशियल एक्सप्रेशन्स, बॉडी लैंग्वेज, और वॉइस टोन को प्रोसेस करते हैं, और ये डिसाइड करते हैं कि वो फ़्रेंडली हैं या थ्रेटनिंग। ये प्रोसेस बहुत ही क्विकली होता है, और हम कॉन्शियसली अवेयर भी नहीं होते। वो कहते हैं कि सोशल इंटेलिजेंस का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है इन प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स को समझना, और उन्हें मैनेज करना सीखना। जब हम अपने इमोशन्स को कंट्रोल कर पाते हैं, तो हम ज़्यादा इफेक्टिवली इंटरैक्ट कर पाते हैं, और बेटर रिलेशनशिप्स बिल्ड कर पाते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि हमारे इमोशन्स हमारे ब्रेन के प्रिमिटिव सर्किट्स से जनरेट होते हैं, और हमें उन्हें मैनेज करना सीखना चाहिए। यही है ज़्यादा इमोशनली इंटेलिजेंट बनने का, और बेटर सोशल इंटरैक्शन्स करने का रास्ता। जैसे एक कार को कंट्रोल करने के लिए ब्रेक और स्टीयरिंग व्हील की ज़रूरत होती है, वैसे ही हमें भी अपने इमोशन्स को कंट्रोल करने के लिए अवेयरनेस और रेगुलेशन की ज़रूरत होती है।
लेसन 3 : द मिरर न्यूरॉन सिस्टम
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने ब्रेन के प्राइमरी इमोशनल सर्किट्स के बारे में बात की जो हमारे बेसिक इमोशन्स को जनरेट करते हैं। अब हम एक और बहुत ही इम्पोर्टेन्ट ब्रेन सिस्टम पर फोकस करेंगे जो सोशल इंटरैक्शन के लिए क्रूशियल है – द मिरर न्यूरॉन सिस्टम, यानी मिरर न्यूरॉन प्रणाली। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि हमारे ब्रेन में कुछ स्पेशल न्यूरॉन्स होते हैं जिन्हें ‘मिरर न्यूरॉन्स’ कहते हैं। ये न्यूरॉन्स तब एक्टिवेट होते हैं जब हम कोई एक्शन करते हैं, और तब भी एक्टिवेट होते हैं जब हम किसी और को सेम एक्शन करते हुए देखते हैं। यानी, ये न्यूरॉन्स ‘मिरर’ की तरह काम करते हैं, और हमें दूसरों के एक्शन्स को ‘मिरर’ करने में, यानी इमिटेट करने में, हेल्प करते हैं। गोलमैन कहते हैं कि मिरर न्यूरॉन्स एम्पैथी के लिए, यानी दूसरों के इमोशन्स को समझने और शेयर करने के लिए, बहुत ज़रूरी हैं। जब हम किसी को सैड देखते हैं, तो हमारे मिरर न्यूरॉन्स एक्टिवेट हो जाते हैं, और हमें भी थोड़ी सैडनेस फ़ील होती है। इसी तरह, जब हम किसी को हैप्पी देखते हैं, तो हमें भी थोड़ी हैप्पीनेस फ़ील होती है। ये मिरर न्यूरॉन्स ही हैं जो हमें दूसरों के इमोशन्स से कनेक्ट करते हैं, और हमें सोशल बॉन्ड्स बिल्ड करने में हेल्प करते हैं। इसे एक लाफ़िंग के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। जब हम किसी को हँसते हुए देखते हैं, तो हमें भी हँसी आती है, भले ही हमें पता न हो कि वो क्यों हँस रहा है। ये मिरर न्यूरॉन्स का एक प्रैक्टिकल एग्ज़ाम्पल है। गोलमैन कहते हैं कि मिरर न्यूरॉन्स सिर्फ़ इमोशन्स को ही नहीं, बल्कि एक्शन्स, इंटेंशन्स, और सेंसेशन्स को भी ‘मिरर’ करते हैं। जब हम