Rupert Murdoch (Hindi)


कभी सोचा है कि जब आपकी उम्र महज़ 22 साल हो, और आपके हाथ में विरासत के तौर पर बस एक छोटा सा लोकल न्यूज़पेपर हो, तो आप क्या करेंगे? ज़्यादातर लोग शायद उसे संभाल कर रखेंगे, बस दाल-रोटी चलाने लायक काम करेंगे। पर कुछ लोग होते हैं, जो कागज़ के उस बंडल में पूरी दुनिया की हुकूमत देख लेते हैं। यही कहानी है मीडिया किंग रूपर्ट मर्डोक की। यह कहानी सिर्फ़ अख़बारों और टीवी चैनलों के मालिक बनने की नहीं है; यह कहानी है डर को ताक़त बनाने की, रिस्क को निवेश समझने की, और बाज़ार के नियम ख़ुद बनाने की।

क्या आपने कभी अपने किसी बिज़नेस आईडिया के बारे में सोचा है और फिर डर के मारे पीछे हट गए हैं? 🤔 क्या आपको लगता है कि बड़े सपने सिर्फ़ उन लोगों के लिए हैं जिनके पास पहले से ही बहुत कुछ है? अगर हाँ, तो रूपर्ट मर्डोक की ये कहानी आपकी सोच को हमेशा के लिए बदल देगी। उनके पिता, सर कीथ मर्डोक, ऑस्ट्रेलिया के जाने-माने पत्रकार थे, लेकिन जब वह गुज़रे, तो रूपर्ट को जो मिला वह एक कर्ज़ में डूबा हुआ छोटा, गुमनाम एडिलेड का अख़बार था—द न्यूज़। एक कमज़ोर विरासत, मगर रूपर्ट के पास एक चीज़ थी जो सोने से ज़्यादा कीमती थी: बेख़ौफ़ नज़रिया। उन्होंने उस छोटे से अख़बार को हाथ में लिया और कहा, “इससे मैं दुनिया का सबसे बड़ा ख़बरों का साम्राज्य खड़ा करूँगा।” लोग हँसे होंगे। लेकिन रूपर्ट को भीड़ की हँसी से नहीं, बल्कि बाज़ार की ख़ामोशी से डर लगता था।

मर्डोक की कामयाबी को एक वाक्य में समेटा जाए तो वह है: लहरों पर तैरना नहीं, बल्कि ख़ुद की तूफ़ानी लहरें पैदा करना। उनका पहला बड़ा मूव था "सेंसेशनलिज्म"—ख़बरों को ऐसा चटपटा, आकर्षक, और कभी-कभी विवादास्पद बना देना कि लोग उसे पढ़े बिना रह न सकें। वह जानते थे कि साधारण, बोरिंग ख़बरें कोई नहीं ख़रीदेगा। उन्होंने अपने छोटे से अख़बार को गरम ख़बरों, खेल और एंटरटेनमेंट का ऐसा कॉकटेल बना दिया कि उसकी सर्कुलेशन तेज़ी से बढ़ने लगी। यह उनका पहला सबक था: अगर बाज़ार में आपका प्रोडक्ट ध्यान खींचने वाला नहीं है, तो आपकी क़ीमत ज़ीरो है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के एक शहर से दूसरे शहर तक अख़बारों की चेन बनानी शुरू कर दी। उन्होंने हमेशा ऐसी कंपनी को ख़रीदा जो डूब रही हो, या कमज़ोर हो, क्योंकि वह जानते थे कि कमज़ोरी सिर्फ़ एक अवसर होती है, जिसे ताक़त में बदला जा सकता है। यह दिखाता है कि निवेश का सबसे बड़ा नियम डर में अवसर ढूँढना है।

