Everything Is Negotiable (Hindi)


यार, एक बात बताओ... क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि कोई चीज़ आपको बहुत पसंद आई, आपने उसकी कीमत भी पूछी, लेकिन जब मोल-भाव (bargaining) की बारी आई, तो बस दो-चार रुपये कम करवाकर वापस आ गए? या फिर, क्या आप किसी इंटरव्यू (Interview) में गए, आपको पता था कि आप ज़्यादा सैलरी (salary) deserve करते हैं, लेकिन जब एचआर (HR) ने पहली बार जो रकम बोली, आपने चुपचाप हाँ कर दी? Gavin Kennedy की किताब, "Everything Is Negotiable" कहती है: हर चीज़, हाँ... हर चीज़ मोल-भाव के लिए तैयार है! ये सिर्फ़ बाज़ार में टमाटर ख़रीदने की बात नहीं है, ये आपकी सैलरी, आपका करियर (career), आपका रोज़ का सक्सेस (success) तय करता है! 🌍✨

कहानी एक आम आदमी की... जो ख़ास बनने वाला था!
आज से क़रीब दस साल पहले की बात है। मैं और मेरा दोस्त, जिसका नाम आर्यन था, एक ही आईटी कंपनी में फ़्रेशर (fresher) के तौर पर लगे थे। हम दोनों के कॉलेज के मार्क्स और स्किल (skill) लगभग एक जैसे थे, पर जब हम दोनों को ऑफ़र लेटर (offer letter) मिला, तो मैं हैरान रह गया। मेरी सैलरी थी 4 लाख रुपये सालाना, और आर्यन की थी 6.5 लाख रुपये! मुझे लगा कि ज़रूर कोई ग़लती हुई है, या फिर आर्यन को कोई ‘ख़ास’ फ़ायदा मिला है। पर सच्चाई कहीं और थी।

जब मैंने आर्यन से पूछा, तो उसने हँसते हुए जवाब दिया, “यार, मोल-भाव (Mol bhav karne ke tarike) करना सीख ले। मैंने वो किया, जो तुम नहीं कर पाए।” उसने मुझे बताया कि एचआर ने जब पहली सैलरी ऑफ़र की, तो उसने Gavin Kennedy की थ्योरी का इस्तेमाल किया। उसने फ़ौरन हाँ नहीं बोला। उसने कहा, “सर, मैं आपकी कंपनी के लिए एक बहुत बड़ा एसेट (asset) बन सकता हूँ। मेरे स्किल्स को देखते हुए, 6.5 लाख की सैलरी मेरे लिए सही ‘वैल्यू (value)’ होगी।”

आर्यन ने मुझे समझाया कि ज़्यादातर लोग negotiation को 'लड़ाई' या 'बहस' समझते हैं, पर यह दरअसल 'वैल्यू' को सही तरीक़े से पेश करने का एक तरीक़ा है। यह वो art of negotiation है, जो हमें Everything Is Negotiable सिखाती है। किताब कहती है कि समझौते (settlement) में हमेशा दो तरह के 'गैप (gap)' होते हैं:
1. Information Gap (सूचना का अंतर): आपको नहीं पता कि सामने वाला अपनी आख़िरी 'वॉक-अवे' पोज़िशन (walk-away position) पर कब पहुँचेगा।
2. Confidence Gap (आत्मविश्वास का अंतर): आपको यक़ीन नहीं है कि आपकी डिमांड सही है या नहीं।

जिसने ये दोनों गैप भर दिए, वो जीत गया। आर्यन ने अपना कॉन्फ़िडेंस गैप भरा, और एचआर से वो इंफ़ॉर्मेशन गैप भरवाया।

Negotiation का डर: हमारा सबसे बड़ा दुश्मन 👺
हम भारतीय अक्सर मोल-भाव करने से डरते हैं। दुकान पर तो कर लेते हैं, पर जब बात आती है बड़ी चीज़ों की, जैसे कि नया घर (new house), कार (car), या सबसे ज़रूरी, सैलरी (salary negotiation tips in Hindi), तो हम डर जाते हैं। हमें लगता है कि अगर हमने ज़्यादा डिमांड (demand) कर दी, तो सामने वाला नाराज़ हो जाएगा, या डील ख़त्म कर देगा।