किसी को डांस करते हुए देखते हैं, तो हमें भी थोड़ी मूवमेंट फ़ील होती है। जब हम किसी को पेन में देखते हैं, तो हमें भी थोड़ी अनकंफ़र्टेबल फ़ील होता है। ये मिरर न्यूरॉन्स ही हैं जो हमें दूसरों के एक्सपीरियंसेस को ‘शेयर’ करने में हेल्प करते हैं, और हमें सोशल लर्निंग में भी हेल्प करते हैं। बच्चे मिरर न्यूरॉन्स के थ्रू ही लैंग्वेज, सोशल स्किल्स, और कल्चरल नॉर्म्स सीखते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि मिरर न्यूरॉन्स हमारी सोशल इंटेलिजेंस का एक क्रूशियल पार्ट हैं, और ये हमें दूसरों से कनेक्ट करने में, एम्पैथी फ़ील करने में, और सोशल स्किल्स सीखने में हेल्प करते हैं। यही है ज़्यादा सोशली इंटेलिजेंट बनने का, और बेटर रिलेशनशिप्स बिल्ड करने का रास्ता। जैसे एक मिरर हमें अपनी रिफ्लेक्शन दिखाता है, वैसे ही मिरर न्यूरॉन्स हमें दूसरों के इमोशन्स और एक्सपीरियंसेस का रिफ्लेक्शन दिखाते हैं।
लेसन 4 : अट्यूनमेंट
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने मिरर न्यूरॉन सिस्टम के बारे में बात की जो हमें दूसरों के इमोशन्स को समझने में मदद करता है। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट कॉन्सेप्ट पर बात करेंगे जो सोशल इंटरैक्शन के लिए बहुत ज़रूरी है – अट्यूनमेंट, यानी समस्वरता/तालमेल। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि अट्यूनमेंट का मतलब है दूसरों के इमोशन्स के साथ ट्यून इन करना, यानी उनके इमोशन्स को समझना, रेस्पॉन्ड करना, और उनके साथ कनेक्ट करना। ये सिर्फ़ वर्बल कम्युनिकेशन तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि नॉन-वर्बल क्यूज़ पर भी डिपेंड करता है, जैसे फ़ेशियल एक्सप्रेशन्स, बॉडी लैंग्वेज, वॉइस टोन, और आई कॉन्टैक्ट। जब हम किसी के साथ अट्यून होते हैं, तो हम एक डीप कनेक्शन फ़ील करते हैं, एक सेंस ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग फ़ील करते हैं, और एक म्यूच्यूअल रेस्पेक्ट फ़ील करते हैं। इसे एक मदर-चाइल्ड रिलेशनशिप के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक मदर अपने बच्चे के साथ अट्यून होती है, वो उसके क्राइज़ को समझती है, उसके नीड्स को रेस्पॉन्ड करती है, और उसे कम्फ़र्ट करती है। ये अट्यूनमेंट बच्चे के इमोशनल डेवलपमेंट के लिए बहुत ज़रूरी है। गोलमैन कहते हैं कि अट्यूनमेंट सिर्फ़ क्लोज रिलेशनशिप्स तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये हर तरह के सोशल इंटरैक्शन में इम्पोर्टेन्ट है, चाहे वो वर्कप्लेस हो, सोशल गैदरिंग हो, या बिज़नेस मीटिंग हो। जब हम किसी के साथ अट्यून होते हैं, तो हम बेटर कम्युनिकेट कर पाते हैं, बेटर रिलेशनशिप्स बिल्ड कर पाते हैं, और ज़्यादा इफेक्टिवली कोलाबोरेट कर पाते हैं। वो कहते हैं कि अट्यूनमेंट एक स्किल है जिसे प्रैक्टिस से इम्प्रूव किया जा सकता है। हमें दूसरों के नॉन-वर्बल क्यूज़ पर अटेंशन देना चाहिए, एम्पैथी प्रैक्टिस करनी चाहिए, और एक्टिव लिसनिंग करनी चाहिए। जब हम दूसरों को ध्यान से सुनते हैं, तो हम सिर्फ़ उनके वर्ड्स को ही नहीं सुनते, बल्कि उनके इमोशन्स को भी सुनते हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि अट्यूनमेंट एक क्रूशियल सोशल स्किल है, और हमें इसे कल्टीवेट करना चाहिए। यही है डीपर कनेक्शन्स बनाने का, और ज़्यादा इफेक्टिव सोशल इंटरैक्शन्स करने का रास्ता। जैसे एक म्यूज़िशियन दूसरे म्यूज़िशियन के साथ ट्यून करता है, वैसे ही हमें भी दूसरों के इमोशन्स के साथ ट्यून करना चाहिए।
लेसन 5 : सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने अट्यूनमेंट के बारे में बात की जो हमें दूसरों के इमोशन्स से कनेक्ट करने में हेल्प करता है। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट फ़ील्ड पर बात करेंगे जो सोशल इंटेलिजेंस को समझने में हेल्प करती है – सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस, यानी सामाजिक संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस एक ऐसी फ़ील्ड है जो ब्रेन और सोशल बिहेवियर के बीच के कनेक्शन को स्टडी करती है। ये हमें ये समझने में हेल्प करती है कि कैसे हमारे ब्रेन के स्पेसिफिक पार्ट्स सोशल इंटरैक्शन, इमोशनल प्रोसेसिंग, और सोशल डिसीज़न-मेकिंग को इन्फ्लुएंस करते हैं। गोलमैन स्पेशली प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स की बात करते हैं, जो ब्रेन का एक पार्ट है जो प्लानिंग, डिसीज़न-मेकिंग, और इमोशनल रेगुलेशन के लिए रिस्पॉन्सिबल है। प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स हमें अपने इमोशन्स को कंट्रोल करने में, इम्पुल्सिव बिहेवियर को रोकने में, और लॉन्ग-टर्म कॉन्सिक्वेंसेज़ को कंसीडर करने में हेल्प करता है। इसे एक बिज़नेस नेगोशिएशन के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक सक्सेसफुल नेगोशिएशन के लिए, हमें अपने इमोशन्स को कंट्रोल में रखना होता है, दूसरे पर्सन के पर्सपेक्टिव को समझना होता है, और एक म्यूचुअली बेनिफिशियल एग्रीमेंट पर रीच करना होता है। ये सारी एबिलिटीज प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स पर डिपेंड करती हैं। गोलमैन कहते हैं कि सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस हमें ये भी समझने में हेल्प करती है कि कैसे सोशल एक्सपीरियंसेस हमारे ब्रेन को शेप करते हैं। जब हम पॉज़िटिव सोशल इंटरैक्शन्स करते हैं, तो हमारे ब्रेन में पॉज़िटिव चेंजेस होते हैं, और हमारी सोशल स्किल्स इम्प्रूव होती हैं। वहीं, जब हम नेगेटिव सोशल एक्सपीरियंसेस करते हैं, जैसे स्ट्रेस, ट्रॉमा, या आइसोलेशन, तो हमारे ब्रेन पर नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ता है, और हमारी सोशल फंक्शनिंग इम्पैक्ट हो सकती है। वो कहते हैं कि सोशल इंटेलिजेंस को इम्प्रूव करने के लिए, हमें अपने ब्रेन के बारे में, अपने इमोशन्स के बारे में, और अपने सोशल बिहेवियर के बारे में अवेयर होना चाहिए। