💔हारने का डर और जीतने की भूख—इन दोनों के बीच का फ़ासला क्या है? क्या फ़र्क़ पड़ता है उस आम आदमी में और एक चैंपियन में? 🏆
याद है, वो दिन जब आपका सपना आपके सामने चूर-चूर हो गया था? जब आपको लगा कि आपने सब कुछ दे दिया, पर फिर भी आप कम पड़ गए? जब दुनिया ने आपको 'लूज़र' मान लिया, और आपके अंदर का 'मैं' भी हार मानकर बैठ गया? पैट रिले (Pat Riley), दुनिया के सबसे सफल बास्केटबॉल कोचेस में से एक, कहते हैं: हर किसी के अंदर 'The Winner Within' होता है। हाँ, आपके अंदर भी! लेकिन हम उसे पहचानते नहीं, या यूँ कहें कि हम उसे जंजीरों में जकड़ देते हैं।
ज़रा मेरी कहानी सुनिए। यह कहानी है राम की, जो मुंबई की एक छोटी सी चॉल में पला-बढ़ा। राम के पापा एक छोटी सी फ़ैक्टरी में काम करते थे और उनकी कमाई बस गुज़ारा ही चला पाती थी। राम का सपना था कि वह एक बड़ा इंजीनियर बने, पर उसे पता था कि उसके पास न तो अच्छे कोचिंग के पैसे हैं, न ही महंगे गैजेट्स। उसकी ज़िन्दगी की 'टीम' (उसका परिवार, उसके दोस्त, उसका माहौल) उसे हर दिन बताती थी, "राम, सपने देखना बंद कर, औकात देख अपनी।"
लेकिन राम ने एक दिन, एक पुरानी किताब की दुकान से फटी हुई 'The Winner Within' की कॉपी ख़रीद ली। किताब इंग्लिश में थी, जो उसे बहुत मुश्किल से समझ आती थी, पर हर शब्द उसे एक नई रौशनी दिखाता था। राम को किताब में पैट रिले का एक कॉन्सेप्ट मिला—'The Innocent Climb'। 🧗
'The Innocent Climb' क्या है? यह वो शुरुआती दौर है, जब आप में कुछ बड़ा करने की न तो अफ़सोस होता है, न ही कोई घमंड। आप बस भूखे होते हैं, सीखने के लिए, ऊपर चढ़ने के लिए। जब राम ने IIT एंट्रेंस की तैयारी शुरू की, तो उसे कोई नहीं जानता था। उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसका सारा ध्यान बस सीखने और रोज़ बेहतर होने पर था। वह दिन में 16 घंटे पढ़ता था, लाइब्रेरी की पुरानी किताबों से नोट्स बनाता था, और हर रात यह सोचकर सोता था कि "आज मैंने पिछली रात वाले राम से कुछ ज़्यादा हासिल किया है।" यही है 'The Innocent Climb'—निस्वार्थ प्रयास, बिना किसी बाहरी दबाव के, बस अपने अंदर की जीत की इच्छा से प्रेरित होकर। 🙏
पर दोस्तों, असली चुनौती यहाँ नहीं आती। असली चुनौती तब आती है जब आपको थोड़ी सी सफलता मिल जाती है। राम ने पहली बार IIT का एक मॉक टेस्ट टॉप किया। सबने उसकी तारीफ़ की, और राम को लगा कि "वाह! मैं तो जीनियस हूँ।"
और बस! यहीं से पैट रिले की किताब का दूसरा दुश्मन सामने आता है: 'The Disease of Me' (मैं की बीमारी)। 🦠