फिर आया वो पल जब उन्होंने ब्रिटेन की सबसे ख़राब ख़बरें देने वाले अख़बार 'द न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड' को ख़रीदा। यह एक बड़ा जुआ था। लंदन का एस्टैब्लिशमेंट उन्हें पसंद नहीं करता था, उन्हें एक बाहरी, आक्रामक ऑस्ट्रेलियाई मानता था। पर मर्डोक को एस्टैब्लिशमेंट की परवाह नहीं थी। उन्होंने अख़बार को बदल डाला—और यहाँ से शुरू हुई उनकी "टैब्लॉइड क्रांति"। उन्होंने 'द सन' को ख़रीदा और उसे टैब्लॉइड का मास्टरपीस बना दिया। उन्होंने जानबूझकर ऐसी हेडलाइन्स, ऐसी कहानियाँ छापीं जो हर किसी की ज़ुबान पर हों, भले ही उनकी आलोचना हो। मर्डोक ने समझ लिया था कि आलोचना भी एक तरह की पब्लिसिटी है। अगर लोग आपके बारे में बात कर रहे हैं, चाहे बुरा ही क्यों न, आप बाज़ार में ज़िंदा हैं। उनका बिज़नेस मंत्र था: "पहले बिको, फिर बहस करो।"

उनका सबसे विवादास्पद लेकिन शानदार क़दम था टेक्नोलॉजी को अपनाना। 1980 के दशक में, जब ट्रेड यूनियंस (Trade Unions) की ताक़त चरम पर थी और प्रिंटिंग की क़ीमतें आसमान छू रही थीं, मर्डोक ने लंदन के पास वॉप्पिंग (Wapping) में एक सीक्रेट प्रिंटिंग प्लांट बनाया। इस प्लांट में पुरानी तकनीक नहीं, बल्कि नई कंप्यूटर और ऑटोमेशन तकनीक इस्तेमाल होनी थी। यह एक ख़तरनाक फ़ैसला था। ट्रेड यूनियंस ने हड़ताल कर दी, विरोध हुआ, पुलिस और पत्रकारों के बीच भयानक टकराव हुए। मर्डोक को लगा कि वह हार जाएँगे, पर वह डिगे नहीं। उन्होंने अपनी पूरी टीम को रात के अँधेरे में वॉप्पिंग में शिफ्ट किया और रातोंरात लंदन के अख़बारों का भविष्य बदल दिया। उन्होंने हज़ारों लोगों को नौकरी से निकाला, लेकिन साथ ही पूरी इंडस्ट्री को आधुनिक बना दिया। इस घटना से यह साफ़ होता है कि असली लीडर वह है जो आरामदायक स्थिति में नहीं, बल्कि बदलाव के तूफ़ान के बीच में भी अपने विज़न पर डटा रहे।

अमेरिका में मर्डोक का आगमन (Entry into America) किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था। वहाँ उन्होंने 20th Century Fox और फिर फॉक्स न्यूज़ (Fox News) को लॉन्च किया। 📺 उस समय, केबल न्यूज़ मार्केट में पहले से ही बड़े खिलाड़ी थे, लेकिन मर्डोक ने फिर वही किया जो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में किया था: एक ऐसी ऑडियंस को निशाना बनाया जिसे बाकी सब अनदेखा कर रहे थे। उन्होंने फॉक्स न्यूज़ को एक ऐसा चैनल बनाया जो एक विशेष राजनीतिक नज़रिया रखता था, जिससे एक बड़ा दर्शक वर्ग उनसे जुड़ा। यह बिज़नेस का एक कट्टर नियम दिखाता है: अगर आप सबको ख़ुश करने की कोशिश करेंगे, तो आप किसी के नहीं बन पाएँगे। अपने लिए एक विशिष्ट, वफ़ादार दर्शक ढूँढना ही उनकी मीडिया किंग Rupert Murdoch की बिज़नेस स्ट्रेटेजी का मूल था। News Corp. का मालिक कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा मीडिया मुग़ल? यह सिर्फ़ ख़रीदने से नहीं हुआ, बल्कि हर बार बाज़ार को यह बताने से हुआ कि वह कुछ नया, कुछ अलग देने वाले हैं।