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस एक पावरफुल टूल है जो हमें सोशल इंटेलिजेंस को डीपली समझने में हेल्प करता है। यही है ज़्यादा इफेक्टिव सोशल इंटरैक्शन्स करने का, और अपनी सोशल वेल-बीइंग को इम्प्रूव करने का रास्ता। जैसे एक इंजीनियर एक मशीन को समझने के लिए उसके पार्ट्स को स्टडी करता है, वैसे ही हमें भी सोशल बिहेवियर को समझने के लिए ब्रेन को स्टडी करना चाहिए।
लेसन 6: रीडिंग नॉन-वर्बल क्यूज़
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने सोशल कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस के बारे में बात की जो हमें ब्रेन और सोशल बिहेवियर के कनेक्शन को समझने में मदद करती है। अब हम एक बहुत ही प्रैक्टिकल स्किल पर फोकस करेंगे जो सोशल इंटेलिजेंस के लिए ज़रूरी है – रीडिंग नॉन-वर्बल क्यूज़, यानी अशाब्दिक संकेतों को पढ़ना। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि कम्युनिकेशन सिर्फ़ वर्ड्स तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि इसमें नॉन-वर्बल क्यूज़ भी बहुत इम्पोर्टेन्ट रोल प्ले करते हैं, जैसे फ़ेशियल एक्सप्रेशन्स, बॉडी लैंग्वेज, वॉइस टोन, आई कॉन्टैक्ट, और जेस्चर्स। ये नॉन-वर्बल क्यूज़ हमें दूसरों के इमोशन्स, इंटेंशन्स, और एटीट्यूड्स के बारे में बहुत कुछ बताते हैं, भले ही वो वर्बली कुछ और कह रहे हों। गोलमैन कहते हैं कि हम अक्सर नॉन-वर्बल क्यूज़ को सबकॉन्शियसली प्रोसेस करते हैं, यानी हमें कॉन्शियसली अवेयर भी नहीं होता कि हम क्या ऑब्ज़र्व कर रहे हैं, लेकिन ये क्यूज़ हमारे परसेप्शन और रिएक्शन को इन्फ्लुएंस करते हैं। इसे एक जॉब इंटरव्यू के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक इंटरव्यूअर सिर्फ़ आपके वर्ड्स पर ही नहीं, बल्कि आपके बॉडी लैंग्वेज, आई कॉन्टैक्ट, और वॉइस टोन पर भी अटेंशन देता है। अगर आप कॉन्फिडेंट दिखते हैं, आई कॉन्टैक्ट मेंटेन करते हैं, और क्लियरली बोलते हैं, तो इंटरव्यूअर पर एक पॉज़िटिव इम्पैक्ट पड़ता है, भले ही आपके आंसर्स उतने परफ़ेक्ट न हों। गोलमैन कहते हैं कि नॉन-वर्बल क्यूज़ कल्चरली भी डिफ़रेंट हो सकते हैं, यानी एक कल्चर में जो जेस्चर पॉज़िटिव माना जाता है, वो दूसरे कल्चर में नेगेटिव माना जा सकता है। इसलिए, अलग-अलग कल्चर्स के बारे में अवेयर होना भी ज़रूरी है। वो कहते हैं कि नॉन-वर्बल क्यूज़ को रीड करने की स्किल को प्रैक्टिस से इम्प्रूव किया जा सकता है। हमें दूसरों के फ़ेशियल एक्सप्रेशन्स, बॉडी लैंग्वेज, और वॉइस टोन पर अटेंशन देना चाहिए, और ये समझने की कोशिश करनी चाहिए कि वो क्या कम्युनिकेट कर रहे हैं। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि नॉन-वर्बल क्यूज़ कम्युनिकेशन का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट हैं, और हमें उन्हें रीड करना सीखना चाहिए। यही है ज़्यादा इफेक्टिव कम्युनिकेटर बनने का, और बेटर रिलेशनशिप्स बिल्ड करने का रास्ता। जैसे एक डिटेक्टिव क्लूज़ को ऑब्ज़र्व करता है, वैसे ही हमें भी नॉन-वर्बल क्यूज़ को ऑब्ज़र्व करना चाहिए दूसरों को समझने के लिए।