जब आपको थोड़ी सी पहचान मिल जाती है, तो आप टीम को भूल जाते हैं, उस मेहनत को भूल जाते हैं जो आपको यहाँ तक लाई। आप सोचने लगते हैं, "मैंने किया," "मेरा क्रेडिट है," "मुझे ज़्यादा तारीफ़ मिलनी चाहिए।" यह 'मैं' इतना ख़तरनाक है कि यह पूरी टीम (चाहे वह आपकी कंपनी हो, आपका परिवार हो, या आपकी पढ़ाई का ग्रुप हो) को अंदर से खोखला कर देता है। राम के साथ भी यही हुआ। वह अपने दोस्तों को नोट्स देना बंद कर देता है, टीचर से बहस करने लगता है कि "आप मुझे क्या सिखाएँगे?" उसका एटीट्यूड बदल जाता है। नतीजा? अगले तीन मॉक टेस्ट में उसका प्रदर्शन गिरता चला गया। 📉
जब आपका ध्यान इस बात पर केंद्रित हो जाता है कि आपको कितना मिल रहा है, तो आप उस बात से भटक जाते हैं कि आपको क्या देना है। टीम वर्क, रिले के लिए, बस एक शब्द नहीं है, यह एक 'Core Covenant' (मूल प्रतिज्ञा) है। यह एक ऐसा समझौता है जहाँ हर कोई अपने अहंकार को दरवाज़े पर छोड़कर आता है और सिर्फ़ टीम की जीत के लिए काम करता है। राम को यह बात तब समझ आई जब उसके एक दोस्त ने (जिसे उसने नोट्स देने से मना कर दिया था) उसे एक रात समझाया, "यार राम, तू पढ़ने में हमसे बेहतर है, पर तूने अकेले मेहनत की, पर हम सब तेरी हिम्मत थे। अकेले भागना आसान है, पर रेस तो सबके साथ जीती जाती है।" 🤝
यह बात राम को चुभ गई। उसने दोबारा किताब खोली और 'The Core Covenant' वाला चैप्टर पढ़ा। रिले बताते हैं कि एक मज़बूत टीम एक ऐसे परिवार की तरह होती है जहाँ विश्वास, समर्पण और आपसी सम्मान होता है। राम ने माफ़ी माँगी और अपने दोस्तों के साथ मिलकर पढ़ने का एक नया तरीक़ा निकाला। उसने उनकी मदद की, और बदले में, उन्होंने उसे तनाव से मुक्त रहने में मदद की।
लेकिन, जीवन एक सीधी रेखा नहीं है। यहाँ आती हैं 'Thunderbolts' (आसमानी बिजली)। 🌩️
ये वो अप्रत्याशित संकट होते हैं जिन पर आपका कोई नियंत्रण नहीं होता। जैसे कोरोना, जैसे अचानक आई मंदी, या राम के केस में—उसके पापा की फ़ैक्टरी बंद हो जाना और घर में पैसों की तंगी आ जाना। राम हिल गया। उसका सपना, उसकी तैयारी—सब कुछ दांव पर था। वह इतना निराश हो गया कि उसे लगा, "छोड़ यार, ये सब मेरे बस का नहीं है।"
ऐसे 'Thunderbolts' में, विजेता क्या करता है? पैट रिले कहते हैं, आप सिर्फ़ दो चीज़ें चुन सकते हैं: या तो आप उस संकट को आपको ख़त्म करने दें, या फिर आप उसे एक 'ब्रेकथ्रू' (Breakthrough) का मौक़ा मानें। राम ने फ़ैसला किया कि वह इसे टूटने नहीं देगा। उसने दिन में ट्यूशन देना शुरू किया, रात में तैयारी की। थकान से बुरा हाल होता था, पर उसे पता था कि अब उसकी टीम (उसका परिवार) उसे देख रही है।
रिले का सबसे बड़ा सबक यही है कि जब आप सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहे हों, तो अपनी मानसिक मज़बूती (Mental Toughness) को चेक करें। 'Choke' करने वाले वो नहीं होते जो हार जाते हैं, बल्कि वो होते हैं जो जीतने से डरकर खेलते हैं। जो हारने के डर को इतना हावी होने देते हैं कि उनकी पूरी ऊर्जा सिर्फ़ ग़लती न करने में लग जाती है, न कि जीतने में।