अगर हम उनकी उम्र को देखें, तो यह बात और भी प्रेरणादायक लगती है। 90 साल की उम्र में भी काम करने की प्रेरणा कहाँ से आती है? आज भी, जब उनके बेटे उनके विशाल साम्राज्य को संभाल रहे हैं, रूपर्ट मर्डोक की नज़रों में वही आग है। यह आग है "अगला बड़ा दांव" लगाने की। उनके लिए बिज़नेस एक अंतहीन खेल है। जहाँ बाक़ी बिज़नेस टायकून रिटायर होकर गोल्फ़ खेलते हैं, मर्डोक सुबह उठकर सोचते हैं कि अगला कौन सा बड़ा अख़बार या टेक्नोलॉजी कंपनी है जिसे वह ख़रीद सकते हैं। यह दर्शाता है कि सफलता कोई मंज़िल नहीं, बल्कि एक नॉन-स्टॉप सफ़र है। उनकी यह सोच हर उस व्यक्ति को प्रेरणा देती है जो सोचता है कि उम्र या संसाधन उन्हें रोक सकते हैं। Rupert Murdoch की जीवनी से सीखें बड़े सपने देखना—या तो आप दुनिया को देखते हैं कि वह क्या है, या फिर आप देखते हैं कि उसे आपकी मर्ज़ी से क्या होना चाहिए।

मर्डोक की कहानी सिर्फ़ बिज़नेस की नहीं, बल्कि ताक़त और नैतिकता की बहस पर भी सवाल उठाती है। उनके अख़बारों और चैनलों पर अक्सर पक्षपात, अतिरंजित ख़बरों और गोपनीयता भंग करने के आरोप लगे। उन्होंने अपने विरोधियों को ख़त्म किया और अपने फ़ायदे के लिए राजनीति को प्रभावित किया। उनकी इस आक्रामक कार्यशैली ने उन्हें कई दुश्मन दिए, कई बार उन्हें क़ानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन रूपर्ट मर्डोक हर बार इन तूफ़ानों से निकल आए क्योंकि उनका इरादा मज़बूत था: नियंत्रण कभी नहीं छोड़ना। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जब आप बहुत बड़े बन जाते हैं, तो आपकी सफलता सिर्फ़ आपके बैंक बैलेंस में नहीं होती, बल्कि आपकी ताक़त लोगों के जीवन और देश की राजनीति को कैसे प्रभावित करती है, इसमें होती है। यह उस नैतिक भार को भी दर्शाता है जो एक मीडिया मुग़ल अपने कंधों पर लेकर चलता है।

तो, Rupert Murdoch की सफलता का राज़ क्या है? यह तीन बातें हैं: पहला, पैसा कमाना नहीं, बल्कि ताक़त हासिल करना उनका लक्ष्य था। पैसा ताक़त का साइड-इफ़ेक्ट था। दूसरा, वह हमेशा रिस्क लेने को तैयार रहते थे। छोटे से अख़बार से लेकर सैटेलाइट टीवी तक, उन्होंने हमेशा वहाँ निवेश किया जहाँ दूसरे डरते थे। और तीसरा, वह कभी भी पिछली जीत पर नहीं रुके। हर जीत उनके लिए अगले बड़े युद्ध की तैयारी थी।

एक लोकल अख़बार से शुरू हुआ सफ़र आज एक वैश्विक मीडिया साम्राज्य बन चुका है—जहाँ द वॉल स्ट्रीट जर्नल और द टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित नाम भी उनके पोर्टफोलियो में हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि आप कहाँ से शुरू करते हैं, यह मायने नहीं रखता; मायने यह रखता है कि आप कहाँ ख़त्म करने का फ़ैसला करते हैं।

अगर आप आज अपनी ज़िंदगी में कोई बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं, तो मर्डोक की कहानी से प्रेरणा लें। डर को छोड़िए। उस छोटे से अख़बार 'द न्यूज़' की तरह, आपकी शुरुआत चाहे कितनी भी छोटी क्यों न हो, उसमें दुनिया को बदलने की क्षमता है। बस आपको बेख़ौफ़ नज़रिया रखना होगा और बाज़ार को अपनी शर्तों पर खेलने के लिए मजबूर करना होगा।

आप रूपर्ट मर्डोक की किस बिज़नेस स्ट्रेटेजी को अपनी ज़िंदगी में अपनाना चाहेंगे? क्या आप भी अपनी 'द न्यूज़' (छोटी शुरुआत) को एक बड़ा एम्पायर बनाने का सपना देखते हैं? हमें कमेंट में बताइए और अगर आपको यह कहानी ज़बरदस्त लगी हो, तो इस आर्टिकल को कम से कम 5 ऐसे दोस्तों के साथ शेयर करें जिन्हें बड़े सपने देखने की हिम्मत चाहिए! 👇



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