लेसन 7 : प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने नॉन-वर्बल क्यूज़ को रीड करने की इम्पोर्टेंस के बारे में बात की। अब हम एक और इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट पर फोकस करेंगे जो सोशल इंटरैक्शन को इम्पैक्ट करता है – प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ, यानी स्वयं की प्रस्तुति। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि हम कैसे अपने आप को दूसरों के सामने प्रेजेंट करते हैं, ये हमारी सोशल इंटरैक्शन्स को बहुत ज़्यादा इन्फ्लुएंस करता है। प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ सिर्फ़ अपीयरेंस तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि इसमें हमारा बिहेवियर, हमारा एटीट्यूड, हमारी कम्युनिकेशन स्टाइल, और हमारी इमोशनल एक्सप्रेशंस भी शामिल हैं। गोलमैन कहते हैं कि हम अक्सर एक ‘सोशल मास्क’ पहनते हैं, यानी हम सिचुएशन के हिसाब से अपने बिहेवियर को एडजस्ट करते हैं। ये एक नेचुरल ह्यूमन टेन्डेन्सी है, और ये हमें सोशल सिचुएशन्स में नेविगेट करने में हेल्प करती है। लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि हम ऑथेंटिक रहें, यानी हम अपनी ट्रू सेल्फ को एक्सप्रेस करें, बिना किसी फ़ॉल्स प्रिटेन्स के। इसे एक पब्लिक स्पीकिंग के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। जब हम पब्लिक स्पीकिंग करते हैं, तो हम एक ‘सोशल मास्क’ पहनते हैं, यानी हम कॉन्फिडेंट दिखने की कोशिश करते हैं, भले ही हम नर्वस हों। लेकिन अगर हम ज़्यादा ‘फ़ेक’ करते हैं, तो ऑडियंस को ये पता चल जाता है, और ये हमारे क्रेडिबिलिटी को डैमेज कर सकता है। गोलमैन कहते हैं कि प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है ‘सेल्फ़-अवेयरनेस’, यानी अपने इमोशन्स, अपने स्ट्रेंथ्स, और अपनी वीकनेसेस के बारे में अवेयर होना। जब हम सेल्फ़-अवेयर होते हैं, तो हम बेटर तरीके से अपने आप को प्रेजेंट कर पाते हैं, और ज़्यादा इफेक्टिव सोशल इंटरैक्शन्स कर पाते हैं। वो कहते हैं कि हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी प्रेजेंटेशन सिचुएशन के हिसाब से एप्रोप्रियेट हो। एक फ़ॉर्मल बिज़नेस मीटिंग में हमारी प्रेजेंटेशन एक कैज़ुअल फ़्रेंडली गैदरिंग से डिफ़रेंट होगी। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ एक इम्पोर्टेन्ट सोशल स्किल है, और हमें अपनी सेल्फ़-अवेयरनेस को इम्प्रूव करना चाहिए ताकि हम बेटर तरीके से अपने आप को प्रेजेंट कर सकें। यही है ज़्यादा इफेक्टिव सोशल इंटरैक्शन्स करने का, और पॉज़िटिव इम्प्रेसन्स क्रिएट करने का रास्ता। जैसे एक एक्टर एक रोल प्ले करता है, वैसे ही हम भी अलग-अलग सिचुएशन्स में अलग-अलग रोल्स प्ले करते हैं, लेकिन हमें अपनी ऑथेंटिसिटी मेंटेन करनी चाहिए।
