🤯 क्या आपको भी लगता है कि आप ऑफिस में कड़ी मेहनत तो बहुत करते हैं, पर आपकी वैल्यू कोई नहीं करता? क्या आपकी फाइलें हमेशा परफ़ेक्ट होती हैं, आप टाइम पर आते-जाते हैं, फिर भी प्रमोशन उस "स्टार परफॉर्मर" को मिल जाता है जो शायद आपसे कम मेहनत करता दिखता है? 🤔 अगर हाँ, तो ये कहानी आपकी है। क्योंकि बॉस सिर्फ़ 'काम' नहीं देखता, बॉस देखता है 'इम्पैक्ट'!
मुझे याद है, मेरे एक दोस्त की कहानी जिसका नाम समीर था। समीर किसी भी ऑफिस का 'बेस्ट एम्प्लॉई' हो सकता था, लेकिन वो हमेशा 'एवरेज' की भीड़ में खोया रहता था। सुबह 9 बजे शार्प डेस्क पर, रात 7 बजे तक काम करता, कभी छुट्टी नहीं लेता। उसे लगता था कि उसकी ईमानदारी और हार्डवर्क एक दिन ज़रूर चमकेगा। मगर हर साल जब अप्रेज़ल होता, तो उसकी सैलरी में बस थोड़ा सा इज़ाफ़ा होता, और तारीफ़ मिलती: "समीर, तुम बहुत रिलायबल हो।" ये तारीफ़ उसे चुभती थी, क्योंकि रिलायबल तो कूरियर वाला भी होता है! 😞
समीर की ही टीम में एक और लड़की थी, पूजा। पूजा समीर से एक घंटा देर से आती, और कभी-कभी जल्दी भी चली जाती। वो समीर जितना मेहनती नहीं दिखती थी, लेकिन वो हमेशा हाई-प्रोफ़ाइल प्रोजेक्ट्स की हेड होती थी। जब भी बॉस को कोई बड़ा, दिखने वाला काम चाहिए होता, तो आवाज़ आती, "पूजा!" समीर मन ही मन कुढ़ता था, उसे लगता था कि पूजा सिर्फ़ चापलूस है या उसे सिर्फ़ 'दिखावा' आता है। एक दिन समीर ने हिम्मत करके बॉस से पूछा, "सर, मैं इतना काम करता हूँ, पर मुझे बड़े प्रोजेक्ट्स क्यों नहीं मिलते?" बॉस ने जो जवाब दिया, उसने समीर की आँखें खोल दीं, और शायद ये जवाब आपकी आँखें भी खोल दे। 💡 बॉस ने कहा, "समीर, तुम Star Performer नहीं, तुम एक Support Performer हो।" यह सुनकर समीर टूट गया, लेकिन बॉस ने आगे जो समझाया, वो Robert Kelley की किताब "How to Be a Star at Work" का निचोड़ था।
बॉस ने समीर को समझाया कि ऑफिस में दो तरह के लोग होते हैं: Core Performers (जो ज़रूरी काम करते हैं) और Star Performers (जो काम को असाधारण बनाते हैं)। समीर एक कोर परफ़ॉर्मर था। वह काम को अच्छे से करता था, पर पूजा काम को स्मार्ट तरीके से करती थी और उसका इम्पैक्ट (Impact) बहुत बड़ा होता था।
इस किताब के हिसाब से, स्टार परफॉर्मर बनने के लिए सिर्फ़ 8-10 घंटे काम करना काफ़ी नहीं है। आपको 9 खास तरह की स्ट्रैटेजी (Strategies) अपनानी होंगी, जिन्हें Robert Kelley "Star Performance Strategies" कहते हैं। समीर ने इन पर काम करना शुरू किया।
पहली स्ट्रैटेजी: Proactive बनो, Reactive नहीं! 🚀
