आज हम बात करेंगे एक ऐसी किताब की जो आपकी लाइफ बदल सकती है - 'एटॉमिक हैबिट्स' बाय जेम्स क्लियर। ये बुक हमें सिखाती है कि कैसे छोटे-छोटे बदलाव करके हम अपनी लाइफ में बड़े रिजल्ट्स ला सकते हैं। अगर आप अपनी बुरी आदतों से परेशान हैं और अच्छी आदतें बनाना चाहते हैं, तो ये समरी आपके लिए है। इस समरी में हम 'एटॉमिक हैबिट्स' के 10 सबसे इम्पोर्टेन्ट लेसन्स को समझेंगे और उन्हें अपनी डेली लाइफ में अप्लाई करना सीखेंगे। तो चलिए, शुरू करते हैं!
लेसन 1 : द एग्रीगेशन ऑफ़ मार्जिनल गेन्स
'एटॉमिक हैबिट्स' का ये पहला लेसन बहुत ही पावरफुल है। जेम्स क्लियर कहते हैं कि बड़े बदलाव एक दिन में नहीं होते, बल्कि छोटे-छोटे इम्प्रूवमेंट्स को मिलाकर होते हैं। जैसे एक एटम बहुत छोटा होता है, पर जब करोड़ों एटम्स मिलते हैं तो एक बड़ी चीज़ बनती है, वैसे ही छोटी-छोटी अच्छी आदतें मिलकर हमारी लाइफ में बड़ा इम्पेक्ट डालती हैं। वो इसे "1% बेटर एवरी डे" का फार्मूला कहते हैं। यानी अगर आप हर दिन सिर्फ 1% इम्प्रूव करते हैं, तो एक साल में आप 37 गुना बेहतर हो जाएंगे! सुनने में ये बहुत छोटा लगता है, पर इसका कम्पाउंडिंग इफ़ेक्ट बहुत बड़ा होता है। एक रियल लाइफ एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ सिर्फ 15 मिनट एक्सरसाइज करते हैं। ये सुनने में बहुत कम लगता है, पर अगर आप इसे रोज़ करते हैं, तो एक साल में आप 90 घंटे एक्सरसाइज कर चुके होंगे! ये बहुत बड़ा इम्प्रूवमेंट है आपकी हेल्थ के लिए। इसी तरह, अगर आप रोज़ सिर्फ 10 मिनट पढ़ते हैं, तो एक साल में आप कई किताबें पढ़ चुके होंगे। ये आपके नॉलेज के लिए बहुत बड़ा गेन होगा। अक्सर हम बड़े और इमीडिएट रिजल्ट्स चाहते हैं, और इसीलिए छोटे-छोटे एफर्ट्स को इग्नोर कर देते हैं। पर 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि असली पावर छोटे-छोटे, कंसिस्टेंट एफर्ट्स में ही है। ये लेसन हमें ये भी सिखाता है कि हमें रिजल्ट्स पर नहीं, बल्कि सिस्टम पर फोकस करना चाहिए। यानी हमें ऐसी हैबिट्स बनानी चाहिए जो हमें ऑटोमेटिकली रिजल्ट्स की तरफ ले जाएं। जैसे अगर आप रोज़ 15 मिनट एक्सरसाइज करने की हैबिट बना लेते हैं, तो आपको रिजल्ट्स के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है, वो अपने आप आ जाएंगे। इसलिए, पहला लेसन यही है कि छोटे-छोटे इम्प्रूवमेंट्स को अंडरएस्टीमेट न करें। हर दिन 1% बेहतर बनने की कोशिश करें, और आप देखेंगे कि टाइम के साथ कितना बड़ा डिफरेंस आता है। छोटी शुरुआतें ही बड़ी उपलब्धियों की नींव रखती हैं। कछुए की चाल से ही सही, पर लगातार चलते रहना ही मंज़िल तक पहुंचाता है।
लेसन 2 : फॉरगेट अबाउट गोल्स, फोकस ऑन सिस्टम्स