लेसन 8 : सोशल स्किल्स
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ़ के बारे में बात की जो हमारी सोशल इंटरैक्शन्स को इम्पैक्ट करता है। अब हम कुछ स्पेसिफिक स्किल्स पर फोकस करेंगे जो सोशल इंटेलिजेंस के लिए ज़रूरी हैं – सोशल स्किल्स, यानी सामाजिक कौशल। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि सोशल स्किल्स सिर्फ़ ‘नैचुरल टैलेंट’ नहीं हैं, बल्कि ये स्किल्स हैं जिन्हें प्रैक्टिस से सीखा और इम्प्रूव किया जा सकता है। गोलमैन कुछ इम्पोर्टेन्ट सोशल स्किल्स की बात करते हैं, जैसे लिसनिंग, यानी दूसरों को ध्यान से सुनना, एम्पैथी, यानी दूसरों के इमोशन्स को समझना और शेयर करना, कम्युनिकेशन, यानी इफेक्टिवली कम्युनिकेट करना, कॉन्फ़्लिक्ट रेज़ोल्यूशन, यानी कॉन्फ़्लिक्ट्स को पॉज़िटिवली रिज़ॉल्व करना, और कोलाबरेशन, यानी दूसरों के साथ मिलकर काम करना। ये स्किल्स हमें बेटर रिलेशनशिप्स बिल्ड करने में, ज़्यादा इफेक्टिवली कम्युनिकेट करने में, और ज़्यादा सक्सेसफुल होने में हेल्प करते हैं। इसे एक टीम वर्क के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक सक्सेसफुल टीम के लिए, टीम मेंबर्स का एक-दूसरे को ध्यान से सुनना, एक-दूसरे के पर्सपेक्टिव को समझना, क्लियरली कम्युनिकेट करना, और कॉन्फ़्लिक्ट्स को पॉज़िटिवली रिज़ॉल्व करना बहुत ज़रूरी है। ये सारी एबिलिटीज सोशल स्किल्स पर डिपेंड करती हैं। गोलमैन कहते हैं कि सोशल स्किल्स सिर्फ़ प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में ही नहीं, बल्कि पर्सनल लाइफ़ में भी बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं। हेल्दी रिलेशनशिप्स, स्ट्रांग फ़्रेंडशिप्स, और हैप्पी फ़ैमिली लाइफ़ के लिए, गुड सोशल स्किल्स ज़रूरी हैं। वो कहते हैं कि सोशल स्किल्स को इम्प्रूव करने के लिए, हमें प्रैक्टिस करनी चाहिए, फ़ीडबैक लेना चाहिए, और दूसरों से सीखना चाहिए। हमें अपनी वीकनेसेस पर फोकस करना चाहिए, और उन्हें इम्प्रूव करने की कोशिश करनी चाहिए। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि सोशल स्किल्स एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट हैं सोशल इंटेलिजेंस का, और हमें उन्हें कल्टीवेट करना चाहिए। यही है बेटर रिलेशनशिप्स बनाने का, ज़्यादा इफेक्टिव कम्युनिकेटर बनने का, और ज़्यादा सक्सेसफुल होने का रास्ता। जैसे एक म्यूज़िशियन प्रैक्टिस करके अपनी म्यूजिकल स्किल्स को इम्प्रूव करता है, वैसे ही हम भी प्रैक्टिस करके अपनी सोशल स्किल्स को इम्प्रूव कर सकते हैं।
लेसन 9 : इन्फ्लुएंस