लेकिन Gavin Kennedy कहते हैं, “Negotiation शुरू ही तब होती है, जब दूसरा पक्ष 'ना' कहता है।” यानी, जब तक आपको 'ना' नहीं मिलती, तब तक आपने अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल ही नहीं किया।

यह किताब हमें सिखाती है कि Negotiation के चार मुख्य भाग हैं, जिन्हें The Kennedy Checklist कहा जाता है:
1. Objectives (लक्ष्य): आप क्या हासिल करना चाहते हैं?
2. Bargaining Range (मोल-भाव की सीमा): आपकी सबसे अच्छी उम्मीद (Best Deal) क्या है, और आप कहाँ से वापस चले जाएँगे (Walk-Away Point)?
3. Power (शक्ति): आपके पास कौन सी चीज़ है, जिसके लिए सामने वाले को आपकी ज़रूरत है?
4. Strategy and Tactics (रणनीति और चालें): आप अपने लक्ष्य तक कैसे पहुँचेंगे?

हर चीज़ Negotiate करने के 5 अचूक राज़ (Har cheez negotiate karne ke raaz)

अगर आप अपनी ज़िन्दगी की हर डील जीतना चाहते हैं, तो इन पाँच Successful negotiation ke 5 secret को गाँठ बाँध लें:

१. अपनी BATNA को पहचानो: आपकी असली ताक़त
बैटना (BATNA) का मतलब है: Best Alternative To a Negotiated Agreement। आसान शब्दों में कहें तो, अगर यह डील नहीं हुई, तो आपके पास सबसे अच्छा दूसरा विकल्प (Plan B) क्या है?

जब आर्यन एचआर से बात कर रहा था, तो उसकी बैटना यह थी कि अगर ये कंपनी 6.5 लाख नहीं देती, तो उसके पास एक दूसरी छोटी कंपनी का ऑफ़र 5 लाख का पहले से रखा था। बैटना ही आपकी असली ताक़त (Power) है। अगर आपके पास कोई Plan B नहीं है, तो आपकी negotiation की कुर्सी हिलती रहेगी। अपनी बैटना को मज़बूत करो, और फिर नेगोशिएशन करो!

२. कभी भी पहले ऑफ़र को स्वीकार न करें (Never Accept the First Offer)
इंटरव्यू मे सैलरी negotiation tips in Hindi का यह सबसे बड़ा नियम है। जब भी आपको कोई सैलरी, कोई दाम या कोई ऑफ़र पहली बार दिया जाता है, तो समझ लीजिए कि वो सामने वाले की 'Bargaining Range' का निचला स्तर है। अगर आप फ़ौरन 'हाँ' कह देते हैं, तो सामने वाले को लगता है कि उन्होंने बहुत कम ऑफ़र कर दिया।

Gavin Kennedy कहते हैं, एक छोटा-सा 'नहीं' या 'क्या आप इसमें कुछ और कर सकते हैं?' जादू की तरह काम करता है। सिर्फ़ यह सवाल पूछने से, आप टेबल पर और 10 से 20% तक ज़्यादा वैल्यू ला सकते हैं।

३. 'पोकर फ़ेस' नहीं, 'पॉजिटिव फ़ेस' बनाओ 😎
नेगोशिएशन में बहुत लोग ऐसे बैठते हैं, जैसे कोई पोकर गेम (poker game) खेल रहे हों—कोई इमोशन नहीं दिखाना। यह ग़लत है। यह कोई लड़ाई नहीं, बातचीत है। Bargaining kaise karte hain life me? इसका जवाब है: रिश्ता (Rapport) बनाओ!