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अक्सर हम गोल्स पर बहुत ज़्यादा फोकस करते हैं, और इसीलिए निराश हो जाते हैं जब हमें इमीडिएट रिजल्ट्स नहीं मिलते। वो कहते हैं कि गोल्स इंपॉर्टेंट हैं, पर उससे ज़्यादा इंपॉर्टेंट हैं सिस्टम्स। सिस्टम्स का मतलब है वो प्रोसेस जो आपको आपके गोल्स तक ले जाते हैं। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपका गोल है वज़न कम करना। ये आपका गोल है, पर इसे अचीव करने के लिए आपको एक सिस्टम बनाना होगा, जैसे कि रोज़ एक्सरसाइज करना, हेल्दी खाना खाना, और जंक फ़ूड अवॉइड करना। अगर आप सिर्फ गोल पर फोकस करेंगे और कोई सिस्टम नहीं बनाएंगे, तो आपके वज़न कम करने के चांसेस बहुत कम हैं। वहीं, अगर आप एक अच्छा सिस्टम बना लेते हैं, तो आपको गोल के बारे में ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है, वो अपने आप अचीव हो जाएगा। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें रिजल्ट्स पर नहीं, बल्कि प्रोसेस पर फोकस करना चाहिए। हमें ऐसी हैबिट्स बनानी चाहिए जो हमें ऑटोमेटिकली हमारे गोल्स की तरफ ले जाएं। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आपका गोल है एक बुक लिखना। अगर आप सिर्फ ये सोचते रहेंगे कि "मुझे एक बुक लिखनी है," तो आप कभी नहीं लिख पाएंगे। पर अगर आप एक सिस्टम बनाते हैं, जैसे कि रोज़ एक घंटा लिखना, तो आप धीरे-धीरे अपनी बुक पूरी कर लेंगे। इसलिए, दूसरा लेसन यही है कि गोल्स को भूल जाओ, सिस्टम्स पर फोकस करो। अपने गोल्स को अचीव करने के लिए एक अच्छा सिस्टम बनाओ और उस पर कंसिस्टेंटली काम करो। गोल्स सिर्फ डेस्टिनेशन हैं, जबकि सिस्टम वो रास्ता है जो आपको वहाँ तक ले जाता है। सिर्फ मंज़िल का सपना देखने से कुछ नहीं होता, उस तक पहुँचने के लिए सही रास्ते पर चलना भी ज़रूरी है। प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करें, परिणाम अपने आप मिलेंगे।
लेसन 3 : बिल्ड आइडेंटिटी-बेस्ड हैबिट्स
इस लेसन में जेम्स क्लियर एक बहुत ही इम्पोर्टेन्ट कॉन्सेप्ट इंट्रोड्यूस करते हैं - आइडेंटिटी। वो कहते हैं कि हमें अपनी हैबिट्स को अपनी आइडेंटिटी से जोड़ना चाहिए। यानी हमें ये सोचना चाहिए कि हम किस तरह के इंसान बनना चाहते हैं, और फिर उस तरह की हैबिट्स डेवलप करनी चाहिए। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक रनर बनना चाहते हैं। अगर आप सिर्फ ये सोचते हैं कि "मुझे एक रेस जीतनी है," तो आपके रनिंग करने के चांसेस कम हैं। पर अगर आप ये सोचते हैं कि "मैं एक रनर हूँ," तो आप ऑटोमेटिकली रनिंग करने के लिए मोटिवेटेड रहेंगे। क्योंकि रनिंग आपकी आइडेंटिटी का पार्ट बन जाएगा। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें एक्शन पर नहीं, बल्कि आइडेंटिटी पर फोकस करना चाहिए। हमें ये सोचना चाहिए कि हम किस तरह के इंसान बनना चाहते हैं, और फिर उस तरह की हैबिट्स कल्टीवेट करनी चाहिए। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक राइटर बनना चाहते हैं। अगर आप सिर्फ ये सोचते हैं कि "मुझे एक बुक लिखनी है," तो आप शायद कभी नहीं लिख पाएंगे। पर अगर आप ये सोचते हैं कि "मैं एक राइटर हूँ," तो आप रोज़ लिखने के लिए मोटिवेटेड रहेंगे। क्योंकि राइटिंग आपकी आइडेंटिटी का पार्ट बन जाएगा। इसलिए, तीसरा लेसन यही है कि आइडेंटिटी-बेस्ड हैबिट्स बनाओ। ये सोचो कि आप किस तरह के इंसान बनना चाहते हो, और फिर उस तरह की हैबिट्स डेवलप करो। अपनी पहचान को अपनी आदतों से जोड़ना ही असली बदलाव है। सिर्फ काम करने से कुछ नहीं होता, ये महसूस करना ज़रूरी है कि आप वो काम करने वाले इंसान हैं। अपनी पहचान को बदलकर ही आप अपनी आदतों को बदल सकते हैं। जैसे एक एक्टर अपने किरदार में ढल जाता है, वैसे ही हमें भी अपनी मनचाही पहचान में ढलना होगा।
