आज बात ₹20,000 की सैलेरी वाले राकेश की नहीं है, न ही बात अनिल अंबानी की है। कहानी है उस आदमी की, जिसने अपनी जॉब छोड़कर, अपने टैलेंट को बिज़नेस समझा और आज हर दिन 12 घंटे काम करने के बाद भी, उसके पास न पैसे हैं, न सुकून। 😢 क्या आप भी उसी ज़हरीले कुएँ में फँस चुके हैं जहाँ काम ख़त्म ही नहीं होता? जहाँ आप अपने बिज़नेस के मालिक नहीं, बल्कि सबसे महँगे मज़दूर बन चुके हैं? 🤔 99% लोग इसी E-Myth का शिकार होते हैं और अपनी आज़ादी खो देते हैं। अगर आप नहीं चाहते कि आपका सपना ही आपका क़ैदख़ाना बन जाए, तो मेरी बात ध्यान से सुनना...
ये कहानी मेरी नहीं है, लेकिन ये मेरे एक दोस्त की है, जिसका नाम है विशाल। विशाल को चाय बनाने का बड़ा शौक था। उसकी चाय में एक जादू था, लोग दूर-दूर से पीने आते थे। एक दिन उसने फ़ैसला लिया कि अब वो किसी और के लिए नौकरी नहीं करेगा। वो अपना खुद का चाय का ठेला लगाएगा। ☕️ उसने अपनी सेविंग्स लगाईं, ठेला ख़रीदा, एक अच्छा सा नाम रखा और पहले ही दिन रिकॉर्ड तोड़ भीड़ लगा दी। विशाल ख़ुश था। उसे लगा कि यार, मैंने तो सोने की खान ढूँढ ली! अब आज़ादी है, अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। पर ये ख़ुशी सिर्फ़ पहले महीने तक ही रही।
दूसरे महीने से असली कहानी शुरू हुई। अब विशाल को सिर्फ़ चाय ही नहीं बनानी थी। अब उसे सुबह 5 बजे उठकर दूध लाना था, चीनी का हिसाब रखना था, सफ़ाई करनी थी, कस्टमर्स के शिकायत भी सुनने थे, ठेले के क़िस्त भी भरने थे और सबसे ज़रूरी, अकेले ही सब करना था। जब कस्टमर कम होते थे, तो वो अकाउंट्स का हिसाब करने बैठता था। जब भीड़ होती थी, तो वो किसी को हायर नहीं कर पाता था, क्योंकि उसे लगता था, "यार, जैसी चाय मैं बनाता हूँ, वैसी कोई और बना ही नहीं सकता।" 😥
ये जो सोच है न, यही Michael Gerber की किताब 'The E-Myth Revisited' का सबसे बड़ा सबक है। हम सब एक ख़तरनाक ग़लतफ़हमी के शिकार हैं। हमें लगता है कि अगर हम किसी टेक्निकल काम में माहिर हैं (जैसे, विशाल को चाय बनाने आती थी), तो हम उस काम का बिज़नेस भी चला सकते हैं। लेकिन बिज़नेस चलाना एक बिल्कुल अलग हुनर है! 🤯
आप एक पल के लिए सोचिए, आप अपनी नौकरी क्यों छोड़ते हैं? इसलिए न कि आप बॉस से परेशान हो चुके हैं, आप आज़ादी चाहते हैं, पैसा कमाना चाहते हैं। लेकिन होता क्या है? आप एक बॉस को छोड़ते हैं और ख़ुद अपने लिए सबसे क्रूर बॉस बन जाते हैं, जो 12-14 घंटे काम करवाता है और कभी छुट्टी नहीं देता। इस किताब में Gerber ने कहा है कि हर इंसान जो बिज़नेस शुरू करता है, उसके अंदर तीन लोग होते हैं: टेक्निशियन, मैनेजर और एंटरप्रेन्योर।