मुस्कुराओ। सामने वाले की बात ध्यान से सुनो (Active Listening)। अगर आपको किसी पॉइंट पर असहमति है, तो चिल्लाने या ग़ुस्सा करने के बजाय, यह कहो, “मैं आपकी बात पूरी तरह समझता हूँ, और यह एक मज़बूत तर्क है, पर मुझे लगता है कि इस डील में एक win-win सिचुएशन बन सकती है, अगर हम...” यह 'soft power' आपको वो दिला सकती है, जो 'hard power' नहीं दिला सकती।

४. छोटी चीज़ों के लिए मोल-भाव करो (Small Things Matter)
याद रखें, Everything Is Negotiable। आपको हर बड़ी डील में नेगोशिएशन करने की आदत तभी पड़ेगी, जब आप रोज़ाना की छोटी चीज़ों में इसे इस्तेमाल करेंगे।

जैसे, अगर आप कोई नया फ़ोन ख़रीद रहे हैं, तो सिर्फ़ डिस्काउंट मत माँगो। यह नेगोशिएट करो कि क्या वो आपको एक्स्ट्रा कवर (extra cover), स्क्रीन गार्ड (screen guard), या एक साल की एक्सटेंडेड वारंटी (extended warranty) दे सकते हैं। सामने वाले के लिए ये छोटी चीज़ें हैं, पर आपकी ओवरऑल वैल्यू (value) बढ़ाती हैं। यह आपकी मोल-भाव की आदत (habit of bargaining) को मज़बूत करता है।

५. समय का इस्तेमाल करो (Use Time as a Tool) ⏱️
नेगोशिएशन में जल्दी कभी मत करना। जो जल्दी करता है, वो कमज़ोर दिखता है। अगर सामने वाला कहे, "हाँ या ना अभी बताओ," तो इसका मतलब है कि वो आपको दबाव में लाना चाहता है।

Gavin Kennedy कहते हैं कि समय एक बड़ा हथियार है। जब आपको कोई बड़ा ऑफ़र मिले, तो यह मत कहो, "ठीक है, मैं अभी बताता हूँ।" बल्कि यह कहो, “मुझे इस ऑफ़र को मेरी टीम/परिवार/फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र के साथ डिस्कस करने के लिए २४ घंटे का समय चाहिए।” यह छोटा-सा ब्रेक आपको सोचने, अपनी बैटना (BATNA) को फिर से जाँचने और एक बेहतर जवाब तैयार करने का मौक़ा देता है।


आर्यन की कहानी का दूसरा पार्ट भी है। पहली डील जीतने के बाद, उसने हर साल (year) अपनी सैलरी पर नेगोशिएट किया। उसने कभी भी कंपनी के अप्रेज़ल सिस्टम (appraisal system) को अपनी सैलरी का फ़ैसला नहीं करने दिया। हर साल, वह अपनी अचीवमेंट्स (achievements) की लिस्ट बनाता था, बाज़ार में उसकी स्किल की वैल्यू कितनी है, यह रिसर्च करता था, और फिर एक ठोस प्रपोज़ल (proposal) लेकर मैनेजर (manager) के पास जाता था।

यह Everything Is Negotiable का सार है: जिन्होंने अपनी क़ीमत (value) खुद तय की, उन्होंने ही हमेशा ज़्यादा कमाया।

अगर आप यह सोचकर पीछे हट जाते हैं कि "मैं नेगोशिएट नहीं कर सकता," तो आप एक बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं। आप अपनी वैल्यू को कम कर रहे हैं। याद रखिए, आप ख़रीददार (buyer) हों या बेचने वाले (seller), आप हमेशा एक नेगोशिएटर होते हैं—अपने बॉस के साथ, अपने बच्चों के साथ, अपनी बीवी/पति के साथ, और सबसे ज़रूरी, खुद के साथ!

तो अब से, अपनी ज़िंदगी को एक नेगोशिएशन टेबल (negotiation table) समझो। आज से, छोटी से छोटी चीज़ में भी मोल-भाव करने की आदत डालो। अपनी बैटना (BATNA) को पहचानो। और जब अगली बार कोई आपको कोई ऑफ़र दे, तो फ़ौरन 'हाँ' मत कहना।

कमेंट में बताओ: आप अगली कौन सी चीज़ नेगोशिएट करने वाले हो? क्या वो आपकी सैलरी है, या किसी दुकान पर कोई बड़ा डिस्काउंट? 👇 हमें आपकी सक्सेस स्टोरी का इंतज़ार रहेगा! इस आर्टिकल को अपने उन दोस्तों के साथ शेयर (share) करो, जो अपनी असली वैल्यू नहीं पहचान पाए हैं!


 

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