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने कुछ इम्पोर्टेन्ट सोशल स्किल्स के बारे में बात की जो हमें दूसरों के साथ इंटरैक्ट करने में हेल्प करती हैं। अब हम एक और क्रूशियल एस्पेक्ट पर फोकस करेंगे जो सोशल इंटेलिजेंस से रिलेटेड है – इन्फ्लुएंस, यानी प्रभाव। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि इन्फ्लुएंस का मतलब है दूसरों को परसुएड करना, मोटिवेट करना, और इंस्पायर करना ताकि वो एक स्पेसिफिक वे में बिहेव करें या थिंक करें। ये सिर्फ़ मैनिपुलेशन के बारे में नहीं है, बल्कि ये जेन्युइन कनेक्शन, रेस्पेक्ट, और अंडरस्टैंडिंग पर बेस्ड होता है। जब हम किसी को इन्फ्लुएंस करते हैं, तो हम उन्हें अपनी बात समझाते हैं, उनके इमोशन्स को एड्रेस करते हैं, और उन्हें एक कॉमन गोल की तरफ़ ले जाते हैं। इसे एक लीडरशिप के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक इफेक्टिव लीडर अपनी टीम को इन्फ्लुएंस करता है ताकि वो एक कॉमन विज़न को अचीव कर सकें। वो अपनी टीम को मोटिवेट करता है, इंस्पायर करता है, और उन्हें रिसोर्सेज़ और सपोर्ट प्रोवाइड करता है ताकि वो अपना बेस्ट परफ़ॉर्म कर सकें। गोलमैन कहते हैं कि इन्फ्लुएंस का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है ‘इमोशनल इंटेलिजेंस’, यानी अपने इमोशन्स को और दूसरों के इमोशन्स को समझना और मैनेज करना। जब हम इमोशनली इंटेलिजेंट होते हैं, तो हम ज़्यादा इफेक्टिवली कम्युनिकेट कर पाते हैं, ज़्यादा स्ट्रॉन्ग रिलेशनशिप्स बिल्ड कर पाते हैं, और ज़्यादा पावरफुल इन्फ्लुएंस क्रिएट कर पाते हैं। वो कहते हैं कि इन्फ्लुएंस सिर्फ़ प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में ही नहीं, बल्कि पर्सनल लाइफ़ में भी बहुत इम्पोर्टेन्ट है। पेरेंट्स अपने बच्चों को इन्फ्लुएंस करते हैं ताकि वो अच्छी वैल्यूज़ सीखें, फ़्रेंड्स एक-दूसरे को इन्फ्लुएंस करते हैं ताकि वो पॉज़िटिव चॉइसेस लें, और पार्टनर्स एक-दूसरे को इन्फ्लुएंस करते हैं ताकि वो एक हेल्दी और हैप्पी रिलेशनशिप मेंटेन कर सकें। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि इन्फ्लुएंस एक पावरफुल सोशल स्किल है, और हमें इसे एथिकली और रेस्पोंसिबिली यूज़ करना चाहिए। यही है ज़्यादा इफेक्टिव लीडर बनने का, और दूसरों को पॉज़िटिवली इम्पैक्ट करने का रास्ता। जैसे एक म्यूज़िशियन अपनी म्यूज़िक से ऑडियंस को इन्फ्लुएंस करता है, वैसे ही हम भी अपनी कम्युनिकेशन और बिहेवियर से दूसरों को इन्फ्लुएंस कर सकते हैं।
लेसन 10 : सोशल इंटेलिजेंस एंड लीडरशिप