राम ने डरना बंद किया और फ़ोकस किया। उसने सिर्फ़ यह सोचा कि "अगला एक घंटा मैं कितना बेहतर कर सकता हूँ।" धीरे-धीरे, उसके अंदर 'The Winner Within' जाग उठा। वह सिर्फ़ IIT के लिए नहीं पढ़ रहा था, वह अपने परिवार के लिए, अपने दोस्तों के लिए, और अपनी ज़िंदगी की कहानी बदलने के लिए लड़ रहा था। 💪
और फिर आता है 'Complacency' (आत्मसंतुष्टि)—सफलता की सबसे बड़ी दुश्मन। 😴
राम IIT में सिर्फ़ सेलेक्ट ही नहीं हुआ, उसने टॉप 500 में रैंक हासिल की। घर में ख़ुशी का माहौल था। सबने कहा, "अब तेरी लाइफ सेट है।" और यही सबसे ख़तरनाक जगह है। रिले इसे 'Success Disease' कहते हैं। जब आप अपनी पिछली जीत से इतने ख़ुश हो जाते हैं कि आगे बढ़ना बंद कर देते हैं। जब आप सोचते हैं कि आपने सब कुछ हासिल कर लिया।
राम जानता था कि अगर उसे "Winner" बने रहना है, तो उसे हमेशा अपने आप से यह सवाल पूछते रहना होगा: "अगला पहाड़ कौन-सा है?" उसे खुद को याद दिलाना था कि बाहर कोई और भी है जो उससे ज़्यादा भूखा है, जो उससे ज़्यादा मेहनत कर रहा है।
रिले सिखाते हैं कि एक असली चैम्पियन कभी रुकता नहीं। वह हर बार एक नया 'Innocent Climb' शुरू करता है। वह अपनी पुरानी जीत को भूलकर, नए लक्ष्यों पर नज़र रखता है। राम ने इंजीनियरिंग के बाद एक स्टार्टअप शुरू किया, और हर नए प्रोजेक्ट को उसने एक नया 'Innocent Climb' माना, जहाँ उसे शुरू से टीम बनानी थी, अहंकार को कंट्रोल करना था, संकटों को झेलना था, और आत्मसंतुष्टि से लड़ना था। 🚀
दोस्तों, 'The Winner Within' कोई जादुई फ़ॉर्मूला नहीं है। यह पाँच साइकल का एक चक्र है:
1. The Innocent Climb: भूखा रहना, निस्वार्थ सीखना।
2. The Disease of Me: अहंकार को मारना।
3. The Core Covenant: विश्वास और समर्पण की टीम बनाना।
4. Thunderbolts & The Choke: संकटों को 'ब्रेकथ्रू' का मौक़ा मानना, और डर को जीत की भूख से बदलना।
5. Complacency: अपनी पिछली जीत को भूलकर, नया लक्ष्य तय करना।
आप अपनी ज़िंदगी के किस चैप्टर में हैं? क्या आप अभी 'Innocent Climb' पर हैं, या 'Disease of Me' आपको खा रहा है? शायद आप किसी 'Thunderbolt' से जूझ रहे हैं?
याद रखिए, विजेता वो नहीं होता जिसके पास सबसे ज़्यादा टैलेंट होता है। विजेता वो होता है जो जानता है कि उसके अंदर एक ऐसा विजेता बैठा है जो परिस्थितियों से नहीं डरता, जो टीम वर्क में विश्वास रखता है, और जो कभी भी संतुष्ट नहीं होता। यह किताब सिर्फ़ बास्केटबॉल के बारे में नहीं है, यह आपकी लाइफ़ के गेम प्लान के बारे में है। 🎯
उठो, अपने अंदर के विजेता को जगाओ, और अपनी कोर प्रतिज्ञा (Core Covenant) बनाओ। क्योंकि सबसे मुश्किल मैच वो नहीं है जो आप मैदान पर खेलते हैं, बल्कि वो है जो आप रोज़ अपने अंदर लड़ते हैं। इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद, आप पहला एक्शन क्या लेंगे? नीचे कमेंट में Win लिखकर बताइए! 💬
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