समीर पहले 'reactive' था। इसका मतलब: जब बॉस ने कुछ मांगा, तब उसने किया। एक स्टार परफॉर्मर हमेशा proactive होता है। वह बॉस के मांगने से पहले ही समझ जाता है कि आगे क्या समस्या आने वाली है, और उसका हल तैयार रखता है। मान लो, अगर आप एक रिपोर्ट बना रहे हैं, तो सिर्फ़ डेटा मत दीजिए। साथ में उस डेटा का मतलब (Insight) और आगे क्या करना है (Recommendation), वो भी दीजिए। समीर ने ऐसा करना शुरू किया। उसने अगली तिमाही में आने वाली सेल्स प्रॉब्लम का डेटा एनालिसिस कर लिया और तीन संभावित हल बॉस को मेल कर दिए। बॉस अचंभित रह गए! उन्हें पहली बार समीर में पहल करने वाला लीडर दिखा।
दूसरी स्ट्रैटेजी: Visibility, Not Just Workability! 👀
पूजा की सफलता का राज़ था विजिबिलिटी। इसका मतलब ये नहीं कि चिल्ला-चिल्लाकर अपनी तारीफ़ करो। इसका मतलब है, यह सुनिश्चित करना कि आपके काम का सही लोगों को पता चले। समीर पहले मेल में सिर्फ़ बॉस को CC करता था। पूजा हमेशा उन Decision Makers को भी BCC/CC करती थी जिनका उस प्रोजेक्ट से दूर का भी संबंध था। जब आप कोई बड़ा काम पूरा करते हैं, तो उसे सिर्फ़ 'Done' मार्क मत कीजिए। एक छोटा, साफ़-सुथरा 'Success Note' सबको भेजिए, जिसमें बताइए कि आपकी वजह से कंपनी को क्या फ़ायदा हुआ। याद रखिए, अच्छा काम बिना बताए 'invisible' रहता है।
तीसरी स्ट्रैटेजी: Network बनाना सिर्फ़ कॉफ़ी पीना नहीं है। 🤝
समीर को लगता था कि नेटवर्किंग सिर्फ़ ऑफिस की गपशप है। पर Kelley कहते हैं कि यह आपके 'Go-To Resource' बनने के बारे में है। स्टार परफॉर्मर ऑफिस के हर डिपार्टमेंट में एक-दो ऐसे लोगों को जानता है जो ज़रूरत पड़ने पर उसकी मदद कर सकें। जैसे, IT वाले से दोस्ती, ताकि आपकी मीटिंग में प्रोजेक्टर तुरंत काम करे। या फाइनेंस वाले से अच्छा रिश्ता, ताकि आपकी पेमेंट अटके नहीं। समीर ने अंदरूनी नेटवर्किंग शुरू की, जिससे उसके काम में आने वाली छोटी-छोटी रुकावटें (Blockers) पल भर में दूर होने लगीं।
चौथी स्ट्रैटेजी: Mentorship और Sponsorship में अंतर समझो! 👨🏫
Mentor आपको सिखाता है कि काम कैसे करना है। Sponsor वो होता है जो मीटिंग रूम में आपके नाम की सिफ़ारिश करता है। स्टार परफॉर्मर Sponsor ढूंढते हैं, जो सिर्फ़ उनके काम की तारीफ़ नहीं करता, बल्कि उनके लिए लड़ता है और उन्हें नए मौके दिलवाता है। समीर को समझ आया कि उसे एक चैंपियन की ज़रूरत है, न कि सिर्फ़ एक गाइड की।
पाँचवी स्ट्रैटेजी: 'Territory' नहीं, 'Expertise' बनाओ! 🧠
कुछ लोग अपनी 'ज़िम्मेदारी' (Territory) को लेकर बहुत पज़ेसिव होते हैं, वे किसी को अंदर नहीं आने देते। स्टार परफॉर्मर इसके विपरीत, अपनी Expertise को इतना मज़बूत बनाता है कि लोग मदद के लिए ख़ुद उसके पास आते हैं। समीर ने डेटा विज़ुअलाइज़ेशन में महारत हासिल की, जो उसकी टीम में किसी को नहीं आता था। अचानक वह सिर्फ़ 'रिलायबल' नहीं, बल्कि 'इन्डिस्पेंसेबल' (Indispensable - जिसके बिना काम न चले) बन गया।