टेक्निशियन (यानि विशाल, जिसे चाय बनानी आती है) तो सिर्फ़ काम करना जानता है। वो कहता है, "काम ख़ुद करो, तभी अच्छा होगा।" मैनेजर (जो प्रोसेस और रूल्स बनाता है) कहता है, "काम को सही तरीक़े से करना है।" और एंटरप्रेन्योर (जो आगे की सोचता है) कहता है, "काम को इस तरह से डिज़ाइन करो कि ये हमेशा बढ़ता रहे।" 🚀
विशाल जैसे ज़्यादातर लोग सिर्फ़ टेक्निशियन बनकर रह जाते हैं। वो सिर्फ़ चाय बनाते हैं, सोचते नहीं कि चाय को ब्रांड कैसे बनाना है। उन्हें अकाउंट्स का डर है, एम्प्लॉयी को ट्रेनिंग देने का डर है, उन्हें लगता है कि सिर्फ़ काम करके ही बिज़नेस चलता है। लेकिन सच ये है कि बिज़नेस काम से नहीं, सिस्टम से चलता है।
याद रखना, आपका बिज़नेस एक प्रोडक्ट नहीं है, बल्कि वो तरीक़ा है जिससे प्रोडक्ट बनता है। क्या आपने कभी McDonald's में बर्गर बनाने वाले को देखा है? वो बस सिस्टम को फॉलो करता है। चाहे वो मुंबई में हो या न्यूयॉर्क में, बर्गर का स्वाद एक जैसा होता है। क्यों? क्योंकि McDonald's का मालिक टेक्निशियन नहीं है, वो सिस्टम का आर्किटेक्ट है। 🏗️
Gerber कहता है, अपने बिज़नेस को एक फ्रेंचाइज़ी की तरह देखो। भले ही आपका सिर्फ़ एक ही ठेला हो, लेकिन सोचो कि अगर आपको ऐसे हज़ार ठेले खोलने हों, तो आप क्या करोगे? क्या आप हज़ार जगह जाकर ख़ुद ही चाय बनाओगे? नहीं न! आप एक ग़ज़ब का सिस्टम बनाओगे। आप एक मैन्युअल लिखोगे जिसमें हर छोटी-छोटी बात लिखी होगी: दूध कितना डालना है, चीनी कहाँ से ख़रीदनी है, कस्टमर को स्माइल कैसे देनी है। यही सिस्टम आपके बिज़नेस को आज़ादी देता है। 🕊️
जब विशाल ने मेरी बात सुनी, तो उसने विरोध किया। उसने कहा, "यार, ये सिस्टम-विस्टम की बातें सिर्फ़ बड़ी कंपनियों के लिए हैं।" मैंने कहा, "नहीं दोस्त, बड़ी कंपनियाँ इसलिए बड़ी नहीं हैं क्योंकि उनके पास सिस्टम है; वो तो इसलिए बड़ी हैं क्योंकि उन्होंने शुरू से ही 'सिस्टम' वाली सोच रखी।" यही वो Game-Changer सोच है जिसकी हमें ज़रूरत है।
ज़रा सोचिए, अगर आप कल बीमार हो जाएँ, तो क्या आपका बिज़नेस चलेगा? अगर आपका जवाब 'ना' है, तो मुबारक हो! आप बिज़नेस के मालिक नहीं, बल्कि अपनी दुकान के बॉस-कम-मज़दूर हैं। जिस दिन आप वहाँ नहीं होंगे, आपकी दुकान बंद हो जाएगी।
तो करना क्या है? तीन बातें हमेशा याद रखना, यही Gerber का गोल्डन रूल है।
पहली बात: Work ON your business, not IN your business. (बिज़नेस में काम मत करो, बिज़नेस पर काम करो।) टेक्निशियन की तरह चाय बनाना छोड़ो, एंटरप्रेन्योर की तरह सोचो कि चाय बनाने की प्रक्रिया को बेहतर कैसे बनाया जाए। हर हफ़्ते कुछ घंटे सिर्फ़ सोचने के लिए निकालो। आपकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है सिस्टम बनाना, क़ायदे बनाना। ⚙️
