जब मैं बच्चा था, तो मेरे पास दो पापा थे। एक, मेरे अपने 'पुअर डैड'—पढ़े-लिखे, Ph.D. की डिग्री वाले, सरकारी नौकरी करने वाले और हमेशा कहते थे, "ख़ूब पढ़ो, अच्छी नौकरी पाओ।" दूसरे, मेरे दोस्त के 'रिच डैड'—आठवीं भी पास नहीं थे, पर हवाई में बड़े बिजनेसमैन थे, और वो कहते थे, "पैसे के लिए काम मत करो, पैसे को अपने लिए काम कराना सीखो।"
पता नहीं क्यूँ, बचपन में रिच डैड की बातें बहुत अटपटी लगती थीं। अजीब लगता था कि एक इतना बड़ा अफसर (मेरे पुअर डैड) हमेशा EMI और कर्ज़ के जाल में उलझा रहता है, और एक कम पढ़ा-लिखा इंसान (रिच डैड) हर गुज़रते दिन के साथ और अमीर होता जा रहा है। ये सवाल मेरे मन में एक गाँठ की तरह बैठ गया था: गरीब और अमीर की सोच में अंतर क्या है? इसी सवाल ने मुझे दौड़ने पर मजबूर कर दिया, उस रेस में जिसे रॉबर्ट कियोसाकी ने 'Rat Race' कहा है। हम सब एक ऐसी दौड़ में हैं जहाँ हम काम करते हैं, पैसा आता है, फिर खर्च होता है, और हम फिर से काम करने लग जाते हैं—जैसे चूहा पहिये पर दौड़ रहा हो।
एक मिडिल क्लास परिवार का हर बच्चा इस दर्द से गुज़रता है। जब आपको कोई बड़ी चीज़ चाहिए होती है, तो जवाब होता है, "बेटा, हमारे पास उतने पैसे नहीं हैं।" मेरा पुअर डैड, अपनी अच्छी सैलरी के बावजूद, हमेशा यही कहता था। वो हमेशा सुरक्षा (Security) को महत्व देते थे, यानी एक स्थिर नौकरी और रिटायरमेंट पेंशन। उनका मंत्र था: 'जोखिम मत लो।' पर रिच डैड का नज़रिया बिलकुल अलग था। वो कहते थे, "रॉबर्ट, सबसे बड़ा जोखिम है कोई जोखिम न लेना।" उन्होंने मुझे सिखाया कि स्कूल हमें सिर्फ नौकरी के लिए तैयार करता है, पैसे को संभालने के लिए नहीं। कॉलेज की डिग्री से आपको नौकरी मिल सकती है, पर फाइनेंशियल फ्रीडम नहीं।
उन्होंने मुझे सबसे पहली और सबसे ज़रूरी सीख दी: एसेट्स और लायबिलिटीज का फर्क हिंदी में समझो। पुअर डैड सोचते थे कि एक बड़ा घर, एक चमचमाती कार उनका 'Asset' है। पर रिच डैड मुस्कुराते थे। उन्होंने समझाया, Asset वो है जो तुम्हारी जेब में पैसा डाले (जैसे किराया देने वाली प्रॉपर्टी, स्टॉक्स, या कोई चलता हुआ बिज़नेस)। और Liability वो है जो तुम्हारी जेब से पैसा निकाले (जैसे तुम्हारा बड़ा घर जिसका टैक्स और मेंटेनेंस भरना पड़ता है, तुम्हारी नई कार जिसकी EMI जाती है)। पुअर डैड Liability खरीदते-खरीदते ही गरीब होते चले गए, जबकि रिच डैड लगातार Asset बनाते रहे। ये एक माइंडसेट शिफ्ट था जो मेरी आँखें खोल गया।
याद है एक बार मैं और मेरा दोस्त रिच डैड के ऑफ़िस में बैठे थे। मैंने पूछा, "आप इतने अमीर कैसे बन गए? क्या आप पैसे के लिए बहुत मेहनत करते हैं?" रिच डैड ने एक लम्बी साँस ली और कहा, "नहीं रॉबर्ट, मैं पैसे के लिए काम नहीं करता। मैं पैसे को अपने लिए काम कराता हूँ।" यही है वो राज़! पैसे को अपने लिए कैसे काम कराएं? इसके लिए आपको काम करना बंद नहीं करना है, बल्कि अपनी कमाई को ऐसी जगह लगाना है जहाँ वो खुद ब खुद बढ़ती रहे—जिसे हम पैसिव इनकम कहते हैं। वो बिज़नेस शुरू करते थे, प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करते थे, और उन चीज़ों से जो कैशफ़्लो आता था, उससे वो और Assets खरीदते थे। गरीब आदमी सबसे पहले बिल भरता है, फिर खर्च करता है और अगर कुछ बचता है तो उसे ही सेविंग या इन्वेस्टमेंट कहता है। अमीर आदमी सबसे पहले खुद को भुगतान (Pay Yourself First) करता है—यानी अपने Assets में इन्वेस्ट करता है।