लेसन 4 : मेक इट ऑब्वियस
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अच्छी आदतें बनाने के लिए हमें उन्हें ऑब्वियस बनाना चाहिए, यानी उन्हें साफ़ तौर पर दिखाना चाहिए। जब कोई चीज़ हमारे सामने होती है, तो उसे करने के चांसेस बढ़ जाते हैं। वो इसे "हैबिट क्यूज़" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी ऐसी चीज़ें जो हमें किसी हैबिट को करने के लिए ट्रिगर करती हैं। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ सुबह एक्सरसाइज करना चाहते हैं। अगर आप अपने एक्सरसाइज क्लोथ्स को रात को ही बेड के पास रख देते हैं, तो सुबह उठकर एक्सरसाइज करने के चांसेस बढ़ जाते हैं। क्योंकि वो क्लोथ्स एक हैबिट क्यू का काम करते हैं। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें अपने एनवायरनमेंट को इस तरह से डिज़ाइन करना चाहिए कि अच्छी आदतें ऑटोमेटिकली ट्रिगर हों। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप ज़्यादा पानी पीना चाहते हैं। अगर आप अपनी वर्क डेस्क पर एक पानी की बोतल रखते हैं, तो आप ज़्यादा पानी पिएंगे। क्योंकि बोतल एक हैबिट क्यू का काम करेगी। इसी तरह, बुरी आदतों को अवॉइड करने के लिए हमें उन्हें इनविज़िबल बनाना चाहिए। यानी उनके हैबिट क्यूज़ को हटा देना चाहिए। मान लीजिए, आप ज़्यादा टीवी देखते हैं। अगर आप अपने लिविंग रूम से टीवी रिमोट हटा देते हैं, तो टीवी देखने के चांसेस कम हो जाएंगे। इसलिए, चौथा लेसन यही है कि अच्छी आदतों को ऑब्वियस बनाओ और बुरी आदतों को इनविज़िबल। अपने एनवायरनमेंट को इस तरह से डिज़ाइन करो कि अच्छी आदतें आसानी से ट्रिगर हों और बुरी आदतें मुश्किल से। जो चीज़ आँखों के सामने होती है उसे करना आसान होता है, और जो नज़र से दूर होती है उसे करना मुश्किल। अपने आस-पास के माहौल को बदलकर आप अपनी आदतों को बदल सकते हैं। जैसे एक साफ़ सुथरी डेस्क पर काम करने का मन करता है, वैसे ही एक अच्छे एनवायरनमेंट में अच्छी आदतें पनपती हैं।
लेसन 5 : मेक इट अट्रैक्टिव
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अच्छी आदतों को ज़्यादा अट्रैक्टिव बनाने से उन्हें स्टिक करना आसान हो जाता है। जब कोई चीज़ हमें अच्छी लगती है, तो उसे करने का मन करता है। वो इसे "टेम्प्टेशन बंडलिंग" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी अपनी मनपसंद चीज़ों को उन हैबिट्स के साथ जोड़ना जिन्हें आप डेवलप करना चाहते हैं। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ जिम जाना चाहते हैं, पर आपको जिम जाना बोरिंग लगता है। अगर आप जिम जाने के बाद अपना फेवरेट पॉडकास्ट सुनने का नियम बना लेते हैं, तो जिम जाना ज़्यादा अट्रैक्टिव हो जाएगा। क्योंकि आप पॉडकास्ट सुनने के लिए जिम जाने के लिए मोटिवेटेड रहेंगे। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करना चाहिए कि वो हमें रिवार्डिंग लगें। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ बुक पढ़ना चाहते हैं। अगर आप बुक पढ़ने के लिए एक शांत और आरामदायक जगह चुनते हैं, जहाँ आपको कोई डिस्टर्ब न करे, तो बुक पढ़ना ज़्यादा अट्रैक्टिव हो जाएगा। इसी तरह, बुरी आदतों को कम अट्रैक्टिव बनाने के लिए हमें उन्हें अनप्लेजेंट बनाना चाहिए। यानी उनके साथ कुछ नेगेटिव एसोसिएट करना चाहिए। मान लीजिए, आप ज़्यादा सोशल मीडिया यूज़ करते हैं। अगर आप हर बार सोशल मीडिया यूज़ करने के बाद कुछ पुश-अप्स करने का नियम बना लेते हैं, तो सोशल मीडिया यूज़ करना कम अट्रैक्टिव हो जाएगा। इसलिए, पाँचवा लेसन यही है कि अच्छी आदतों को अट्रैक्टिव बनाओ और बुरी आदतों को अनप्लेजेंट। अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करो कि आप उन्हें करने के लिए मोटिवेटेड रहें और बुरी आदतों से दूर रहें। जो चीज़ हमें पसंद आती है उसे करना आसान होता है, और जो हमें नापसंद होती है उसे करना मुश्किल। अपनी आदतों को रिवार्डिंग बनाकर आप उन्हें अपनी लाइफ का एक नेचुरल पार्ट बना सकते हैं। जैसे मीठा खाने के बाद अच्छा लगता है, वैसे ही अच्छी आदतों को भी रिवार्डिंग बनाना चाहिए ताकि उन्हें करने का मन करे।
लेसन 6: मेक इट ईज़ी
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अच्छी आदतें बनाने के लिए हमें उन्हें जितना हो सके उतना आसान बनाना चाहिए। जब कोई चीज़ आसान होती है, तो उसे करने के चांसेस बढ़ जाते हैं। वो इसे "टू-मिनट रूल" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी किसी भी नई हैबिट को शुरू करने के लिए सिर्फ दो मिनट का टाइम सेट करो। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ बुक पढ़ना चाहते हैं। अगर आप ये सोचते हैं कि "मैं रोज़ एक घंटा पढ़ूँगा," तो ये बहुत मुश्किल लग सकता है। पर अगर आप ये नियम बनाते हैं कि "मैं रोज़ सिर्फ दो मिनट पढ़ूँगा," तो ये बहुत आसान लगेगा और आप आसानी से शुरू कर पाएंगे। एक बार जब आप दो मिनट पढ़ लेते हैं, तो आप ज़्यादा देर तक भी पढ़ सकते हैं। पर मेन पॉइंट है शुरुआत करना, और दो मिनट रूल इसे आसान बनाता है। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करना चाहिए कि उनके लिए फ्रिक्शन कम से कम हो। यानी उन्हें करने में कम से कम एफर्ट लगे। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ मेडिटेशन करना चाहते हैं। अगर आप एक शांत जगह और एक स्पेसिफिक टाइम सेट करते हैं, तो मेडिटेशन करना ज़्यादा आसान हो जाएगा। इसी तरह, बुरी आदतों को अवॉइड करने के लिए हमें उन्हें मुश्किल बनाना चाहिए। यानी उनके लिए फ्रिक्शन बढ़ाना चाहिए। मान लीजिए, आप ज़्यादा फ़ास्ट फ़ूड खाते हैं। अगर आप घर में फ़ास्ट फ़ूड रखना बंद कर देते हैं, तो फ़ास्ट फ़ूड खाने के चांसेस कम हो जाएंगे। इसलिए, छठा लेसन यही है कि अच्छी आदतों को आसान बनाओ और बुरी आदतों को मुश्किल। अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करो कि अच्छी आदतें आसानी से हो जाएं और बुरी आदतें मुश्किल से। जो चीज़ आसान होती है उसे करना आसान होता है, और जो मुश्किल होती है उसे करना मुश्किल। अपनी आदतों के लिए फ्रिक्शन को कम करके आप उन्हें अपनी लाइफ का एक नेचुरल पार्ट बना सकते हैं। जैसे ढलान पर गाड़ी चलाना आसान होता है, वैसे ही आसान हैबिट्स को अपनी लाइफ में इम्प्लीमेंट करना आसान होता है। शुरुआत छोटी हो पर निरंतर हो, यही सफलता का मंत्र है।