छठी स्ट्रैटेजी: 'Ask for Resources' 🛠️
कम परफॉर्म करने वाले लोग शिकायत करते हैं कि उनके पास टूल या टीम नहीं है। स्टार परफॉर्मर साहस दिखाता है और बताता है कि अगर उसे यह X टूल या Y टीम मिल जाए, तो वह कंपनी को Z फ़ायदा देगा। समीर को एक महंगा सॉफ्टवेयर चाहिए था। उसने सिर्फ़ ये नहीं कहा कि "मुझे चाहिए।" उसने कहा, "यह सॉफ्टवेयर हमारे 200 घंटों का मैन्युअल काम बचाएगा, जो ₹1 लाख की बचत होगी।" जब आप फ़ायदा दिखाते हैं, तो खर्चा इन्वेस्टमेंट बन जाता है। 💰
सातवीं स्ट्रैटेजी: 'Team Player' नहीं, 'Team Leader' बनो! 👑
टीम प्लेयर वो होता है जो सब कुछ मिल-बाँटकर करता है। टीम लीडर वो होता है जो ज़िम्मेदारी लेता है। जब प्रोजेक्ट में कुछ गलत होता है, तो स्टार परफॉर्मर तुरंत सामने आता है और कहता है, "मैं इसे ठीक करूँगा।" जब क्रेडिट लेने का समय आता है, तो वह क्रेडिट टीम को देता है। समीर ने एक फेल हुए क्लाइंट प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी ली, उसे सफलतापूर्वक खत्म किया, और सारा क्रेडिट टीम को दिया। उसकी लीडरशिप क्वालिटी पहली बार साफ़ नज़र आई।
आठवीं स्ट्रैटेजी: 'रिस्क' लो और 'गलती' से सीखो! ⚡
सेफ़ खेलना सबसे आसान है। लेकिन सेफ़ खेलने वाले स्टार नहीं बनते। स्टार परफॉर्मर कैलकुलेटेड रिस्क (Calculated Risk) लेते हैं। वे जानते हैं कि अगर वे सफल हुए, तो उन्हें बड़ा इनाम मिलेगा, और अगर विफल हुए, तो उन्हें एक बहुमूल्य सबक मिलेगा। जब समीर ने प्रोएक्टिव मेल्स भेजे, तब उसे डर था कि बॉस क्या कहेंगे। लेकिन उसने रिस्क लिया और इससे उसकी इमेज पूरी तरह बदल गई। याद रखो, सबसे बड़ा रिस्क, कोई रिस्क न लेना है।
समीर ने अगले छह महीनों तक इन सभी स्ट्रैटेजी पर काम किया। वह अब चुपचाप काम करने वाला इंसान नहीं रहा। वह मीटिंग्स में सवाल करता था, अपने काम का इम्पैक्ट दिखाता था, और सबसे ज़रूरी, वह बॉस के अगले क़दम के लिए पहले से ही तैयार रहता था। जब अगले साल अप्रेज़ल का समय आया, तो बॉस ने उसे सिर्फ़ 'रिलायबल' नहीं कहा। उन्होंने उसे 'मोस्ट वैल्यूएबल एम्प्लॉई' कहा और उसे पूजा के साथ एक नए, बड़े लीडरशिप प्रोजेक्ट का हेड बना दिया।
समीर ने सीखा कि मेहनत ज़रूरी है, पर स्मार्ट मेहनत ही आपको Star बनाती है। Robert Kelley की किताब हमें यही सिखाती है: सिर्फ़ अपना काम मत करो, अपना इम्पैक्ट मल्टीप्लाई करो! 📈
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