इस पूरी कहानी में एक और खिलाड़ी है जो दिखता नहीं—वो है डर और लालच। जब भी कोई नया इन्वेस्टमेंट आता है, पुअर डैड डर जाते थे कि कहीं पैसा डूब न जाए। इसी डर ने उन्हें पूरी ज़िंदगी एक सुरक्षित मगर बंधे-बंधाए दायरे (Comfort Zone) में रखा। और जब भी सैलरी बढ़ती थी, तो लालच उन्हें मजबूर कर देता था कि वो और बड़ी कार या और बड़ा TV खरीद लें—यानी अपनी Liabilities को बढ़ा लें। इसे ही 'The Financial Runaway' कहते हैं। रिच डैड ने सिखाया कि डर और लालच से ऊपर उठकर निवेश कैसे करें? उन्होंने कहा कि ज्ञान (Financial Education) ही डर को दूर करने का एकमात्र तरीका है। जब आपको पता होता है कि स्टॉक मार्केट कैसे काम करता है, या रियल एस्टेट का जोखिम क्या है, तो आप आँखें बंद करके नहीं, बल्कि सोच समझकर रिस्क लेते हैं। रिस्क हमेशा होता है, पर वित्तीय ज्ञान उसे मैनेज करने की ताकत देता है।
तो, रिच डैड पुअर डैड से क्या सीखा? मैंने सीखा कि सिर्फ एक अच्छी नौकरी होना काफी नहीं है। अगर आप हमेशा सैलरी के भरोसे रहेंगे, तो आप एक तरह से दूसरों के लिए ही काम कर रहे हैं। आप अपने बॉस को अमीर बना रहे हैं। मैंने देखा कि कई लोग जो नौकरी छोड़कर अमीर कैसे बनें सोचते हैं, वो असल में नौकरी छोड़ना नहीं चाहते, बल्कि वो 'Rat Race' से बाहर आना चाहते हैं। Rat Race से बाहर निकलने का मतलब है ऐसे Assets बनाना जो आपके मासिक खर्चों से ज़्यादा पैसा कमाकर दें। जिस दिन आपकी पैसिव इनकम आपकी सैलरी से ज़्यादा हो जाती है, उस दिन आप फाइनेंशियल फ्रीडम के पहले कदम पर होते हैं।
भारत में, जहाँ लोग सरकारी नौकरी को ही सबसे बड़ा धन मानते हैं, वहाँ इस माइंडसेट की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। हमें अपने बच्चों को सिर्फ 'A+' या 'First Class' लाने के लिए नहीं कहना चाहिए, बल्कि उन्हें यह सिखाना चाहिए कि पैसा कैसे काम करता है। उन्हें बिज़नेस, टैक्स, और इन्वेस्टमेंट के बारे में सिखाना चाहिए।
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मेरे पुअर डैड ने मुझे अच्छी शिक्षा दी, पर मेरे रिच डैड ने मुझे सच्ची फाइनेंशियल एजुकेशन दी। पुअर डैड का प्यार मुझे सुरक्षा देता था, पर रिच डैड का मार्गदर्शन मुझे आज़ादी की राह दिखाता था। अगर आप भी हमेशा सैलरी-टू-सैलरी जी रहे हैं, तो रुकिए! अब समय आ गया है कि आप अपनी सोच बदलें, अपनी कलम उठाएँ, और अपनी Balance Sheet लिखना शुरू करें। देखिए कि आप कितने Assets बना रहे हैं, और कितनी Liabilities! यह सिर्फ एक किताब नहीं है, यह एक क्रांति है जो आपको गरीबी की मानसिकता से बाहर निकाल सकती है।
अब फैसला आपका है। क्या आप ज़िंदगी भर पैसों के लिए काम करेंगे, या पैसों को अपने लिए काम करना सिखाएँगे? Rich Dad Poor Dad की 5 सबसे बड़ी सीख यही है कि अपनी आर्थिक दुनिया को खुद नियंत्रित करें!
अगर यह आर्टिकल आपकी सोच को ज़रा सा भी हिला पाया है, तो रुकना मत! 🛑 आज ही एक नया Asset बनाने की योजना बनाओ—चाहे वो छोटी सी इन्वेस्टमेंट हो, कोई नया Skill सीखना हो, या एक साइड बिज़नेस शुरू करना हो। इस माइंडसेट को अपनाओ, और अपनी फाइनेंशियल फ्रीडम की कहानी लिखना शुरू करो। इस क्रांति को अकेला मत रखो! 🤝 इस आर्टिकल को हर उस दोस्त और परिवार के सदस्य के साथ शेयर करो जो अभी भी 'Rat Race' में फँसा हुआ है! उन्हें भी अमीर बनने का यह सीक्रेट पता चलना चाहिए। 👇
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