लेसन 7 : मेक इट सेटिस्फाइंग
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अच्छी आदतों को स्टिक करने के लिए उन्हें रिवार्डिंग बनाना बहुत ज़रूरी है। जब हम कोई काम करते हैं और उसके बाद हमें अच्छा लगता है, तो उसे दोबारा करने का मन करता है। वो इसे "रिनफोर्समेंट" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी अपनी अच्छी आदतों को रिवार्ड्स से रिनफोर्स करना। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ एक्सरसाइज करते हैं। अगर आप एक्सरसाइज करने के बाद खुद को एक हेल्दी स्मूदी से रिवार्ड करते हैं, तो एक्सरसाइज करना ज़्यादा सेटिस्फाइंग हो जाएगा और आप इसे ज़्यादा टाइम तक करते रहेंगे। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करना चाहिए कि वो हमें इमीडिएट सेटिस्फेक्शन दें। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ कुछ नया सीखते हैं। अगर आप हर दिन कुछ नया सीखने के बाद अपने प्रोग्रेस को ट्रैक करते हैं और उसे सेलिब्रेट करते हैं, तो सीखना ज़्यादा सेटिस्फाइंग हो जाएगा। इसी तरह, बुरी आदतों को अवॉइड करने के लिए हमें उन्हें अनसेटिस्फाइंग बनाना चाहिए। यानी उनके साथ कुछ नेगेटिव कॉन्सीक्वेंसेस एसोसिएट करना चाहिए। मान लीजिए, आप ज़्यादा स्मोक करते हैं। अगर आप हर सिगरेट पीने के बाद कुछ एक्स्ट्रा काम करने का नियम बना लेते हैं, तो स्मोकिंग कम सेटिस्फाइंग हो जाएगा। इसलिए, सातवाँ लेसन यही है कि अच्छी आदतों को सेटिस्फाइंग बनाओ और बुरी आदतों को अनसेटिस्फाइंग। अपनी हैबिट्स को इस तरह से डिज़ाइन करो कि आप उन्हें करने के बाद अच्छा महसूस करें और बुरी आदतों से दूर रहें। जो चीज़ हमें संतोष देती है उसे करना आसान होता है, और जो हमें अनप्लेजेंट लगती है उसे करना मुश्किल। अपनी आदतों को रिवार्डिंग बनाकर आप उन्हें अपनी लाइफ का एक नेचुरल पार्ट बना सकते हैं। जैसे किसी काम को पूरा करने पर ख़ुशी मिलती है, वैसे ही अच्छी आदतों को भी रिवार्डिंग बनाना चाहिए ताकि उन्हें करने का मन करे। तुरंत मिलने वाला रिवॉर्ड हैबिट को बनाए रखने में बहुत मदद करता है। जैसे बच्चों को अच्छे काम के लिए टॉफ़ी मिलती है, वैसे ही खुद को भी छोटे-छोटे रिवॉर्ड्स देना चाहिए।
लेसन 8 : यूज़ हैबिट ट्रैकिंग
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि अपनी आदतों को ट्रैक करना बहुत ज़रूरी है। जब हम अपनी प्रोग्रेस को देखते हैं, तो हम मोटिवेटेड रहते हैं और हैबिट को स्टिक करने के चांसेस बढ़ जाते हैं। वो इसे "विज़ुअल मेजरमेंट" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी अपनी प्रोग्रेस को विज़ुअली ट्रैक करना। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ पानी पीने की हैबिट डेवलप करना चाहते हैं। अगर आप एक चार्ट बनाते हैं और हर बार पानी पीने के बाद उस पर टिक करते हैं, तो आपको अपनी प्रोग्रेस साफ़ तौर पर दिखेगी और आप मोटिवेटेड रहेंगे। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें अपनी हैबिट्स को इस तरह से ट्रैक करना चाहिए कि हमें अपनी प्रोग्रेस साफ़ तौर पर दिखे। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ कुछ नया सीखने की हैबिट डेवलप करना चाहते हैं। अगर आप एक जर्नल में हर दिन जो सीखा उसे लिखते हैं, तो आपको अपनी लर्निंग जर्नी का रिकॉर्ड रहेगा और आप मोटिवेटेड रहेंगे। हैबिट ट्रैकिंग हमें अकाउंटेबल भी बनाती है। जब हम अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक करते हैं, तो हम खुद के प्रति ज़्यादा जवाबदेह होते हैं और हैबिट को ब्रेक करने के चांसेस कम हो जाते हैं। इसलिए, आठवाँ लेसन यही है कि हैबिट ट्रैकिंग का उपयोग करें। अपनी प्रोग्रेस को ट्रैक करें और उसे विज़ुअली देखें। ये आपको मोटिवेटेड रखेगा और हैबिट को स्टिक करने में हेल्प करेगा। जो चीज़ मापी जा सकती है उसे इम्प्रूव किया जा सकता है। अपनी प्रोग्रेस को देखकर ख़ुशी मिलती है और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। जैसे एक एथलीट अपनी परफॉरमेंस को ट्रैक करता है, वैसे ही हमें भी अपनी आदतों को ट्रैक करना चाहिए। हैबिट ट्रैकिंग एक पावरफुल टूल है जो हमें अपनी आदतों को कंट्रोल करने में मदद करता है। डिजिटल ऐप्स और स्प्रेडशीट्स के अलावा, आप साधारण पेपर और पेन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मुख्य बात है अपनी प्रोग्रेस को विज़ुअलाइज करना।
लेसन 9 : नेवर मिस ट्वाइस
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि हैबिट्स बनाते वक़्त कभी-कभी हम चूक जाते हैं, ये नॉर्मल है। पर इम्पोर्टेन्ट ये है कि हम दो बार लगातार न चूकें। अगर एक दिन हमारी हैबिट छूट जाती है, तो हमें अगले दिन उसे ज़रूर करना चाहिए। वो इसे "ब्रेकिंग द चेन" का कॉन्सेप्ट कहते हैं। यानी अपनी हैबिट की चेन को टूटने न देना। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ सुबह एक्सरसाइज करते हैं। एक दिन आप किसी वजह से एक्सरसाइज नहीं कर पाते। ये ठीक है, पर अगले दिन आपको ज़रूर एक्सरसाइज करनी चाहिए। अगर आप अगले दिन भी एक्सरसाइज नहीं करते, तो आपकी हैबिट की चेन टूट जाएगी और उसे दोबारा शुरू करना मुश्किल हो जाएगा। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें परफेक्शन पर नहीं, बल्कि कंसिस्टेंसी पर फोकस करना चाहिए। कभी-कभी हमसे गलतियाँ हो जाती हैं, पर हमें उनसे सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ कुछ लिखने की हैबिट डेवलप कर रहे हैं। एक दिन आप बहुत बिज़ी हैं और नहीं लिख पाते। कोई बात नहीं, पर अगले दिन आपको ज़रूर लिखना चाहिए, भले ही सिर्फ एक पैराग्राफ ही क्यों न लिखें। इम्पोर्टेन्ट है चेन को बनाए रखना। इसलिए, नौवाँ लेसन यही है कि दो बार कभी न चूकें। अगर एक दिन आपकी हैबिट छूट जाती है, तो अगले दिन उसे ज़रूर करें। ये आपको अपनी हैबिट को बनाए रखने में बहुत हेल्प करेगा। इंसान गलतियों का पुतला है, पर उन गलतियों से सीखना और आगे बढ़ना ही असली इम्पोर्टेन्ट है। एक दिन चूक जाना कोई बड़ी बात नहीं, पर लगातार चूकना एक बुरी आदत बन सकता है। अपनी हैबिट की चेन को टूटने से बचाना ही सफलता का रहस्य है। जैसे एक धागे से रस्सी बनती है, वैसे ही हर दिन की कंसिस्टेंट एफर्ट से एक मज़बूत हैबिट बनती है। एक बार चेन टूटने पर उसे दोबारा जोड़ना मुश्किल होता है, इसलिए कोशिश करें कि चेन कभी न टूटे।