दूसरी बात: हर काम को सिस्टमैटाइज़ कर दो। इसे कहते हैं बिज़नेस को ऑटोमैटिक करना। विशाल ने अपनी चाय की रेसिपी लिखी, सफ़ाई का चार्ट बनाया, कस्टमर से बात करने का तरीक़ा लिख दिया। जब उसने एक नया लड़का रखा, तो उसने उसे ट्रेनिंग नहीं दी, बल्कि उसे वो मैन्युअल दिया और कहा, "बस इसे फॉलो करो।" इससे क्या हुआ? अब वो लड़का भी अच्छी चाय बना रहा है और विशाल अब चाय की दो और दुकानें खोलने के बारे में सोच पा रहा है। 💪
तीसरी बात: तीन टोपी पहनो, लेकिन एक-एक करके। सुबह-सुबह एंटरप्रेन्योर की टोपी पहनो (सोचो: 5 साल बाद मेरा बिज़नेस कहाँ होगा)। दिन में मैनेजर की टोपी पहनो (देखो: क्या सिस्टम सही से चल रहा है? हिसाब सही है?) और आख़िर में टेक्निशियन की टोपी पहनो (जो ज़रूरी काम है, वो निपटाओ)। लेकिन ये तीनों रोल हमेशा संतुलन में होने चाहिए।
जब आप सिस्टम बना लेते हैं न, तो आप आज़ाद हो जाते हैं। अब आपका बिज़नेस सिर्फ़ विशाल की चाय नहीं, बल्कि विशाल का सिस्टम बन चुका है। अब विशाल 12 घंटे काम नहीं करता। अब उसका सिस्टम 12 घंटे काम करता है और वो सिर्फ़ 3 घंटे सिस्टम को बेहतर बनाने में लगाता है। छोटे बिज़नेस क्यों फ़ेल होते हैं? इसलिए क्योंकि उनके मालिकों ने कभी सिस्टम बनाने के बारे में सोचा ही नहीं! वे एम्प्लॉयी पर निर्भर बिज़नेस से छुटकारा नहीं पा सके, क्योंकि वो ख़ुद बिज़नेस के मज़दूर थे।
इस किताब की असल ताक़त यही है कि यह आपको काम करने से काम बनवाने की तरफ़ ले जाती है। यह आपको डर से आज़ादी की ओर ले जाती है। यह बताती है कि आपका बिज़नेस आपकी लाइफ़ को बेहतर बनाने के लिए है, उसे बर्बाद करने के लिए नहीं।
तो दोस्तों, अगर आप सच में एक ऐसा बिज़नेस बनाना चाहते हैं जो आपके बिना भी चल सके, जो आपकी अगली पीढ़ी के लिए एक विरासत बन सके, तो आज ही अपनी टेक्निशियन वाली टोपी उतारो और एंटरप्रेन्योर वाली टोपी पहन लो। माइकल गर्बर ई-मिथ समरी हिंदी में पढ़ने का यही फ़ायदा है कि आपको पता चल जाता है कि बिज़नेस को ऑटोमैटिक कैसे करें।
ये मत सोचना कि सिस्टम बनाने में टाइम लगेगा। आज का आराम कल की क़ैद है, और आज की मेहनत कल की आज़ादी! 💥 मेरी आपसे रिक्वेस्ट है, आज रात सोने से पहले, अपने बिज़नेस का सबसे छोटा और सबसे ज़रूरी काम पहचानो और उसका एक क़ायदा लिखो। बस एक सिस्टम, एक छोटा सा रूल। जब आप ये पहला क़दम उठाओगे, तो आप मालिक से सिस्टम का आर्किटेक्ट बन जाओगे। 💪 क्या आप तैयार हैं अपने बिज़नेस की कमान अपने हाथ में लेने के लिए? 🤔 कमेंट में मुझे बताओ कि आपके बिज़नेस का वो पहला सिस्टम क्या होगा जिसे आप आज डिज़ाइन करोगे! और हाँ, अगर ये बात दिल तक पहुँची हो, तो इस आर्टिकल को उस हर दोस्त के साथ शेयर करो जो संडे को भी अपने बिज़नेस में फँसा हुआ है! 📲🙏
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