दोस्तों, पिछले लेसन में हमने इन्फ्लुएंस के बारे में बात की जो एक इम्पोर्टेन्ट एस्पेक्ट है सोशल इंटेलिजेंस का। अब हम इस बुक के फ़ाइनल और एक बहुत ही रिलेवेंट टॉपिक पर बात करेंगे – सोशल इंटेलिजेंस एंड लीडरशिप, यानी सामाजिक बुद्धिमत्ता और नेतृत्व। डैनियल गोलमैन हमें ये बताते हैं कि सोशल इंटेलिजेंस एक इफेक्टिव लीडर के लिए एक क्रूशियल क्वालिटी है। एक लीडर सिर्फ़ अपनी टेक्निकल स्किल्स से ही सक्सेसफुल नहीं होता, बल्कि अपनी सोशल स्किल्स से भी सक्सेसफुल होता है। एक लीडर को अपनी टीम को समझना होता है, उन्हें मोटिवेट करना होता है, उन्हें इंस्पायर करना होता है, और उनके साथ स्ट्रांग रिलेशनशिप्स बिल्ड करने होते हैं। गोलमैन कुछ स्पेसिफिक सोशल स्किल्स की बात करते हैं जो लीडरशिप के लिए ज़रूरी हैं, जैसे एम्पैथी, यानी दूसरों के इमोशन्स को समझना, सेल्फ-अवेयरनेस, यानी अपने इमोशन्स और स्ट्रेंथ्स को समझना, सोशल स्किल्स, यानी इफेक्टिवली कम्युनिकेट करना और कोलाबोरेट करना, और सेल्फ-रेगुलेशन, यानी अपने इमोशन्स को कंट्रोल करना। ये स्किल्स एक लीडर को अपनी टीम के साथ कनेक्ट करने में, ट्रस्ट बिल्ड करने में, और एक पॉज़िटिव और प्रोडक्टिव वर्क एनवायरनमेंट क्रिएट करने में हेल्प करते हैं। इसे एक बिज़नेस ऑर्गनाइज़ेशन के एग्ज़ाम्पल से समझते हैं। एक सक्सेसफुल बिज़नेस ऑर्गनाइज़ेशन के लिए, लीडर्स का अपनी टीम के साथ स्ट्रांग रिलेशनशिप्स मेंटेन करना, उन्हें मोटिवेट करना, और उन्हें एक कॉमन विज़न की तरफ़ ले जाना बहुत ज़रूरी है। ये सारी एबिलिटीज सोशल इंटेलिजेंस पर डिपेंड करती हैं। गोलमैन कहते हैं कि सोशल इंटेलिजेंस सिर्फ़ बिज़नेस लीडरशिप तक ही लिमिटेड नहीं है, बल्कि ये हर तरह की लीडरशिप में इम्पोर्टेन्ट है, चाहे वो पॉलिटिकल लीडरशिप हो, एजुकेशनल लीडरशिप हो, या कम्युनिटी लीडरशिप हो। एक इफेक्टिव लीडर वो होता है जो अपने फ़ॉलोअर्स को समझता है, उनकी नीड्स को एड्रेस करता है, और उन्हें इंस्पायर करता है ताकि वो अपना बेस्ट परफ़ॉर्म कर सकें। तो दोस्तों, इस लेसन से हम सीखते हैं कि सोशल इंटेलिजेंस एक पावरफुल टूल है जो हमें ज़्यादा इफेक्टिव लीडर बनने में हेल्प करता है। यही है दूसरों को इंस्पायर करने का, और एक पॉज़िटिव इम्पैक्ट क्रिएट करने का रास्ता। जैसे एक कंडक्टर एक ऑर्केस्ट्रा को लीड करता है, वैसे ही एक सोशलली इंटेलिजेंट लीडर अपनी टीम को लीड करता है, और उन्हें एक हार्मनी में लेकर आता है।
तो दोस्तों, ये थे डैनियल गोलमैन की “सोशल इंटेलिजेंस” के दस पावरफुल लेसन्स। हमने सीखा कि कैसे हमारे ब्रेन की बनावट, हमारे इमोशन्स, हमारी सोशल स्किल्स, और हमारी प्रेजेंटेशन ऑफ़ सेल्फ़ हमारी सोशल इंटरैक्शन्स को इम्पैक्ट करते हैं, और कैसे हम अपनी सोशल इंटेलिजेंस को इम्प्रूव कर सकते हैं। ये सिर्फ़ एक किताब की समरी नहीं, बल्कि एक गाइड है ज़्यादा इफेक्टिव कम्युनिकेटर बनने की, स्ट्रॉन्ग रिलेशनशिप्स बिल्ड करने की, और ज़्यादा सक्सेसफुल और फ़ुलफ़िलिंग लाइफ़ जीने की। उम्मीद है कि आपको ये समरी पसंद आयी होगी और आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर आपको ये समरी अच्छी लगी तो इसे लाइक और शेयर करें। मिलते हैं अगले समरी में, तब तक के लिए, बी मोर सोशली इंटेलिजेंट!
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