लेसन 10 : बी पेशेंट
इस लेसन में जेम्स क्लियर हमें बताते हैं कि हैबिट्स बनाने में टाइम लगता है, इसलिए हमें धैर्य रखना चाहिए। हम अक्सर इमीडिएट रिजल्ट्स चाहते हैं, और जब हमें वो नहीं मिलते तो हम निराश हो जाते हैं और हैबिट को छोड़ देते हैं। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें सिखाती है कि हमें लॉन्ग-टर्म परस्पेक्टिव रखना चाहिए और प्रोसेस पर ट्रस्ट करना चाहिए। एक एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप रोज़ जिम जाते हैं और आप चाहते हैं कि आपको एक महीने में ही रिजल्ट दिखने लगें। पर ऐसा शायद न हो। बॉडी को बदलने में टाइम लगता है। अगर आप एक महीने बाद निराश होकर जिम जाना छोड़ देते हैं, तो आपको कभी रिजल्ट नहीं मिलेंगे। वहीं, अगर आप पेशेंस रखते हैं और कंसिस्टेंटली जिम जाते रहते हैं, तो कुछ महीनों बाद आपको ज़रूर रिजल्ट दिखने लगेंगे। 'एटॉमिक हैबिट्स' हमें ये भी सिखाती है कि हमें प्लेटोज़ से घबराना नहीं चाहिए। प्लेटोज़ का मतलब है वो टाइम जब हमें लगता है कि हमारी प्रोग्रेस रुक गई है। ये हर हैबिट बिल्डिंग प्रोसेस का एक नॉर्मल पार्ट है। इस टाइम पर हमें पेशेंस रखना चाहिए और अपनी हैबिट को कंटिन्यू रखना चाहिए। एक और एग्जांपल लेते हैं। मान लीजिए, आप एक नई लैंग्वेज सीख रहे हैं। शुरुआत में आपको बहुत जल्दी प्रोग्रेस दिखेगी, पर एक टाइम के बाद लगेगा कि प्रोग्रेस रुक गई है। ये एक प्लेटो है। इस टाइम पर अगर आप पेशेंस रखते हैं और प्रैक्टिस करते रहते हैं, तो आप इस प्लेटो को पार कर लेंगे और फिर से प्रोग्रेस करने लगेंगे। इसलिए, दसवाँ लेसन यही है कि धैर्य रखें। हैबिट्स बनाने में टाइम लगता है, इसलिए हमें लॉन्ग-टर्म परस्पेक्टिव रखना चाहिए और प्रोसेस पर ट्रस्ट करना चाहिए। इमीडिएट रिजल्ट्स की उम्मीद न करें, बल्कि कंसिस्टेंट एफर्ट्स पर फोकस करें। समय के साथ आपको ज़रूर रिजल्ट मिलेंगे। जैसे एक पेड़ को बड़ा होने में टाइम लगता है, वैसे ही अच्छी आदतों को बनने में भी टाइम लगता है। रातों-रात कोई बदलाव नहीं होता, इसलिए धैर्य रखना बहुत ज़रूरी है। निरंतर प्रयास और अटूट विश्वास ही सफलता की नींव रखते हैं। जैसे एक किसान बीज बोने के बाद धैर्य से फसल का इंतज़ार करता है, वैसे ही हमें भी अपनी आदतों को बोने के बाद धैर्य से उनके फलने-फूलने का इंतज़ार करना चाहिए।
तो दोस्तों, ये थे 'एटॉमिक हैबिट्स' के 10 पावरफुल लेसन्स। हमने सीखा कि कैसे छोटे-छोटे बदलाव करके हम अपनी लाइफ में बड़े रिजल्ट्स ला सकते हैं। ये लेसन्स हमें अपनी बुरी आदतों को तोड़ने और अच्छी आदतों को बनाने में बहुत हेल्प कर सकते हैं। उम्मीद है कि आपको ये समरी पसंद आयी होगी और आपको कुछ नया सीखने को मिला होगा। अगर आपको ये समरी अच्छी लगी तो इसे लाइक और शेयर करें। मिलते हैं अगले समरी में, तब तक के लिए धन्यवाद!
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